भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में प्राचीन भारतीयों की उपलब्धियां अपेक्षाकृत सीमित हैं। भौतिकी विषयक भारतीय विचार धर्म एवं आध्यात्म के साथ घनिष्ठ रूप से संबंधित थे। अतः इस शास्त्र का स्वतंत्र रूप से विकास नहीं हो पाया। आधुनिक भौतिकी का सर्वप्रमुख सिद्धांत परमाणुवाद है।
भारत में इस सिद्धांत का अस्तित्व बुद्धकाल (ईसा पूर्व छठीं शती) में ही दिखाई देता है। बुद्ध के एक समकालीन पकुधकात्यायन ने यह बताया कि सृष्टि का निर्माण सात तत्वों – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, सुख, दुख तथा जीव से मिलकर हुआ है। इनमें कम से कम चार तत्वों का अस्तित्व सभी सम्प्रदाय स्वीकार करते हैं।
आस्तिक हिन्दुओं तथा जैनियों ने इसमें आकाश नामक पांचवां तत्व जोङ दिया तथा इस प्रकार ये पंचतत्व सृष्टि रचना अथवा मानव शरीर के रचनात्मक तत्व स्वीकार कर लिये गये।
भारत में परमाणुवाद का संस्थापक वैशेषिक दर्शन के प्रवर्त्तक महर्षि कणाद (ई.पू.छठी शती) को माना जाता है, जिन्होंने भारत में भौतिक शास्त्र का आरंभ किया। उनका कहना है, कि समस्त भौतिक वस्तुयें परमाणुओं के संयोग से ही बनती हैं। तत्व के सूक्ष्मतम एवं अविभाज्य कण को परमाणु कहते हैं।
दो परमाणुओं का प्रथम संयोग द्वयणुक कहा जाता है। यह अणु, ह्रस्व तथा अगोचर होता है। तीन द्वयणुक मिलकर त्र्यणुक का निर्माण करते हैं। परमाणुओं के संयोग का यह क्रम तब तक चलता है, जब तक कि पृथ्वी, जल, तेज तथा वायु महाभूत उत्पन्न नहीं हो जाते। परमाणु नित्य एवं अविभाज्य होते हैं।
उन्नीसवीं शती के वैज्ञानिक जॉन डाल्टन को परमाणुवाद के सिद्धांत का प्रतिपादक माना जाता है, किन्तु इसके शताब्दियों पूर्व भारतीय मनीषियों द्वारा इसकी कल्पना की जा चुकी थी। भारतीय परमाणुवाद यूनानी प्रभाव से मुक्त था, क्योंकि बुद्ध के ज्येष्ठ समकालीन पकुधकत्यायन, जिन्होंने सर्वप्रथम परमाणुओं की कल्पना की थी, यूनानी डेमोक्रिटस के पहले हुए थे।
भारतीय परमाणु सिद्धांत परीक्षण पर आधरित न होकर अन्तरदृष्टि एवं तर्क पर आधारित थे। इसी कारण उन्हें विश्व में मान्यता नहीं मिल सकी। तथापि ये विश्व की भौतिक संरचना अद्भुत कल्पनात्मक व्याख्यायें हैं, जो कई अर्थों में आधुनिक भौतिकी अनुसंधानों से समता रखती हैं।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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