प्राचीन भारत

शैल चित्रकला

पुरापाषाण काल एवं मध्यपाषाण काल के शैलाश्रयों में उत्कीर्ण चित्रों से तत्कालीन मानव की कलात्मक अभिव्यक्ति प्रकट होती है।

पुरापाषाण काल की शैल चित्रकला के अवशेष भीमबेटका से प्राप्त हुए हैं। 10 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 500 के लगभग शैलाश्रयों में इसके अवशेष मिले हैं। इस चित्रों में छोटे चित्र भी हैं तथा 3मीटर लंबे चित्र भी बने हैं इनमें भैंसा, हाथी, बाघ, गेंडा, सुअर आदि पशुओं के चित्र निर्मित हैं । इन चित्रों में हरे, लाल रंग भरे गए हैं तथा इन चित्रों में मानव – आकृतियां भी चित्रित की गई हैं।

मध्यपाषाण काल में भीमबेटका के अलावा अादमगढ, प्रतापगढ, मिर्जापुर में शैल चित्रकला के साक्ष्य प्राप्त हैं।

शैल चित्रकला से भौतिक तथा सामाजिक जीवन के संबंध में जानकारी मिलती है। अधिकांश चित्र शिकारी मानव को प्रदर्शित करते हैं । पशुओं के आखेट के चित्रों के अतिरिक्त मछली पकङने, खाद्य संग्रह, शवाधान पद्धति, यौन संबंध, अनुष्ठान आदि के चित्र भी हैं।

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