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इस्लाम तथा हिन्दू कला का संबंध कैसा था

इस्लाम तथा हिन्दू कला

इस्लामी सभ्यता तथा संस्कृति का सबसे अधिक प्रभाव हिन्दू ललित कलाओं तथा विशेष रूप से स्थापत्य कला के ऊपर पङा। हिन्दूओं ने इस्लामी कला के प्रायः सभी उपयोगी एवं सुन्दर तत्वों का समायोजन अपनी कला में कर लिया। राजपूत शासकों ने इस्लामी स्थापत्य कला के विविध तत्वों को ग्रहण कर उनके अनुसार अपने राजमहलों एवं मंदिरों को सजा दिया था।

हिन्दू कलाकारों ने मुस्लिम कला के अनुकरण पर अपने भवनों तथा मंदिरों में मेहराबों तथा गुम्बदों का प्रयोग करना प्रारंभ कर दिया। वृन्दावन के कई मंदिरों में इस्लामी कला शैली का प्रभाव स्पष्टतया परिलक्षित होता है। हिन्दुओं ने इस्लामी कला की सादगी को भी ग्रहण कर लिया, जिससे हिन्दू कला की प्रचुर अलंकारिता कम हो गयी। मध्यकाल में हिन्दू-मुस्लिम कला शैलियों के परस्पर संपर्क के कारण कला की एक नवीन शैली का विकास हुआ, जिसे विद्वानों ने इण्डो-इस्लामिक-कला की संज्ञा प्रदान की है।
मुगल काल के हिन्दू शासकों ने भी इस्लामी शैली के अनुरूप अपनी इमारतों का निर्माण करवाया था। आमेर के रूमानीनगर की इमारतों, बीकानेर के राजमहलों, जोधपुर तथा ओरछा के दुर्गों, डीग के भवनों आदि के निर्माण में इस्लामी कला का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। ताराचंद ने इण्डो-मुस्लिम कला की विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुये लिखा है, मुस्लिम कला की सरल कर्कशता कम हो गयी तथा हिन्दू कला की बहुलता पर रोक लग गया।
शिल्प कौशल, अलंकरण की प्रचुरता तथा सामान्य रचना हिन्दू रही, किन्तु सीधे गुम्बद तथा सपाट दीवारें, वृहद आँगन तथा डाटदार छतें मुसलमानी विशेषतायें थी।

स्थापत्य कला के साथ-साथ हिन्दू चित्रकला भी इस्लाम से प्रभावित हुई। इसके फलस्वरूप चित्रकला के विषय एवं तकनीकों में परिवर्तन आया। इस्लामी कला के प्रभाव से हिन्दू चित्रकार आकृति चित्रण एवं भित्ति चित्रण करने की कला में अत्यन्त प्रवीण हो गये।

इस विवेचन से स्पष्ट है, कि इस्लाम ने हिन्दू सभ्यता के विविध पक्षों पर कुछ न कुछ प्रभाव डाला। दूसरी ओर मुसलमान भी हिन्दू सभ्यता से बहुत अधिक प्रभावित हुए। हिन्दू मूर्तिपूजा के प्रभाव से मुस्लिम समाज में भी संतों तथा दरगाहों की पूजा प्रारंभ हो गयी। कुछ मुस्लिम त्योंहार हिन्दू त्योंहारों जैसे धूमधाम से मनाये जाने लगा। हिन्दू जाति प्रथा ने भी मुस्लिम समाज को प्रभावित किया तथा उसमें पठान, सैय्यद, शेख आदि विभाजन हो गये।
ये अपने से नीची जाति में विवाह नहीं करते थे। हिन्दुओं के प्रभाव से मुसलमान भी दैवी चमत्कारों एवं कुछ अंधविश्वासों में आस्था रखने लगे। कुछ मुसलमान हिन्दू ज्योंतिष एवं औषधि शास्त्र से भी प्रभावित हुए। कुछ कुलीन मुस्लिम घरानों में हिन्दूओं की सती एवं जौहर प्रथाओं को भी अपना लिया गया। इस प्रकार टाइटस का यह कथन वस्तुतः महत्त्वपूर्ण हो जाता है, कि सब कुछ कहने के बाद भी इसमें संदेह नहीं है, कि हिन्दू धर्म ने, जो अभी तक अपने सुनिश्चित मार्ग पर आश्चर्यजनक आस्था एवं विश्वास के साथ अग्रसर है, इस्लाम के ऊपर, अपने इस्लामी प्रभाव की अपेक्षा, कहीं अधिक प्रभाव उत्पन्न किया था।

इस प्रकार हिन्दू धर्म तथा संस्कृति में कोई आमूल परिवर्तन नहीं हुआ। दोनों संस्कृतियों के समन्वय सम्मिश्रण तथा सामंजस्य के बावजूद भी भारत में हिन्दुओं तथा मुसलमानों ने अपनी विशिष्टता अंत तक बनाये रखी, जो आज भी दोनों की सामाजिक एवं धार्मिक परंपराओं में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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