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प्राचीन इतिहास तथा संस्कृति के प्रमुख स्थल :अरिकामेडू

केन्द्र शासित प्रदेश पाण्डिचेरी के तीन किलोमीटर दक्षिण में जिंजी नदी के तट पर स्थित अरिकामेडु दक्षिण भारत का एक प्रसिद्ध पुरास्थल है।यहाँ से फ्रांसिसी विद्वान जे. डूब्रील ने 1937 ई. में रोमन उत्पत्ति के मनके तथा बर्तन प्राप्त किये। 1941 ई. में फ्रांसीसी विद्वानों ने यहाँ खुदाई करके कुछ पुरावस्तुयें प्राप्त की। तत्पश्चात भारतीय पुरातत्व विभाग की ओर से 1945 ई. में एम. एस. ह्रीलर द्वारा यहाँ पर खुदाई करवायी गयी। तत्पश्चात 1947 -48 में वजे. एम. कासल तथा 1990 ई. के प्रारम्भ मे विमला वेगले द्वारा यहाँ उत्खनन कार्य करवाये गये। इस स्थान से प्राप्त अवशेषों से भारत तथा रोमन के बीच प्राचीन व्यापारिक संबंधों की अच्छी जानकारी मिलती है।

अरिकामेडू में दो क्षेत्रों में उत्खनन का कार्य हुआ- उत्तरी क्षेत्र में तथा दक्षिणी क्षेत्र में

  1. उत्तरी क्षेत्र में – मिट्टी
  2. दक्षिणी क्षेत्र में – ईंटों का बना हुआ भवन मिला है। दक्षिण क्षेत्र में बर्तनों का एक विशाल भण्डार भी प्राप्त हुआ है। स्वर्ण, बहुमूल्य पत्थरों तथा शीशे के बने हुए बहुत से मनके मिलते है।

तीन प्रकार की मिट्टी के बर्तन भी यहाँ मिलते हैं-

लाल रंग के चमकीले मृदभांड जिन्हें एरेटाइन (Arretine Ware) कहा जाता है। यह नामकरण उसके निर्माण स्थल एरीटीयम (आधुनिक इटली में एरेजो नामक स्थान) के आधार पर किया गय़ा है। इसके प्रमुख पात्र प्याले तथा तश्तरियाँ है जिनके ऊपर कोई अंलकरण नहीं मिलता। इन बर्तनों का निर्माण 20 से 50 ईस्वी के बीच भूमध्य सागरीय प्रदेशों में किया जाता था। व्यापारियों द्वारा ये मृद्भाण्ड दक्षिण भारत में लाये गये थे।

दो हत्था जार (मर्तबान) जिसे एम्फोरे (Amphorae) कहा गया है। इसका उपयोग रोम आदि पश्चिमी देशों में मदिरा अथवा तेल रखने में किया जाता था। ऐसा प्रतीत होता है कि इनमें मदिरा भरकर दक्षिण भारत में रोम से आती थी। अरिकामेडू के अतिरिक्त भारत के कुछ अन्य स्थानों जैसे काञ्चीपुरम्, नेवासा, उज्जैन, जुन्नार, द्वारका, नागदा तथा पाकिस्तान में तक्षशिला से रोम एम्फोरे प्राप्त होते हैं।

चक्रांकित मृद्भाण्ड जो काले, गुलाबी तथा भूरे रंग के है। इनके ऊपर चक्राकार डिजाइन मिलती है। ह्रीलर का अनुमान है कि इस प्रकार के बर्तन बहुत तेजी से घूमने वाले चाक के ऊपर अच्छी मिट्टी से बहुत ही सावधानीपूर्वक बनाये जाते थे। इस प्रकार के कुछ चक्रांकित भाण्ड नि:संदेश भूमध्य सागरीय प्रदेश से आयातित किये गये। इस प्रकार के कुछ मृदभांड कुछ अन्य स्थानों, जैसे- अमरावती, चन्द्रवल्ली. कोल्हापुर, मास्की, शिशुपालगढ़ आदि से भी मिलते है।

इनके अतिरिक्त अरिकामेडु से रोमन मूल की अन्य वस्तुये, जैसे- रोमन बर्तन, मिट्टी के दीप, काँच के कटोरे, मनके, रत्न आदि भी मिलती है। एक मनके के ऊपर रोमल सम्राट ऑगस्टम (ई. पू. 27 -14) का चित्र प्राप्त हुआ है। इटली से बने हुए लाल रंग के बर्तनों के टुकड़े भी अरिकामेडु से प्राप्त होते है जिसका समय ईसा की प्रथम शता. निर्धारित किया गया है।

अरिकामेडु के उत्खनन में जो सामग्रियाँ मिलती है इनमें विदित होता है कि ईसा की प्रारम्भिक शता. में भारत तथा रोम के बीच घनिष्ठ व्यापारिक सम्बन्ध था। रोम का माल अरिकामेडु के गोदामों में जमा होता था तथा फिर वहाँ से उसे देश के अन्य भागों में पहुँचाया जाता था। रोम को निर्यातित किये जाने वाले सुन्दर वस्त्र भी यहाँ तैयार किये जाते थे। यूनानी – रोमन लेखकों के विवरण से ज्ञात होता है कि रोम के लोग भारत की विलासिता सामग्रियों के बड़े शौकीन थे तथा इसके लिए भारी मात्रा में सोना व्यय करते थे।

रोमन लेखक प्लिनी अपने देशवासियों की इस अपव्ययिता के लिए निन्दा करता है। भारत के लोग रोमन मदिरा के विशेष रूचि रखते थे।

इस प्रकार भारत तथा रोम के बीच प्राचीन व्यापारिक सम्बन्धों का अध्ययन करने की दृष्टि से अरिकामेडु के उत्खनन से प्राप्त सामग्रियों का विशेष महत्व है।

दक्षिण भारत के सुप्रसिद्ध इतिहासकार प्रो. नीलकण्ड शास्त्री ने तो अरिकामेडु को एक ‘रोम बस्ती’ कहना पसन्द किया है।

अन्य प्रमुख स्थल

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
2. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास, लेखक-  वी.डी.महाजन 

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