पर्यावरण के बारे में जानकारी
पर्यावरण क्या है (What is Environment)
पर्यावरण (Environment) शब्द का निर्माण दो शब्दों से मिल कर हुआ है। “परि” जो हमारे चारों ओर है”आवरण” जो हमें चारों ओर से घेरे हुए है,अर्थात पर्यावरण का शाब्दिक अर्थ होता है चारों ओर से घेरे हुए। पर्यावरण उन सभी भौतिक, रासायनिक एवं जैविक कारकों की समष्टिगत एक इकाई है जो किसी जीवधारी अथवा पारितंत्रीय आबादी को प्रभावित करते हैं तथा उनके रूप, जीवन और जीविता को तय करते हैं। पर्यावरण वह है जो कि प्रत्येक जीव के साथ जुड़ा हुआ है और हमारे चारों तरफ वह हमेशा व्याप्त होता है।

पर्यावरण वर्तमान काल में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विषय बन गया है, क्योंकि पृथ्वी पर मनुष्य का जीवन इसी पर निर्भर है। 20 वीं शताब्दी विकास की शताब्दी रही तथा इस शताब्दी में मनुष्य की आबादी में बहुत वृद्धि हुई तथा उसके जीवन स्तर में बहुत अधिक विकास हुआ। किन्तु इस आबादी की वृद्धि तथा विकास ने प्रकृति के विनाश को आमंत्रित किया है।
अन्धाधुंध वृक्षों की कटाई, जैव विविधता का लुप्त होना, कल कारखानों से जहर उगलती चिमनियां, नदियों और तालाबों से बढती हुई गंदगी, वाहनों की भरमार तथा ध्वनि प्रदुषण और तीव्र गति से बढती जनसंख्या पर्यावरण पर वज्रपात है। इसके कारण पृथ्वी पर मनुष्य जीवन का सहज रूप से निर्वहन हो पाना असंभव सा होता जा रहा है।
मनुष्य ने हजारों वर्ष पूर्व प्राकृतिक वातावरण में परिवर्तन प्रारंभ किया। उसने बस्तियां बसाई, जंगल साफ करके खेती की तथा बस्तियों को जोङने के लिये सङकें बनाई। मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये वातावरण में परिवर्तन करता रहा है। जब तक जनसंख्या परिवर्तन नहीं कर पाया। ढाई शताब्दी पूर्व औद्योगिक क्रांति के प्रारंभ तथा विज्ञान और तकनीकी ज्ञान के विकास ने मनुष्य की आबादी की वृद्धि की दर तथा उसकी प्रकृति के संसाधनों का दोहन करने की क्षमता को बहुत बढा दिया। इसके साथ ही मनुष्य की आवश्यकता बढती गयी तथा उपभोक्तावाद हावी हो गया।
तकनीकी परिवर्तन
मनुष्य ने आज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में इतनी अधिक वैज्ञानिक उन्नति कर ली है कि उसका जीवन बहुत अधिक आरामदायक हो गया है। जब से मनुष्य ने प्रकृति को चुनौती देना प्रारंभ किया तभी से तकनीकी क्रांति प्रारंभ होती है। तकनीकी क्रांति से आर्थिक उन्नति हुई, जीवन सुगम हो गया। प्रत्येक कार्य के लिये मशीनों का अत्यधिक उपयोग होने लगा। विश्व के विभिन्न देशों में तकनीकी उन्नति की होङ मच गयी।
विकासशील देश भी इस होङ में विकसित देशों से मुकाबला करने का प्रयास करने लगे। मनुष्य प्रकृति को चुनौती देने में सक्षम हो गया किन्तु प्रकृति के नियमों की अवहेलना करने से मनुष्य के जीवन की निरंतरता के लिये आवश्यक पर्यावरण में असंतुलन उत्पन्न हो गया। जिन क्षेत्रों में तकनीकी परिवर्तन हुए उन सभी क्षेत्रों में प्राकृतिक समस्याएं उत्पन्न हो गयी। इससे धरती पर मनुष्य, सभी प्राणियों तथा वनस्पति के लिये खतरा उत्पन्न हो गया।
मनुष्य ने लगभग आधी शताब्दी पूर्व ही इस खतरे को भांप लिया तथा इन समस्याओं के हल के पारिस्थितिकी विज्ञान का प्रारंभ हुआ। मनुष्य प्रकृति के संरक्षण में रहकर ही अपना विकास कर सकता है। प्रकृति को हानि पहुँचाकर वह कभी अपना जीवन निर्वाह नहीं कर सकेगा। तकनीकी क्रांति से मनुष्य का आर्थिक विकास हुआ है। इससे पारिस्थितिकी असंतुलन इस सीमा तक पहुँच गया है कि धरती अधिक समय तक जीवन को धारण करने में सक्षम नहीं रह पायेगी।
तकनीकी क्रांति के नकारात्मक प्रभाव
तकनीकी क्रांति से उत्पादन बढा है। परिवहन संसाधनों का विकास हुआ। ऊर्जा के विविध स्रोतों का विकास हुआ है। बहुमंजिले भवन बनाना संभव हुआ है। जीव विज्ञान और अंतरिक्ष विज्ञान का विकास हुआ है। किन्तु दूसरी और आर्थिक केन्द्रीकरण, पर्यावरण प्रदूषण, अति उत्पादन और आणविक अस्र शस्रों का निर्माण, आबादी का विस्तार, मिट्टी का अपर्दन, वनों का विनाश, मरूस्थली करण, हरित गृह प्रभाव से धरती के तापमान में वृद्धि तथा ओजोन परत का क्षरण तकनीकी क्रांति से उत्पन्न होने वाली बुराईयाँ हैं।
मनुष्य ने प्रकृति पर नियंत्रण कर उसका शोषण प्रारंभ किया तथा अक असंतुलन की स्थिति उत्पन्न कर दी। धरती पर प्रकृति प्रदत्त भूदृश्यों की जगह मानव कृत भूदृश्यों की बहुलता हो गयी। मनुष्य ने प्रकृति की अवहेलना करके बहुत बङे परिवर्तन किए हैं। प्रकृति के साथ यह छेङ छाङ मनुष्य के लिए महंगी पङ रही है, तथा अब प्रकृति मनुष्य के प्रति आक्रामक होती जा रही है। मनुष्य ने जिस क्रूरता से प्रकृति का अतिक्रमण किया है, उससे अनेकों पर्यावरणीय समस्याएं उत्पन्न हो गयी हैं।
