परमार वंश के सिंधुराज का इतिहास
परमार शासक मुंज के कोई पुत्र नहीं था, अतः उसकी मृत्यु के बाद उसका छोटा भाई सिंधुराज शासक बना। उसने कुमारनारायण तथा साहसाङ्क जैसी उपाधियां धारण की थी।
सिंधुराज एक महान विजेता और साम्राज्य का निर्माता था। राजा बनने के बाद वह अपने साम्राज्य की प्रतिष्ठा को पुनर्स्थापित करने के कार्य में जुट गया । उसका सबसे पहला कार्य कल्याणी के चालुक्यों से अपने उन क्षेत्रों को जीतना था, जिन पर मुंज को हराकर तैलप ने अधिकार कर रखा था। उसका समकालीन चालुक्य नरेश स्तयाश्रय था।
नवसाहसांकचरित से पता चलता है, कि सिंधुराज ने कुंतलेश्वर द्वारा अधिग्रहीत अपने राज्य को तलवार के बल पर पुनः अपने अधिकार में किया था। यहां कुंतलेश्वर से तात्पर्य सत्याश्रय से ही है। उसके बाद उसने अन्य स्थानों की विजय का कार्य प्रारंभ किया।
पद्मगुप्त जो एक महान विद्वान था, सिंधुराज को लाट, कोशल, अपरांत तथा मुरल का विजेता बताता है। कोशल जो वर्तमान में छतीसगढ राज्य में स्थित था। लाट का प्रदेश गुजरात में था, जहां कल्याणी के चालुक्य सामंत गोग्गीराज शासन कर रहा था। सिंधुराज ने उस पर आक्रमण कर उसे परास्त कर किया तथा वहीं से अपरांत (कोंकण) की विजय की, जहां शिलाहार वंश का शासन था।शिलाहारों ने उसकी अधीनता स्वीकार कर ली थी।
अनुग्रहीत नामक नाग शासक ने सिंधुराज के साथ अपनी कन्या शशिप्रभा का विवाह कर दिया ।
उत्तर की तरफ सिंधुराज ने हूण मंडल को हराया था। ऐसा प्रतीत होता है, कि सिंधुराज ने हूणों को पूरी तरह से हरा दिया था।
गुजरात के चालुक्य शासक मूलराज प्रथम के पुत्र चामुण्डराज के हाथों सिंधुराज को पराजित होना पङा था। सिंधुराज की इस पराजय के बारे में जससिंहसूरि कृत कुमारभूपालचरित तथा वाडनगर लेख बताते हैं।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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