इतिहासजैन धर्मप्राचीन भारतबौद्ध काल

महात्मा बुद्ध तथा महावीर स्वामी में तुलनात्मक अध्ययन

महात्मा बुद्ध तथा महावीर स्वामी

छठीं शताब्दी ईसा पूर्व में दो धर्मों का उदय हुआ था, वे थे – बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म इन दोनों धार्मिक विचारधाओं में कई समानतायें थी, तो कई असमानतायें भी थी, जिनका अध्ययन हम यहाँ पर करेंगे।

ईसा पूर्व छठी शताब्दी में हुए धार्मिक आन्दोलनों में जैन व बौद्ध धर्म प्रमुख थे, तथा बौद्ध धर्म ने ब्राह्मणवाद को अत्यधिक आघात लगाया।

जैन तथा बौद्ध धर्म में समानतायें

  • बुद्ध तथा महावीर स्वामी दोनों छठीं शताब्दी ईसा पूर्व की धार्मिक क्रांति के अग्रदूत थे। यह सत्य है, कि इन दोनों ने वैदिक कर्मकाण्डों तथा वेदों की अपौरुषेयता का समान रूप से विरोध किया।
  • अहिंसा तथा सदाचार पर दोनों ने बल दिया तथा दोनों ही कर्मवाद, पुनर्जन्म तथा मोक्ष में विश्वास रखते थे। दोनों विचारकों ने अपने-अपने मतों के प्रचार के लिये भिक्षु संघों की स्थापना की थी।
परंतु इन समानताओं के बावजूद बुद्ध तथा महावीर के विचारों में निम्नलिखित अंतर स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं-
  • गौतम बुद्ध ने मध्यम-मार्ग का उपदेश दिया। वे मोक्ष के लिये कठोर साधना एवं कायाक्लेश में विश्वास नहीं करते थे। इसके विपरीत महावीर ने मोक्ष के लिये घोर तपस्या तथा शरीर-त्याग आवश्यक बताया।
  • बौद्ध धर्म आत्मा के अस्तित्व में विश्वास नहीं करता। बुद्ध ने सृष्टि की सभी वस्तुओं को अनित्य बताया।महावीर आत्मा में विश्वास करते थे। उनके अनुसार आत्मायें अनन्त हैं तथा सृष्टि के कण-कण में जीवों का वास होता है।
  • कर्मवाद तथा मोक्ष संबंधी दोनों के विचार भिन्न-भिन्न हैं। जैन मत कर्म को एक भौतिक तत्व के रूप में मानता है, जबकि बौद्ध मत इच्छा द्वारा किये गये कार्य को ही कर्म कहता है। इसी प्रकार जैन मत के अनुसार मोक्ष का अर्थ शरीर-विनाश है, जबकि बौद्धों के अनुसार निर्वाण इस जीवन में भी प्राप्त हो सकता है। स्वयं बुद्ध का जीवन इसका प्रमाण है।
  • महावीर ने बुद्ध की अपेक्षा अहिंसा तथा अपरिग्रह पर अधिक बल दिया है। इस विषय में उनके विचार अतिवादी थे।
  • महावीर ने भिक्षुओं को नग्न रहने का उपदेश दिया। इसके विपरीत गौतम बुद्ध नग्नता के घोर विरोधी थे। उन्होंने भिक्षुओं को यथोचित वस्त्र धारण किये रहने का आदेश दिया था।
  • गौतम बुद्ध ने जाति-पांति जैसी सामाजिक कुरीतियों का जितने प्रबल शब्दों में खंडन किया, महावीर ने नहीं। सामाजिक विषयों में महावीर के विचार ब्राह्मणों से बहुत कुछ मिलते -जुलते थे।

कुछ विद्वानों का विचार है, कि जैन तथा बौद्ध ये दोनों ही धर्म वैदिक धर्म के सुधारवादी स्वरूप थे तथा इस प्रकार उनमें कोई नवीनता नहीं थी। परंतु आधुनिक शोधों के आधार पर इस प्रकार का मत खंडित हो चुका है। सत्य यह है, कि इन दोनों ही मतों पर अवैदिक विचारधारा का पर्याप्त प्रभाव था। जैन धर्म तो स्पष्टतः अवैदिक श्रमण विचारधारा से उदभूत हुआ था। जैनियों की नास्तिकता, कर्म तथा आवागमन के सिद्धांत में विश्वास, संसार के प्रति उनका निराशावादी दृष्टिकोण तथा तपस्या एवं कायाक्लेश पर अतिशय बल देना उन्हें निश्चित रूप से वैदिक परंपरा के विरुद्ध कर देता है।

इसी प्रकार बौद्ध धर्म की साधना-पद्धति, कर्म के सिद्धांत तथा संसार के प्रति निवृत्ति-मार्गी को स्पष्ट रूप से चुनौती दी तथा उनके दो मूलभूत सिद्धांतों – यज्ञीय कर्मकांड तथा जातिवाद – का खुलकर विरोध किया। यद्यपि उपनिषदों में भी यज्ञों की आलोचना की गयी है, परंतु उपनिषद् न तो पूर्णरूप से वेदों की प्रामाणिकता का खंडन करते हैं और न ही ब्राह्मणों की सामीजिक श्रेष्ठता के दावे का ही विरोध करेत हैं – जैसा कि बौद्ध तथा जैन मतों में देखने को मिलता है। अतः हम इन धर्मों को वैदिक धर्म का सुधारात्मक स्वरूप नहीं कह सकते।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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