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1756 से 1772 तक बंगाल पर अंग्रेजी नियंत्रण स्थापना के विभिन्न सोपन

1756 से 1772 तक बंगाल पर अंग्रेजी नियंत्रण स्थापना के विभिन्न सोपन

1756 से 1772 तक बंगाल पर अंग्रेजी नियंत्रण (English control over Bengal from 1756 to 1772)-

बंगाल एक धनी प्रांत था तथा समुद्र के किनारे बसा होने के कारण अंग्रेजों की शक्तिशाली सामुद्रिक शक्ति को देखते हुए भी यह उनके अनुकूल स्थिति का था। बंगाल की राजनीतिक स्थिति को देखते हुए ही यह प्रांत अंग्रेजों के लिए अपने पैर जमाने के लिए अधिक उपयुक्त था।

सन 1756 ई. में सिराजुद्दौला बंगाल का नवाब बना। वह एक महत्वाकांक्षी व्यक्ति था। गद्दी पर बैठते ही सिराजुद्दौला का अंग्रेजों से संघर्ष छिङ गया।

बंगाल में द्वैध शासन की स्थापना किसने की?

1756 से 1772 तक बंगाल

अंग्रेज बंगाल में व्यापार करते हुए अनेक अनियमितताएँ कर रहे थे, जिनको सिराजुद्दौला ने रोकना चाहा। परंतु अंग्रेजों ने सिराजुद्दौला के विरुद्ध षङयंत्र करना शुरू कर दिया।

सिराजुद्दौला ने क्रुद्ध होकर उनकी कासिम बाजार की फैक्ट्री तथा कलकत्ता एवं हुगली पर अधिकार कर लिया। फिर तो अंग्रेजों ने क्लाइव के नेतृत्व में मद्रास से एक अंग्रेजी सेना भेजी जिसने बंगाल में अपना प्रभुत्व एवं शासन स्थापित करने के लिए मार्ग प्रशस्त कर दिया।

बंगाल पर अंग्रेजी नियंत्रण स्थापना का अलग-अलग सोपानों में वर्णन किया गया है, जो निम्नलिखित हैं-

1756 से 1772 तक बंगाल पर अंग्रेजी नियंत्रण स्थापना के विभिन्न सोपन निम्नलिखित हैं-

सन 1757 ई. में प्लासी के युद्ध में सिराजुद्दौला को हराकर कंपनी का नवाब का निर्माता एवं बंगाल का वास्तविक शासक बन जाना

प्लासी के युद्ध में अंग्रेजों की विजय कोई सैनिक विजय नहीं थी। वह तो एक षङयंत्र तथा छल-फरेबी का कार्य था। लेकिन इस घटना से अंग्रेजों को बंगाल में स्थायित्व मिल गया।

सिराजुद्दौला को हराकर उन्होंने अपने कठपुतली मीरजाफर को बंगाल का नवाब बनाया जो अंग्रेजों का अहसानमंद था तथा अंग्रेजों की संधि के अनुसार अंग्रेजों का एक प्रकार से प्रतिनिधि के रूप में ही था। बंगाल में अंग्रेजों ने अनेक अधिकार प्राप्त कर लिए जिनके कारण बंगाल की शासन सत्ता तथा आर्थिक नियंत्रण अंग्रेजों के हाथों में ही था। इस प्रकार अंग्रेज व्यापारी बंगाल में शासक बन गये।

वे एक प्रकार से नवाब-निर्माता भी कहे जा सकते थे। यहाँ से अंग्रेजों को अपने राज्य का विस्तार करने में बहुत सुविधा हुई। यह बंगाल पर अंग्रेजों के निमंत्रण की स्थापना का प्रथम सोपान था।

सन 1764 ई. में बक्सर के युद्ध में अंग्रेजों द्वारा मीरकासिम, शुजाउद्दौला तथा मुगल सम्राट शाहआलम की संयुक्त सेना को हराना

बक्सर के युद्ध में अंग्रेजों की विजय को बंगाल पर अंग्रेजी नियंत्रण की स्थापना का द्वितीय सोपान कहा जा सकता है। यदि प्लासी की विजय से भारत में अंग्रेजी शासन की नींव पङी तो बक्सर की विजय ने उसको दृढ बना दिया।

इस युद्ध में अंग्रेजों ने बंगाल के नवाब मीरकासिम, अवध के नवाब शुजाउद्दौला तथा मुगल सम्राट शाहआलम की संयुक्त फौजों को हराया।

सन 1765 में दोनों पक्षों में संधि हुई। इस संधि से अंग्रेजों के व्यापारिक क्षेत्र का विस्तार हुआ। अंग्रेजों के विरोधियों को शरण मिलने के स्थान कम हो गये और शुद्ध आर्थिक लाभ के रूप में बंगाल, बिहार और उङीसा की दीवानी वसूल करने का अधिकार मिला। इस युद्ध ने अंग्रेजों को वास्तव में बंगाल का स्वामी बना दिया।

इलाहाबाद की संधि

1765 ई. में अवध के नवाब शुजाउद्दौला और अंग्रेजों के बीच एक संधि हुई जिसे इलाहाबाद की संधि कहते हैं। इस संधि के अनुसार शुजाउद्दौला को निम्नलिखित शर्तें स्वीकार करनी पङी-

  • अवध के नवाब शुजाउद्दौला से कङा तथा इलाहाबाद के जिले छीन लिये गए तथा ये दोनों जिले मुगल सम्राट को दे दिए गए। अवध का प्रान्त शुजाउद्दौला को लौटा दिया गया।
  • शुजाउद्दौला ने अंग्रेजों को क्षतिपूर्ति के लिए 50 लाख रुपये देना स्वीकार कर लिया।
  • शुजाउद्दौला ने कंपनी को अवध में कर मुक्त करने की सुविधा प्रदान की।
  • अंग्रेजों ने नवाब को सैनिक सहायता देना स्वीकार कर लिया परंतु उसे ही अंग्रेजी सेना का खर्चा वहन करना पङेगा।

1765 में मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय तथा अंग्रेजों के बीच भी इलाहाबाद की संधि हुई जिसके अनुसार शाह आलम द्वितीय को निम्नलिखित शर्तें स्वीकार करनी पङी-

  • अवध के नवाब शुजाउद्दौला से कङा और इलाहाबाद के जिलों को लेकर मुगल सम्राट शाह आलम को दे दिए गए।
  • अंग्रेजों ने मुगल सम्राट को 26 लाख रुपये वार्षिक पेन्शन देना स्वीकार कर लिया।
  • मुगल सम्राट ने अंग्रेजों को बंगाल, बिहार तथा उङीसा की दीवानी सौंप दी।

बंगाल में द्वैध शासन

सन 1764 ई. में अंग्रेजों की विजय पर जम गई थी। मीर कासिम को हटाकर सन 1763 ई. में ही अंग्रेजों ने पुराने नवाब मीरजाफर को पुनः बंगाल का नवाब बना दिया था, जिसके लिए कंपनी तथा उसके अधिकारियों ने काफी धन प्राप्त किया था।

मीरजाफर की मृत्यु होने पर अंग्रेजों ने उसके द्वितीय पुत्र निजामुद्दौला को बंगाल के सिंहासन पर बिठा दिया उसने 20 फरवरी, 1765 को नई संधि की, जिसके अनुसार नवाब को अपनी अधिकांश फौज को भंग कर देना था और बंगाल का प्रशासन एक नायब सूबेदार के द्वारा किया जायेगा जिसकी नियुक्ति कंपनी के द्वारा होगी और कंपनी की अनुमति के बिना उसकी सेवायें समाप्त नहीं की जा सकेंगी।

इस प्रकार बंगाल की निजामत अर्थात् प्रशासन पर भी कंपनी का अधिकार हो गया। कंपनी को बंगाल परिषद के सदस्यों ने इस नये नवाब से भी 15 लाख रुपये ऐंठ लिये। शाह आलम जो कि अब केवल एक उपाधिकारी प्रमुख ही रह गया था, से कंपनी ने बंगाल, बिहार और उङीसा का राजस्व वसूल करने का अधिकार प्राप्त कर लिया था। अवध के नवाब शुजाउद्दौला को कंपनी को 50 लाख रुपया युद्ध क्षति के रूप में देना पङा था। 1765 ई. में क्लाइव बंगाल का गवर्नर जनरल वापिस आ गया था।

सन 1765 ई. से ईस्ट इंडिया कंपनी बंगाल की वास्तविक स्वामी बन गयी। अपनी आंतरिक एवं बाह्य सुरक्षा के लिए नवाब को अंग्रेजों पर ही निर्भर रहना पङता था। बंगाल का दीवान होने के नाते कंपनी बंगाल का राजस्व तो सीधा ही प्राप्त करती थी, परंतु नायब सूबेदार की नियुक्ति का अधिकार लेकर वह निजामत या पुलिस तथा न्यायिक शक्तियों पर भी नियंत्रण रखती थी।

यह नायब सूबेदार के रूप में एक ही व्यक्ति होता था, जो कि कंपनी के लिए बंगाल में नायब दीवान का काम करता था तथा नवाब के लिए नायब सूबेदार का काम करता था। इतिहास में यही व्यवस्था द्वैध शासन कहलाती है। इस प्रणाली में बिना किसी उत्तरदायित्व के भार के कंपनी के पास प्रांत के सारे अधिकार थे।

इस अवस्था में दोष तो सभी भारतीयों पर रख दिये जाते थे और अच्छे फलों का लाभ अंग्रेजों को मिलता था, परंतु बंगाल के लोगों के लिए इसके परिणाम बहुत भयंकर हुए। कंपनी तथा नवाब कोई भी जनता के हितों का ध्यान नहीं रखते थे।

इस व्यवस्था में बंगाल के लोगों पर प्रताङनाएँ बहुत बढ गयी। बंगाल के धन को खूब चूसा गया। यहाँ तक कि बाहर माल भेजने के लिए इसी राजस्व के धन से माल भारत में खरीदा जाने लगा।

इस द्वैध शासन ने बंगाल पर अंग्रेजों की पकङ को और मजबूत कर दिया। सन 1770 ई. में बंगाल में भयानक दुर्भिक्ष पङा, जिसमें लाखों मौत के मुँह में चले गये। ईस्ट इंडिया कंपनी की नीतियों ने इस अकाल के प्रभाव को और भी बदतर बना दिया।

सन 1772 ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी भारत की प्रमुख शक्ति हो गयी और इंग्लैण्ड में बैठे कंपनी के निदेशकों तथा भारत में बैठे अधिकारियों ने तय किया कि कोई एक नई जगह फतह करने से पहले अब बंगाल में अंग्रेजी नियंत्रण को मजबूत बनाना है।

यह सन 1772 ई. तक का बंगाल पर अंग्रेजी नियंत्रण स्थापना का अंतिम सोपान कहा जा सकता है।

इस प्रकार सन 1756 ई. से लेकर 1772 ई. तक बंगाल पूर्ण रूप से अंग्रेजी नियंत्रण में आ गया।

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