शूद्रक गुप्तकाल में उत्पन्न हुये थे। उनका प्रसिद्ध नाटक मृच्छकटिक है, जिसे सामाजिक नाटकों में प्रमुख स्थान प्राप्त है। इसके दस अंकों में ब्राह्मण, जो समय से निर्धन है, तथा उज्जयिनी की प्रसिद्ध गणिका वसन्तसेना के आदर्श प्रेम की कहानी वर्णित है। पात्रों के चरित्र-चित्रण में शूद्रक को विशेष सफलता मिली है। शूद्रक ने चारुदत्त के माध्यम से भारत के आदर्श नागरिक का चित्रण किया है।
वसन्तसेना में हमें अनेक स्त्री सुलभ गुणों का समावेश देखने को मिलता है। वेश्या होने पर भी वह सदाचारी चारुदत्त की प्रेमपात्री बनने का निरंतर स्त्री सुलभ गुणों का समावेश देखने को मिलता है। वेश्या होने पर भी वह सदाचारी चारुदत्त की प्रेमपात्री बनने का निरंतर प्रयत्न करती है। नाटक से उस काल की समृद्धि सूचित होती है। यह भी पता चलता है, कि ब्राह्मण लोग भी व्यापार-वाणिज्य का कार्य करने लगे थे। चारुदत्त का परिवार कई पीढियों से इस पेशे में जुटा हुआ था।
मृच्छकटिक में शैली सरल तथा वर्णन विस्तृत है। प्राकृत की सभी भाषाओं का प्रयोग इसमें एक साथ मिलता है। प्रथम बार संस्कृत में शूद्रक ने ही राज परिवार को छोङकर समाज के मध्यम वर्ग के लगों को अपने पात्र बनाये हैं। इसके कथानक तथा वातावरण में स्वाभाविकता है। इस दृष्टि से शूद्रक की नाट्यकला बङी ही प्रशंसनीय है। पाश्चात्य आलोचकों ने इसकी बङी ही सराहना की है तथा मृच्छकटिक को सार्वभौम आकर्षक का नाटक बताया है, जिसका सफल मंचन विश्व में कहीं भी किया जा सकता है।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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