इतिहासमध्यकालीन भारत

पानीपत का प्रथम युद्ध : कारण, घटनाएँ, परिणाम

पानीपत का प्रथम युद्ध

पानीपत का प्रथम युद्ध (first battle of panipat) –

पानीपत नामक स्थान हरियाणा राज्य के पानीपत जिले में है। पानीपत के मैदान में इतिहास के तीन प्रसिद्ध युद्ध हुये हैं – पानीपत का प्रथम युद्ध (21 अप्रैल 1526), पानीपत का द्वितीय युद्ध (5 नवंबर 1556), पानीपत का तृतीय युद्ध (14 जनवरी 1761)

पानीपत का प्रथम युद्ध (paaneepat ka pratham yuddh) – बाबर द्वारा भारत विजय – अपने चार प्रारंभिक आक्रमणों (1519 से लेकर 1524 ई. तक ) में उसने भारत की स्थिति का ठीक प्रकार से ज्ञान प्राप्त कर लिया और तब वह पूरे वेग से भारत विजय के कार्य की ओर लग गया।

बाबर द्वारा लङे गये युद्ध

पानीपत का प्रथम युद्ध

1526 ई. में पानीपत की पहली लङाई में इब्राहीम लोदी को, 1527 ई. में खानवा की लङाई में राणा सांगा को, 1528 ई. में चंदेरी की लङाई में मेदिनी राय को और 1529 ई. में घाघरा की लङाई में महमूद लोदी तथा नुसरत खां जैसे अफगानों को हराकर बाबर ने भारत में मुगल वंश की नींव रखी।

पानीपत के प्रथम युद्ध के कारण (Causes of the first battle of Panipat)

समरकंद को विजय करने में असफल रहना

पानीपत का प्रथम युद्ध का एक कारण यह भी था की, जब बाबर इस निष्कर्ष पर पहुँच गया कि उसके लिए मध्य एशिया में सफल होना और समरकंद पर फिर से अधिकार करना असंभव है तो उसने अपना ध्यान भारत की ओर दिया, इसलिए उसकी दिल्ली के सुल्तान से टक्कर होना स्वाभाविक ही था।

बाबर की महत्वाकांक्षा

बाबर एक महत्वाकांक्षी एवं पराक्रमी शासक था। वह विशाल साम्राज्य स्थापित करना चाहता था।

भारत की राजनैतिक अवस्था

भारत की राजनैतिक अवस्था ने भी बाबर को इस देश पर आक्रमण करने का प्रलोभदन दिया। उस समय भारत की राजनीतिक दशा शोचनीय थी। देशों में राजनीतिक एकता का अभाव था।

आक्रमण करने के लिए निमंत्रण मिलना

बाबर को दिल्ली की सल्तनत पर आक्रमण करने के लिए दौलत खां, आलम खां, राणा सांगा आदि व्यक्तियों ने निमंत्रण भेजा था।

भारत की धन दौलत

पानीपत का प्रथम युद्ध का एक कारण यह भी था की, बाबर ने भारत की अपार धन संपत्ति के बारे में सुन रखा था। इसलिए यह देश उसके लिए विशेष आकर्षण रखता था।

इब्राहीम लोदी का बदनाम होना

दिल्ली का सुल्तान इब्राहीम लोदी अत्याचारी होने के कारण अपनी प्रजा और संबंधियों में बहुत बदनाम था।

बाबर को भारत पर आक्रमण करने की प्रेरणा देना

एक वृद्ध महिला से भारत पर तैमूर के आक्रमण की कहानी सुनकर बाबर को यह प्रेरणा मिली कि उसे भी अपने पूर्वजों की भांति भारत पर विजय प्राप्त करनी चाहिए।

पानीपत के प्रथम युद्ध की घटनाएँ

पानीपत का प्रथम युद्ध की घटना – भारत को विजय करने का दृढ निश्चय करके बाबर नवंबर, 1526 ई. को काबुल से चल पङा। पंजाब में दोलत खां लोदी ने कोई 40,000 सैनकों के साथ उसका विरोध किया परंतु हार हुई और उसे बंदी बना लिया गया। इस प्रकार बाबर का लाहौर पर अधिकार हो गया।

लाहौर में कुछ समय विश्राम करने तथा अपनी सेना को एक बार फिर से सुव्यवस्थित करने के बाद बाबर ने दिल्ली की ओर प्रस्थान किया। बाबर के पास उस समय 12,000 सैनिक तथा बहुत सी तोपें थी।

उधर जब इब्राहीम लोदी को इसका समाचार मिला तो वह 1,00,000 सैनिकों, हाथियों तथा अनेक हथियारों आदि को अपने साथ लेकर बाबर के मुकाबले के लिये आगे बढा। दोनों सेनाएँ पानीपत के ऐतिहासिक मैदान में एक दूसरे के आमने-सामने आकर डट गयी, परंतु आठ दिन तक किसी ने भी एक-दूसरे पर आक्रमण नहीं किया।

अंत में 21 अप्रैल, 1526 ई. को दोनों सेनाएँ एक-दूसरे से भिङ गयी। बाबर ने, जो एक अनुभवी और कुशल सेनापति था, अपनी सेना के मध्यम भाग के आगे सात सौ छकङे खङे कर दिए जो आपस में चमङे की रस्सियों से कसकर बाँधे हुए थे। उन छकङों के बीच में कहीं-कहीं स्थान छोङ दिया गया और वहाँ कच्चे मोर्चें तैयार करके मुस्तफा और उस्ताद अली जैसे प्रसिद्ध तोपचियों को तैनात कर दिया गया।

सेना के दायें और बायें अंग को बचाने के उद्देश्य से उसे पानीपत के नगर के निकट खङा कर दिया गया और बाये अंग को बचाने के उद्देश्य से उसके आगे खाइयाँ खोदी गयी और उन्हें ऊपर से पत्तों से ढंक दिया गया ताकि शत्रु उन्हें देख न सके। बिल्कुल दायें और बायें किनारों पर घुङसवार सैनिक खङे कर दिये गये।

उधर पानीपत के मैदान में इब्राहीम लोदी की सेना न तो इतनी सुशिक्षित थी और न ही वह वैज्ञानिक युद्ध प्रणाली से परिचित थी। वह एक भीङ की भांति आगे बढी और बाबर की सेना पर आक्रमण कर दिया। आगे से जब उसने तोपों के गोले पङते देखे तो वह वापस तेज रफ्तार से भागी जिससे उसने बहुत से अपने ही सैनिक कुचल डाले।

उधर दोनों किनारों पर खङे हुए बाबर के घुङसवारों ने उजबेगी चाल तुलुगमा पद्धति को प्रयोग में लाते हुए इब्राहीम लोदी की सेना को पीछे से भी घेर लिया। इससे इब्राहीम लोदी की सेना में भगदङ मच गयी और सैनिक अपनी जान बचाने के लिए अंधा-धुंध इधर-उधर भागने लगे। इसके परिणामस्वरूप पानीपत के मैदान में एक ही दिन में 15,000 सैनिक, जिनमें इब्राहीम लोदी भी था मारे गये।

बाबर स्वयं इस विजय(पानीपत का प्रथम युद्ध) से प्रसन्न होकर लिखता है, सर्व-शक्तिमान अल्लाह की कृपा और दया से यह मुश्किल काम मेरे लिये आसान बना दिया गया और आधे ही दिन में वह शक्तिशाली सेना नष्ट कर दी गयी।

इसके बाद शीघ्र ही बाबर ने आगे बढकर दिल्ली और आगरा पर अधिकार कर लिया और राजकीय कोष पर भी अपना अधिकार जमा लिया। इसी कोष में प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा भी था। जिसके बारे में कहा जाता है कि उसका मूल्य संसार भर के आधे दिन के व्यय के बराबर है।

पानीपत का प्रथम युद्ध की विजय से प्रसन्न होकर बाबर ने अमीर-वजीरों से लेकर पीर-फकीरों तक सब में दिल खोलकर धन बांटा।

पानीपत का प्रथम युद्ध के परिणाम (Results of the First Battle of Panipat)

पानीपत का प्रथम युद्ध के परिणाम (paaneepat ka pratham yuddh ke parinaam) –

लोदी शासन का अंत

पानीपत का प्रथम युद्ध एक निर्णायक लङाई सिद्ध हुई। इस युद्ध में इब्राहीम लोदी की पराजय हुई । और वह अपने 15000 सैनिकों के साथ पानीपत के मैदान में ही मारा गया। इसके साथ ही भारत में लोदियों की सत्ता का भी अंत हो गया।

एक नये राजवंश की नींव पङना

पानीपत की इस लङाई में बाबर को पूर्ण सफलता मिली जिसके फलस्वरूप भारत में मुगल वंश साम्राज्य की नींव पङी।

पठान शासन को विनाशकारी आघात

यदि लोदियों (जो स्वयं पठान थे) से खिलजी अथवा अन्य कोई पठान जाति राज्य छीन लेती तो उनके अंत के साथ पठान शासन का अंत न हो पाता, परंतु जब यह राज्य उनसे विदेशी मुगलों ने छीन लिया तो लोदियों के अंत के साथ ही पठान शासन को भी मरणात्मक आघात पहुँचा। पानीपत का मैदान ऐसा भयानक स्थान बन गया कि सूर्यास्त के बाद कोई मनुष्य उधर से गुजरने का साहस भी नहीं कर सकता था।

भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति का विकास

मुगल वंश, जिसकी नीं भारत में पानीपत का प्रथम युद्ध के बाद पङी, के शासक पठानों की भांति धर्मान्धता में विश्वास नहीं रखते थे। उन्होंने राजनीति को धर्म से अलग रखा। उनकी धार्मिक उदारता तथा शांति और व्यवस्था (जो देश को उन्होंने प्रदान की) के परिणामस्वरूप कला तथा साहित्य की उन्नति हुई, हिन्दू तथा मुसलमानों का आपसी मेलजोल और भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति का विकास हुआ।

बाबर के प्रभुत्व और शक्ति में वृद्धि

पानीपत के युद्ध के परिणामस्वरूप बाबर के प्रभुत्व एवं शक्ति में वृद्धि हुई। इब्राहीम लोदी को परास्त करने के बाद बाबर ने दिल्ली और आगरी पर अधिकार कर लिया। भारतवर्ष में बाबर को अपार धनराशि प्राप्त हुई जिससे उसके आर्थिक साधनों में वृद्धि हुई। लोदी वंश का आखिरी सुल्तान इब्राहीम लोदी

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