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प्राचीन इतिहास तथा संस्कृति के प्रमुख स्थल सांची

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के समीप स्थित सांची बौद्ध स्तूपों के लिए संसार में प्रसिद्ध है। यहाँ पहाड़ी पर मौर्य शासक अशोक ने विशाल स्तूप का निर्माण करवाया था। यह ईंटों का बना था, जिसके चारों ओर लकड़ी की बाड़ लगी थी। तत्पश्चात् यहाँ अनेक स्तूप, विहार तथा मन्दिर बनवाये गये। ईसा-पूर्व तीसरी शती से लेकर पांचवीं शता. ईस्वी तक यहाँ निर्माण कार्य चलता रहा। साँची के दीर्घकाल तक बौद्ध धर्म से सम्बन्धित रहने के कारण इनका नाम चेतिय या चैत्यगिरि प्रसिद्ध हुआ।

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साँची की पहाड़ी पर तीन स्तूप मिलते है- एक बड़ा तथा दो छोटे। महास्तूप बुद्ध, द्वितीय अशोक कालीन धर्म प्रचारकों तथा तृतीय सीरिपुत्र और महामोद्ग्ल्यायन नामक बुद्ध के प्रिय शिष्यों के अवशेषों पर निर्मित है। इन्हें शुंगसातवाहन युग की रचना माना जाता है। अशोक द्वारा निर्मित महास्तूप शुंगकाल में पाषाण पाटियों से जड़ा गया। लकड़ी के स्थान पर पाषाण वेदिका बनाई गयी तथा चारों दिशाओं में चार तोरण लगा दिये गये। स्तूप का आकार भी द्विगुणित कर दिया गया। वस्तुतः इसके तोरण अत्यन्त सुन्दर, कलापूर्ण और आकर्षण है। वे बुद्ध की जीवन की घटनाओं तथा जातक कथाओं के चित्रों से भरे पड़े है और नीचे से ऊपर तक अलंकृत है। वे अपनी वास्तु से कही अधिक उत्कीर्ण अलकरणों के लिए विख्यात है। इन पर सिंह, हाथी, धर्मचक्र, यक्ष, त्रित्न आदि के चित्र खुदे हुए है।

महास्तूप के दक्षिण द्वार के पास अशोक का स्तम्भ खण्डित अवस्था में है। यहाँ के दो गुहा मन्दिरों के भी अवशेष मिलते है। साँची स्मारक भारतीय वास्तु एवं मूर्तिकलाओं की अमर कृतियाँ है। साँची से शिलाओं पर खुदे हुए कई लेख भी मिलते है। अशोक का लेख उसके स्तम्भ पर खण्डित अवस्था में है। जिसमें उसने संघ भेद रोकने हेतु राजाज्ञा प्रसारित की थी। वेदिकाओं पर अंकित लेखों में दानकर्त्ताओं के नाम सुरक्षित है। जिन्होनें स्मारकों के निर्माण मे योगदान किया। इनमें शासक, भिक्षु, सामान्यजन सभी है। मुख्य स्तूप के दक्षिण द्वार पर उत्कीर्ण लेख में सातवाहन शातकर्णि का नाम है। साँची के लेखों से तत्कालीन समाज एवं धर्म के विषय में भी पर्याप्त जानकारी होती है।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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