इतिहासप्राचीन भारतवर्द्धन वंशहर्षवर्धन

हर्षवर्धन तथा कामरूप का देश

कामरूप का राजा भास्करवर्मा हर्ष का समकालीन था। कामरूप ने हंसबेग नामक अपने राजदूत के माध्यम से हर्ष के साथ मैत्री संबंध कायम किया था। हर्ष के जीवन काल तक वह उसका मित्र बना रहा। हुएनसांग भास्करवर्मा के दरबार में ठहरा था तथा हर्ष ने उसे बुलाने के लिये अपना दूत भेजा था।

भास्करवर्मा ने कहला भेजा कि वह चीनी यात्री के बदले अपना सिर देना पसंद करेगा। इस पर हर्ष क्रोधित हुआ तथा उसने उसका सिर तुरंत भेजने को कहा। इसे सुनकर भास्करवर्मा अत्यंत भयभीत हो उठा तथा चीनी यात्री के साथ हर्ष के सम्मुख स्वयं उपस्थित हुआ। इससे लगता है, कि वह हर्ष की शक्ति से भयभीत था। हुएनसांग बताता है, कि वह प्रयाग तथा कन्नौज के समारोहों में शामिल हुआ था।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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