नागवंश का इतिहास
कुषाणों के पतन के बाद मध्यभारत तथा उत्तर प्रदेश के भूभागों पर शक्तिशाली नागवंशों का उदय हुआ। गंगाघाटी में कुषाण सत्ता के विनाश का श्रेय नागवंश को ही दिया जाता है।
पुराणों के विवरण से पता चलता है, कि पद्मावती, मथुरा तथा कांतिपुर में नाग कुलों का शासन था। पुराणों के अनुसार मथुरा में सात तथा पद्मावती में नौ नाग राजा ओं ने शासन किया। गुप्तों के उदय के पूर्व पद्मावती तथा मथुरा के नागवंश काफी शक्तिशाली थे। इनमें भी पद्मावती का नाग कुल महत्त्वपूर्ण था।
पद्मावती की पहचान मध्य प्रदेश के ग्वालियर के समीप स्थित आधुनिक पद्मपवैया नामक स्थान से की जाती है। पद्मावती के नाग लोग भारशिव कहलाते थे। वे अपने कंधों पर शिवलिंग वहन करते थे, अतः वे भारशिव कहलाये। भारशिवों का वाकाटकों के साथ वैवाहिक संबंध था।
भारशिव कुल के शासक भवनाग की पुत्री का विवाह वाकाटक नरेश प्रवरसेन प्रथम के पुत्र के साथ हुआ था। समुद्रगुप्त के समय पद्मावती के भारशिव नागवंश का शासक नागसेन था। प्रयाग प्रशस्ति में उसका उल्लेख मिलता है।
मथुरा में समुद्रगुप्त के समय में गणपतिनाग का शासन था। तीसरी शताब्दी के अंत में पद्मावती तथा मथुरा के नाग लोग मथुरा, धोलपुर, आगरा, ग्वालियर, कानपुर, झाँसी तथा बाँदा के भूभागों तक फैल गये थे।
Reference : https://www.indiaolddays.com/