परमार वंश के शासक वाक्पति मुंज का इतिहास
परमार शासक सीयक के दो पुत्र थे – मुंज तथा सिंधुराज। इनमें मुंज उसका दत्तक पुत्र था, लेकिन सीयक की मृत्यु के बाद वही गद्दी पर बैठा। इतिहास में मुंज वाक्पति मुंज तथा उत्पलराज के नाम से प्रसिद्ध है।
प्रबंधचिंतामणि में उसके जन्म के विषय में एक अनोखी कथा मिलती है। इस कथा के अनुसार सीयक को बहुत दिन तक कोई पुत्र नहीं था। संयोगवश उसे एक दिन मुंज घास में पङा एक नवजात शिशु मिला। सीयक उसे उठाकर घर लाया तथा पालन पोषण करके बङा किया। बाद में उसकी अपने पत्नी से सिंधुराज नामक पुत्र भी उत्पन्न हो गया। लेकिन सीयक अपने दत्तक पुत्र से पूर्ववत स्नेह करता रहा। मूंज में पङे होने के बाद से ही उसका नाम मुंज रखा गया। सीयक ने स्वयं उसे अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था।
वाक्पति मुंज एक शक्तिशाली शासक था। मुंज साम्राज्यवादी व्यक्ति था, अतः उसने प्रारंभ से ही अनेक युद्ध किये थे। मुंज ने कलचुरि शासक युवराज द्वितीय को हराकर उसकी राजधानी त्रिपुरी को लूटा। हूण मंडल के हूणों ने उसकी अधीनता स्वीकार की। इसमें मालवा क्षेत्र सम्मिलित था। मुंज ने मेवाङ के गुहिल वंशी शासक शक्तिकुमार को हराकर उसकी राजधानी आघाट (उदयपुर स्थित अहर) को लूटा। राष्ट्रकूट वंशी धवल के बीजापुर लेख से पता चलता है, कि गुहिल नरेश ने भागकर धवल के दरबार में शरण ली। इस युद्ध में गुर्जर वंश का कोई शासक भी शक्तिकुमार की ओर से लङा था, किन्तु वह भी मुंज द्वारा पराजित किया गया। दशरथ शर्मा तथा एच. सी.राय उसे चालुक्य नरेश मूलराज मानते हैं।
प्रथम हूण आक्रमण किसके काल में हुआ?
नड्डुल के चौहानों से भी मुंज का संघर्ष हुआ था। चौहान शासक बलिराज को हराकर उसने आबू पर्वत तथा जोधपुर के दक्षिण का भाग छीन लिया। पश्चिम में उसने लाट राज्य पर आक्रमण किया। इस समय लाट प्रदेश पर कल्याणी के चालुक्यों का अधिकार था, जहाँ तैल द्वितीय का सामंत वारप्प तथा उसका पुत्र गोग्गीराज शासन करते थे। मुंज ने वारप्प को पराजित किया। परिणामस्वरूप उसका चालुक्य नरेश तैल से संघर्ष छिङ गया।
प्रबंधचिंतामणि से पता चलता है, कि मुंज ने छः बार तैल की सेनाओं को पराजित किया और अंत में अपने मंत्री रुद्रादित्य के परामर्श की उपेक्षा करते हुये उसने गोदावरी नदी पार कर स्वयं राष्ट्रकूट राज्य पर आक्रमण कर दिया। उसे राष्ट्रकूटों की शक्ति का सही अनुमान नहीं था। मुंज राष्ट्रकूट सेनाओं द्वारा पराजित किया गया तथा बंदी बना लिया गया। तैल ने नर्मदा नदी तक परमार राज्य के दक्षिणी भाग पर अधिकार कर लिया। उसने कारागार में ही परमार नरेशमुंज का वध करवा दिया।
मुंज एक उदार संरक्षक के रूप में
मुंज ने 992 ईस्वी से लेकर 998 ईस्वी तक राज्य किया था। विजेता होने के साथ-2 वह स्वयं एक उच्चकोटि का कवि एवं विद्या और कला का उदार संरक्षक था।
पद्मगुप्त, धनंज्जय, धनिक, हलायु, अमितगति जैसे विद्वान उसके राजदरबार में निवास करते थे।
पद्मगुप्त नामक विद्वान मुंज की विद्वता तथा विद्या का विस्तृत वर्णन करता है, जैसे “कि विक्रमादित्य के चले जाने तथा सातवाहन के अस्त हो जाने पर सरस्वती को कवियों के मित्र मुंज के यहाँ ही आश्रय प्राप्त हुआ था“।
मुंज महान निर्माता भी था, जिसने अनेक मंदिरों तथा सरोवरों का निर्माण करवाया था। अपनी राजधानी में उसने मुंजसागर नामक एक तालाब बनवाया था तथा गुजरात में मुंजपुर नामक नये नगर की स्थापना करवायी थी। उज्जैन, धर्मपुरी, माहेश्वर आदि में उसने कई मंदिरों का निर्माण भी करवाया था। इस प्रकार उसकी प्रतिभा बहुमुखी थी।
मुंज ने श्रीवल्लभ, पृथ्वीवल्लभ, अमोघवर्ष जैसी उपाधियाँ भी धारण की थी।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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