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मोहम्मद अली जिन्ना और पाकिस्तान की माँग(पाकिस्तान प्रस्ताव)

असहयोग आंदोलन(Non-Cooperation Movement) के समय कांग्रेस (Congress)और मुस्लिम लीग में जो सहयोग और एकता रही वैसी फिर कभी दिखाई नहीं दी। असहयोग आंदोलन की समाप्ति के बाद जो साम्प्रदायिक दंगे हुए, उससे कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच गहरी खाई उत्पन्न हो गयी।

मुस्लिम लीग काँग्रेस की हर नीति का विरोध कर रही थी। 1935 के अधिनियम के अनुसार जब 1937 में प्रांतीय क्षेत्रों के चुनाव हुए, तो मुस्लिम प्रांतों में ही प्रभावशाली रही। ऐसी परिस्थितियों में मुस्लिम लीग ने कांग्रेस को सहयोग करने हेतु वार्ता आरंभ की।

जिन्ना (Jinnah)ने कहा, लीग तथा कांग्रेस में कोई मौलिक मतभेद नहीं है, हम कांग्रेस के रचनात्मक कार्यों में सहयोग देने के लिए सदैव प्रस्तुत रहेंगे। इस पर कांग्रेस ने लीग को मंत्रिमंडलों में लेने के लिए कुछ शर्तें रखीं, किन्तु लीग ने उन शर्तों को स्वीकार नहीं किया और जिन्ना ने घोषणा की कि, मुसलमान कांग्रेस सरकार के अधीन न्याय की आशा नहीं कर सकते।

मुस्लिम लीग ने कांग्रेसी मंत्रिमंडलों के विरुद्ध यह प्रचार प्रारंभ कर दिया कि,हिन्दू राज्य में मुसलमानों पर अत्याचार हो रहे हैं। उसने कपोलकल्पित घटनाओं का वर्णन करके कांग्रेस के विरुद्ध मुसलमानों में घृणा फैलाना आरंभ कर दिया।

1938 में मुस्लिम लीग ने इन कथाकथित अत्याचारों की जाँच के लिए पिरपुर के राजा मोहम्मद मेंहदी की अध्यक्षता में जाँच समिति नियुक्त की। पिरपुर रिपोर्ट ने कांग्रेसी राज्यों के अधीन मुसलमानों के अत्याचार का वर्णन किया और घोषित किया कि, बहुमत के अत्याचार से बढकर और कोई अत्याचार नहीं है।

यद्यपि इन आरोपों में कोई तथ्य नहीं था। स्वयं उत्तर प्रदेश के गवर्नर-सर हेग ने कहा था कि, कांग्रेसी मंत्रिमंडलों ने मुसलमानों के साथ औचित्य तथा न्यायपूर्ण व्यवहार किया है।

पिरपुर रिपोर्ट बंगाल में प्रजा पार्टी के नेता फज्ल-उल-हक ने प्रकाशित की जिसका शीर्षक था, कांग्रेस प्रशासन में मुसलमानों पर अत्याचार। यह रिपोर्ट भी मनगढंत घटनाओं पर आधारित थी।

फिर भी कांग्रेस के प्रधान ने मुस्लिम लीग से कहा कि कांग्रेस राज्य के अधीन मुसलमानों पर होने वाले तथाकथित अत्याचारों को किसी निष्पक्ष जाँच आयोग के समक्ष प्रस्तुत करे, किन्तु मुस्लिम लीग ने ऐसा करने से इंकार कर दिया।मुस्लिम लीग तो यह सिद्ध करना चाहती थी, कि संसदीय प्रणाली भारत के लिए उपयुक्त नहीं है और मुस्लिम लीग ही भारतीय मुसलमानों की प्रतिनिधि संस्था है।

1837 के बाद जिन्ना को यह स्पष्ट मालूम हो गया, कि प्रजातंत्रीय व्यवस्था में मुस्लिम लीग को बहुमत नहीं मिल सकता। 1930 में मोहम्मद इकबाल ने मुस्लिम बहुमत वाले प्रांतों को एक राज्य बनाने का प्रस्ताव किया था।

अतः जिन्ना को अब उस प्रस्ताव का ध्यान आया, लेकिन वह इस योजना के प्रति ब्रिटिश सरकार की प्रतिक्रिया जानना चाहता था। अतः अक्टूबर,1938 में लीग की कार्यकारिणी के सदस्य इंग्लैण्ड में भारत सचिव व उप सचिव से मिले।भारत सचिव व उप सचिव ने अप्रत्यक्ष रूप से इस योजना पर अपनी सहमति प्रकट की।

यूरोप में द्वितीय विश्वयुद्ध आरंभ होने पर गवर्नर-जनरल ने भारतीय नेताओं से परामर्श किये बिना भारत को भी युद्ध में धकेल दिया, जिसके विरोध में कांग्रेसी मंत्रिमंडलों ने त्यागपत्र दे दिये। इस पर जिन्ना ने कहा, भारतीय मुसलमानों को हिन्दुओं के अत्याचार,अन्यायपूर्ण और क्रूर शासन से मुक्ति प्राप्त हुई है। जिन्ना ने भारतीय मुसलमानों को 22 दिसंबर,1939 को मुक्ति दिवस (Liberation Day)के रूप में मनाने की अपील की।

पाकिस्तान का प्रस्ताव-

मार्च,1940 में जिन्ना ने घोषणा की कि कोई भी संवैधानिक योजना यदि बिना मुसलमानों की सहमति के लागू होती है, तो मुसलमान उसका विरोध करेंगे।

22 मार्च,1940 को लाहौर में मुस्लिम लीग का वार्षिक अधिवेशन हुआ, जिसमें अध्यक्ष पद से बोलते हुए जिन्ना ने कहा, यदि ब्रिटिश सरकार वास्तव में भारत में लोगों की शांति एवं प्रसन्नता चाहती है तो हम सबके सामने एकमात्र मार्ग यही है कि भारत को स्वतंत्र राज्यों में बाँटकर प्रधान जातियों को अलग-2 घर बनाने की अनुमति प्रदान करे।

23 मार्च, 1940 को मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान का प्रस्ताव पास कर दिया, जिसमें कहा गया कि, इस देश में कोई भी संवैधानिक योजना मुसलमानों को उस समय तक स्वीकृत नहीं होगी, जब तक वह इस आधार पर न बनी हो कि उत्तर-पश्चिम तथा पूर्वी भारत में मुसलमानों के बहुमत वाले भौगोलिक दृष्टि से संलग्न क्षेत्रों को पृथक स्वायत्त संपन्न स्वतंत्र राज्यों के रूप में न बना दिया जाय।

जिन्ना ने यह भी स्पष्ट किया कि इसमें उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रांत,बलूचिस्तान, सिंध,पंजाब और पूर्व में बंगाल और असम शामिल होंगे।

इस प्रकार 1940 के बाद पाकिस्तान मुस्लिम लीग की विचारधारा का केन्द्र बिन्दु बन गया। कांग्रेस आरंभ से ही अखंड भारत की समर्थक थी। इसलिए कांग्रेस ने पाकिस्तान की माँग का विरोध किया। फलस्वरूप भारत के दो प्रमुख दलों में सीधी टक्कर आरंभ हो गयी।

1940 से 1947 के बीच भारत में जितनी राजनीतिक घटनाएँ घटित हुई, उनके मूल में मुस्लिम लीग की यह माँग और कांग्रेस द्वारा उसका विरोध ही था। स्वयं ब्रिटिश अधिकारी भी मुसलमानों को इसके लिए प्रोत्साहित करते रहते थे। इसलिए उत्तरोत्तर यह स्पष्ट होता गया कि साम्प्रदायिक समस्या(Communal problem) का एकमात्र राजनीतिक हल देश का विभाजन ही था।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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