प्राचीन भारतइतिहास

भारत के प्रमुख चैत्य,विहार एवं गुफायें

चैत्यगृह का अर्थ-

चैत्य का शाब्दिक अर्थ है, चिता-संबंधी। शवदाह के बाद बचे हुए अवशेषों को भूमि में गाङकर उनके ऊपर जो समाधियां बनाई गई, उन्हीं को प्रारंभ में चैत्य अथवा स्तूप कहा गया। इन समाधियों में महापुरुषों के धातु-अवशेष सुरक्षित थे, अतः चैत्य उपासना के केन्द्र बन गये। कालांतर में बौद्धों ने इन्हें अपनी उपासना का केन्द्र बना लिया और इस कारण चैत्य-वास्तु बौद्धधर्म का अभिन्न अंग बन गया। पहले चैत्य या स्तूप खुले स्थान में होता था, किन्तु बाद में उसे भवनों में स्थापित किया गया। इस प्रकार के भवन चैत्यगृह कहे गये।

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चैत्य ये दो प्रकार के होते थे –

  1. पहाङों को काटकर बनाये गये चैत्य
  2. ईंट-पत्थरों की सहायता से खुले स्थान में बनाये गये चैत्य

भारत के प्रमुख चैत्य निम्नलिखित हैं-

पश्चिमी भारत में सातवाहनों के काल में अनेक चैत्यगृहों का निर्माण करवाया गया। चैत्यगृह तो कम मिलते हैं लेकिन विहार बङी संख्या में मिलते हैं।

समय के अनुसार इन चैत्यों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-

  1. हीनयानी चैत्य तथा
  2. महायानी चैत्य।

हीनयान मत में बुद्ध की मूर्ति नहीं बनवायी जाती थी। तथा प्रतीकों के माध्यम से ही उन्हें व्यक्त कर पूजा जाता था। इस दृष्टि से गुफा में स्तूप को ही स्थापित कर उसकी पूजा की जाती थी। हीनयान धर्म से संबंधित प्रमुख चैत्यगृह हैं- भाजा, कोण्डाने, पीतलखोरा, अजंता, बेडसा, नासिक तथा कार्ले।

इनमें किसी प्रकार का अलंकरण अर्थात् मूर्ति नहीं मिलती तथा साधारण स्तूप ही स्थापित किया गया है। इनका समय ईसा पूर्व दूसरी शता. से ईस्वी सन् की दूसरी शता. तक निर्धारित किया जाता है।

अधिकतर चैत्यगृहों में विहार भी साथ-2 ही बनाये गये हैं। सातवाहनयुगीन गुफायें हीनयान मत से संबंधित हैं, क्योंकि इस समय तक महायान का उदय नहीं हुआ था। अतः उनमें कहीं भी बुद्ध की प्रतिमा नहीं पाई जाती तथा उनका पादुका, आसन, स्तूप,बौधिवृक्ष आदि के माध्यम से ही किया गया है।

प्रमुख चैत्यों एवं विहारों का विवरण निम्नलिखित हैं-

भाजा-

यह महाराष्ट्र के पुणे जिले में स्थित है। भाजा की गुफायें पश्चिमी महाराष्ट्र की सबसे प्राचीन गुफाओं में से हैं, जिनका उत्कीर्णन ईसा पूर्व दूसरी शती के प्रारंभ में हुआ होगा। ये भोरघाट में कार्ले के दक्षिण में हैं। इनमें विहार, चैत्यगृह तथा 14 स्तूप हैं। चैत्यगृह में कोई मूर्ति नहीं मिलती, अपितु मंडप के स्तंभों पर त्रिरत्न, नंदिपद, श्रीवत्स, चक्र आदि उत्कीर्ण किये गये हैं। स्तंभों की कुल संख्या 27 है। यहाँ के विहार के भीतरी मंडप के तीनों ओर भिक्षुओं के निवास के लिये कोठरियाँ बनाई गयी थी, जिनमें से प्रत्येक में पत्थर की चौकी थी, जिस पर भिक्षु शयन करते थे।

मुखमंडप के स्तंभों के शीर्ष भाग पर स्त्री-पुरुष की वृषारोही मूर्तियां कलात्मक दृष्टि से अच्छी हैं। दो दृश्य विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। पहले में रथ पर सवार एक पुरुष दो अनुचरों के साथ तथा दूसरे में हाथी पर सवार अनुचर के साथ किसी पुरुष की आकृति है।

कोण्डाने-

यह कुलावा जिले में स्थित है। कार्ले से दस मील दूरी पर स्थित इस स्थान से चैत्य तथा विहार मिलते हैं। यहाँ का विहार प्रसिद्ध है, जो पूर्णतया काष्ठशिल्प की अनुकृति पर तैयार किया गया है।इसके बीच का बङा मंडप स्तंभों पर टिका हुआ है। स्तंभों पर गजपृष्ठाकार छत बनी है। मुखमंडप की पिछली दीवार में तीन प्रवेश द्वार तथा दो जालीदार झरोखे बनाये गये हैं। भीतरी मंडप के तीन ओर भिक्षुओं के आवास के लिये कक्ष बनाये गये हैं। कोण्डाने के चैत्य एवं विहार का निर्माण ईसा पूर्व की दूसरी शती. में करवाया गया था।

पीतलखोरा-

यह खानदेश में है। शतमाला नामक पहाङी में पीतलखोरा गुफायें खोदी गयी हैं। इनकी संख्या तेरह है। नासिक तथा सोपारा से प्रतिष्ठान की ओर जाने वाले व्यापारिक मार्ग पर यह स्थित था। यहाँ की गुफाओं का उत्कार्णन भी ईसा पूर्व दूसरी शती में आरंभ किया गया।पहले यहाँ हीनयान का प्रभाव था, किन्तु बाद में हीनयान मत का प्रचलन हुआ।

गुहा संख्या तीन चैत्यगृह है। इसका एक सिरा अर्धवृत्त (बेसर) प्रकार का है।इसमें 37 अठपहलू स्तंभ लगे थे, जिनमें 12 सुरक्षित हैं। ये मंडप तथा प्रदक्षिणापथ को अलग करते थे। स्तंभों पर उत्कार्ण दो लेखों से पता चलता है, कि पीतलखोरा गुफाओं का निर्माण प्रतिष्ठान के श्रेष्ठियों द्वारा करवाया गया था।

चैत्यगृह में बने स्तूप के भीतर धातु-अवशेषों से युक्त मंजूषायें रखी गयी थी। इसमें एक सोपान भी है, जिसमें 11सीढियां हैं। उनके दोनों ओर सपक्ष अश्व एवं उनके पीछे दो यक्ष खोदकर बनाये गये हैं। चौथी गुफा, जो एक विहार थी, का मुखमंडप मूर्तियों से अलंकृत था। उनके ऊपर कीर्तिमुख बनाये गये थे। छः चैत्यगवाक्ष अब भी सुरक्षित दशा में हैं। इनके नीचे उत्कीर्ण मिथुन मूर्तियां भव्य एवं सुंदर हैं।

स्तंभों पर भी अनेक अलंकरण हैं। उन्हें दो हाथी अभिषिक्त कर रहें हैं। किनारे वाले स्तंभों पर त्रिरत्नों एवं फूलों का अलंकरण है। द्वारपालों की मूर्तियां काफी प्रभावोत्पादक हैं। पाँच से नौ तक की गुफायें विहार एवं तेरहवीं गुफा चैत्यगृह है। नवीं गुफा सबसे बङी है। उसके भीतरी मंडप के छज्जे के ऊपर वेदिका अलंकरण है। चैत्यगृह के मंडप की दो स्तंभ पंक्तियां स्तूप के पीछे तक बनाई गयी हैं।

पीतलखोरा के चैत्य एवं विहारों पर हीनयान मत का प्रभाव स्पष्टतः परिलक्षित होता है। बौद्ध ग्रंथ महामायूरी में इस स्थान का नाम पीतंगल्य दिया गया है।

अजंता-

महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में अजंता की पहाङी स्थित है। तक्षण तथा चित्रकला दोनों ही दृष्टियों में भारतीय कला केन्द्रों में अजंता का स्थान अत्यंत ऊँचा है। यह ईसा पूर्व दूसरी शता.से लेकर सातवीं शता. ईस्वी तक हुआ। दूसरी शता. तक यहाँ हीनयान मत का प्रभाव था, तत्पश्चात् महायान मत का प्रभाव पङा। यहाँ कुल 29 गुफायें उत्कीर्ण की गयी। इनमें चार चैत्य तथा शेष 25 विहार गुफायें हैं।

अजंता की दसवीं गुफा सबसे प्राचीन चैत्य है। जिसका काल ईसा पूर्व दूसरी शती है। इसके मंडप तथा प्रदक्षिणापथ के बीच 59 स्तंभों की पंक्ति है। स्तंभ बीच में चौकोर तथा अंदर की ओर झुके हुए हैं।

मंडप के स्तूप के ऊपर टेढी धरन स्तंभों के सिरों से निकलती हुई दिखायी गयी है। इस गुफा के उत्खाता कलाकार ने इसे अनेक प्रकार से अलंकृत किया है। स्तूप का आधार गोलाकार है।, किन्तु उसके ऊपर का भाग लंबा अंडाकार है। नवीं गुफा भी चैत्य गृह है। इसका आकार छोटा है। इसके मुखपट्ट के मध्य में एक प्रवेश द्वार तथा अगल-बगल दो गवाक्ष बनाये गये हैं। तीनों के शीर्ष भाग पर छज्जा निकाल हुआ है।उसके ऊपर संगीतशाला है तथा इसके ऊपर कीर्तिमुख है। इससे चैत्य के भीतर प्रकाश एवं वायु का प्रवेश होता था। सामने की ओर वेदिका का अलंकरण तथा भीतर वर्गाकार मंडप स्थित है।

अजंता की 12 वीं, 13 वीं तथा 8 वीं गुफायें विहार हैं। 12 वीं गुफा सबसे प्राचीन है, जो 10 वीं गुफा चैत्यगृह से संबंधित है। 9वीं चैत्यगुहा के साथ 8वी. विहार गुहा का निर्माण हुआ। यह हीनयान से संबंधित है। अन्य गुफायें महायान मत की हैं। अजंता की 5 गुफायें (10,9,8,12,13) ही प्रारंभिक चरण की हैं। कालांतर में अन्य गुफायें उकेरी गयी। 16वीं -17वीं गुफायें विहार तथा पहली दूसरी चैत्य गृह हैं।

वेडसा की गुफायें-

कार्ले के दक्षिण में 10 मील की दूरी पर वेडसा स्थित है। यहां की गुफायें अधिक सुरक्षित दशा में हैं। काष्टशिल्प से पाषाणशिल्प में रूपांतरण वेडसा में दर्शनीय है। चैत्य के सामने एक भव्य बरामदा है। इसके स्तंभ 25 फीट ऊँचे हैं। ये अठकोणीय हैं तथा इनके शीर्ष पर पशुओं की आकृतियां खुदी हुई हैं। कुछ पशुओं पर मनुष्य भी सवार हैं, जिन्हें अत्यंत कुशलता से तराशा गया है। स्तंभों के नीचे के भाग पूर्ण कुंभ में टिकाये गये हैं। पशु तथा मनुष्य, दोनों की रचना में कलाकार की निपुणता प्राप्त हुई है। वास्तु तथा तक्षण दोनों का अद्भुत समन्वय यहाँ देखने को मिलता है। गुफा के मुख द्वार को वेदिका से अलंकृत किया गया है।

कीर्तिमुख में भी वेदिका अलंकरण है। समस्त मुख भाग वास्तु तथा शिल्प कला का सर्वोत्तम नमूना है। वेदिका तथा जालीदार गवाक्ष इतनी बारीकी से तराशे गये हैं, कि वे किसी स्वर्णकार की रचना लगते हैं। सौन्दर्य की दृष्टि से विडसा चैत्यगृह के मुखपट्ट की बराबरी में केवल कार्ले गुफा का मुखपट्ट ही आता है। चैत्य में अंदर जाने के लिये तीन प्रवेश द्वार हैं।

वेडसा चैत्यगृह के पास आयताकार विहार है। इसमें एक चौकोर मंडप है, जिसका पिछला हिस्सा वर्गाकार है। इसके तीन ओर चौकोर कक्ष बने हुए हैं।

नासिक की गुफायें-

कार्ले की गुफायें-

कन्हेरी की गुफायें-

पूर्वी भारत के विहार-

पश्चिमी भारत के ही समान पूर्वी भारत में भी पर्वत गुफाओं को काटकर विहार बनवाये गये। इनमें उङीसा की राजधानी भुवनेश्वर के समीप स्थित उदयगिरि तथा खंडगिरि के गुहा विहारों का उल्लेख किया जा सकता है। उदयगिरि में 19 तथा खंडगिरि के गुहा विहारों का उल्लेख किया जा सकता है। उदयगिरि व्याघ्रगुंफा है।

खंडगिरि की प्रमुख गुफायें हैं – नवमुनिगुंफा, देवसभा, अनन्तगुफा आदि। इन गुफाओं का निर्माण कलिंग के चेदि वंशी शासक खारवेल (ईसा पूर्व प्रथम शता.) ने जैन भिक्षुओं के आवास हेतु करवाया था।

उदयगिरि की रानीगुंफा सबसे बङी है। यह दुतल्ली है। प्रत्येक तले में मध्यवर्ती कक्ष तथा आंगन है। आंगन के तीन ओर कमरे बनाये गये हैं। इसमें कई मनोहर दृश्यों का अंकन हुआ है।

इनमें प्रेमाख्यान तथा स्त्री-अपहरण जैसे दृश्य भी हैं। गणेशगुंफा में आखेट के दृश्य, उदयन-वासवदत्ता एवं दुष्यंत-शंकुतला जैसे कथानकों के दृश्य उत्कीर्ण किये गये हैं। विविध प्राकृतिक दृश्यों, शालभंजिका, कल्पवृक्ष आदि का भी चित्रण है।

खंडगिरि की अनंतगुंफा के सम्मुख अलंकृत बरामदा सात स्तंभों पर टिका हुआ है। गुहा भित्ति पर गजलक्ष्मी, कमल, नाग मिथुन, विद्याधर युगल आदि के दृश्य हैं। कमल पर खङी देवी लक्ष्मी की मूर्ति सबसे विशिष्य है। इसमें दो हाथी देवी का अभिषेक करने की मुद्रा में दिखाये गये हैं। उल्लेखनीय है कि उङीसा की गुफाओं में किसी प्रकार के चैत्य अथवा स्तूप नहीं दिखाये गये हैं जैसे कि पश्चिमी भारत में गुफाओं में मिलते हैं। इनमें उत्कीर्ण कुछ चित्र रिलीफ स्थापत्य के अच्छे उदाहरण हैं।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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