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जैन धर्म की देन

जैन धर्म की देन

जैन धर्म का प्रभाव भारत में उतना व्यापक नहीं हुआ, जितना कि बौद्धधर्म का तथा यह कुछ ही भागों तक सीमित रहा, तथापि भारत के सांस्कृतिक जीवन को इसका योगदान महत्त्वपूर्ण रहा।

जैन धर्म का साहित्य के क्षेत्र में योगदान

जैनियों की विशेष देन साहित्य एवं कला के क्षेत्र में रही। जैन विद्वानों ने विभिन्न कालों में लोक भाषाओं के माध्यम से अपनी कृतियों की रचना करके इनके विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। प्राकृत, अपभ्रंश, कन्नङ, तमिल, तेलगू आदि में जैन साहित्य मिलते हैं।

प्राकृत भाषा को विकसित करने में जैन लेखकों के कार्य सराहनीय हैं। पूर्व मध्यकाल में हेमचंद्र आदि विद्वानों ने काव्य, व्याकरण, ज्योतिष, छंदशास्त्र आदि विविध विषयों पर प्राकृत तथा अपभ्रंश भाषाओं में साहित्य लिखकर इनका बहुमुखी विकास किया। दक्षिण में कन्नङ एवं तेलगू में भी इनके साहित्य हैं। तमिल ग्रंथ कुरल के कुछ भाग भी जैनियों द्वारा रचे गये हैं। इसके अतिरिक्त कुछ जैन ग्रंथ संस्कृत में भी मिलते हैं।

चित्रकला के क्षेत्र में जैन धर्म की देन

ग्यारहवीं तथा 12 वीं शताब्दी में जैन धर्म के मंदिरों पर चित्र बने ।जिससे चित्रकला के इतिहास मेंनवीनता उत्पन्न हो गई । इन में पच्चीकारी का कार्य का काम बहुत अच्छा था। चित्रकला का दर्शन हमें जैनियों की हस्तलिखित पुस्तकों में भी होता है ।जिसमें चमकीले रंगों में चित्रों का बहुत महत्व है पच्चीकारी का काम जो कि अनेक मंदिरों तथा गुफाओं में हुआ है, दर्शनीय है ।जैनियों के तीर्थंकरों के चित्र सुंदर रंगों में सुशोभित है ।जैन चित्र की मुख्य विशेषता सरलता है। क्योंकि जैनी लोग सरलता के प्रेमी थे और चित्रकला पर हिंदू शैली की छाप स्पष्ट दिखाई देती है। जैन धर्म ने भारतीय चित्रकला को जो योगदान दिया वह आज भी उच्च कोटि का माना जाता है।

स्थापत्यकला के क्षेत्र में जैन धर्म का प्रभाव

प्राचीन भारतीय कला एवं स्थापत्य को विकसित करने में भी जैनियों का योगदान महत्त्वपूर्ण हैं।जैनियों की स्थापत्य कला अद्वितीय और अनुपमेय है। इस की विशाल मूर्तियां भी बहुत सुंदर है और फिर देव के समान विशाल है ।मैसूर में अब तक 70 फीट की एक मूर्ति विद्यमान है। जिन्होंने अपने तीर्थंकरों के उपलक्ष्य में विशाल तथा सुंदर मंदिरों का निर्माण करवाया।

दिलवाड़ा के मंदिर आज भी जैन मंदिरों के सुंदर नमूने कहे जाते हैं।

हस्तलिखित जैन – ग्रंथों पर खींचे हुये चित्र पूर्व मध्य-युगीन चित्रकला के सुन्दर नमूने हैं। मध्यभारत, उङीसा, गुजरात, राजस्थान आदि से अनेक जैन-मंदिर, मूर्तियाँ, गुहास्थापत्य आदि के नमूने उत्कृष्ट नमूने मिलते हैं।

उङीसा की उदयगिरि पहाङी से अनेक जैन गुफायें मिलती हैं। खजुराहो, सौराष्ट्र, राजस्थान से भव्य जैन-मंदिर प्राप्त होते हैं। खजुराहो में कई जैन तीर्थङ्करों जैसे – पार्श्वनाथ, आदिनाथ आदि के मंदिर हैं। राजस्थान के आबू पर्वत पर निर्मित जैन – मंदिर कला की दृष्टि से अत्युकृष्ट हैं। कर्नाटक स्थित श्रवणबेलगोला नामक स्थान से भी कई जैन मंदिर मिलते हैं। इन सबसे स्पष्ट है, कि भारतीय कला को समृद्धिशाली बनाने में जैन धर्म ने उल्लेखनीय योगदान दिया है।

जैन धर्म का भारतीय समाज पर प्रभाव

इसका भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा ।जाति प्रथा को आघात लगा तथा जाति-पाति के बंधन को ढीला कर दिया ।ब्राह्मणों का आदर कम होने लगा। जनता को अंधविश्वासों से हटाकर ठीक मार्ग पर खड़ा कर दिया ।

राजनीतिक क्षेत्र पर जैन धर्म का प्रभाव

भारतीय राजनीतिक दशा पर भी जैन धर्म की छाप दिखाई देती है। इसी कारण राजाओं के विचार बदल गए और अत्याचार करने वाली नीति समाप्त हो गई। उनके स्थान पर दया की नीति स्थापित करते राजा अपनी प्रजा से अपनी संतान की तरह व्यवहार किया। गणतंत्र राज्यों की स्थापना हुई ।

जैनधर्म ने लोगों में अहिंसा एवं सदाचार का प्रचार किया तथा संयमित जीवन व्यतीत करने का उपदेश दिया। अनेकान्तवाद (स्यादवाद) का सिद्धांत विभिन्न मतों एवं संप्रदायों के बीच भेदभाव मिटाकर समन्वयवादी दृष्टिकोम अपनाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण प्रयास माना जा सकता है।

ऐसा करके समन्वय एवं सहिष्णुता के भारतीय दृष्टिकोण को सुदृढ आधार प्रदान किया है।यदि आज भी हम इन सिद्धांतों का अनुकरण करें तो आपसी भेदभाव एवं धार्मिक कलह बहुत सीमा तक दूर हो जायेगा तथा संसार में शांति, बन्धुत्व, प्रेम एवं सहिष्णुता का साम्राज्य स्थापित होगा। इस प्रकार महावीर की शिक्षायें कुछ अंशों में आधुनिक युग में भी समान रूप से श्रद्धेय एवं अनुकरणीय हैं।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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