इतिहासपरमार वंशप्राचीन भारत

मालवा का परमार वंश के इतिहास के साधन

परमारों का परिचय- अग्निकुण्ड से जिन राजपूत वंशों की उत्पत्ति हुई है, उनमें मालवा के परमार प्रमुख हैं। पद्मगुप्त जो परमार काल के प्रमुख कवि थे, के ग्रंथ नवसाहसांकचरित में परमारवंश की उत्पत्ति आबू पर्वत से बताई है।

राजपूतों की उत्पत्ति संबंधि विभिन्न मत

इतिहास के साधन : अभिलेख

परमारवंश का इतिहास हम अभिलेख, साहित्य तथा विदेशी विवरणों के आधार पर ज्ञात करते हैं। इस वंश के अभिलेखों में सर्वप्रमुख सीयक द्वितीय का हर्सोल अभिलेख जो 948 ईस्वी का है, जिसमें परमारवंश के प्रारंभिक इतिहास के बारे में बताया गया है।

वाक्पति मुंज का उज्जैन अभिलेख जो 980 ईस्वी का है, भोज के बांसवाङा तथा बेतवा के अभिलेख, उदयादित्य के समय की उदयपुर-प्रशस्ति, लक्ष्मदेव की नागपुर-प्रशस्ति आदि में परमारों के इतिहास का उल्लेख किया गया है।

इन सभी अभिलेखों में सर्वाधिक उदयपुर-प्रशस्ति है, जो भिलसा के समीप उदयपुर नामक स्थान के नीलकंठेश्वर मंदिर के एक शिलापट्ट के ऊपर उत्कीर्ण है। यह परमार वंश के शासकों के नाम तथा उनकी उपलब्धियों को जानने का प्रमुख साधन है ।

इतिहास के साधन : ग्रंथ

परमारवंश के इतिहास के बारे में हमें विभिन्न ग्रंथों से भी पता चलता है। इन ग्रंथों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ पद्मगुप्त द्वारा रचित नवसाहसांकचरित है। पद्मगुप्त परमार नरेशों वाक्पतिमुंज तथा सिंधुराज का राजकवि था। यद्यपि इस ग्रंथ में उसने मुख्यतः अपने आश्रयदाता राजाओं के जीवन तथा कृतियों का ही वर्णन किया है, फिर भी इसमें परमारवंश के इतिहास से संबंधित अनेक महत्त्वपूर्ण तथ्य भी मिलते हैं।

जैन ग्रंथ प्रबंधचिंतामणि जो मेरुतुंग द्वारा लिखित है में भी परमारवंश के बारे में पता चलता है। इस ग्रंथ में विशेषकर गुजरात के चालुक्य शासकों के साथ परमारों के संबंधों की जानकारी प्राप्त होती है।

वाक्पतिमुंज तथा भोज स्वयं विद्वान तथा विद्वानों के संरक्षक थे। उनके काल में अनेक ग्रंथों की रचना हुई थी।

मुसलमान लेखकों जैसे अबुलफजल की आइने-अकबर, अल्बरूनी एवं फरिश्ता के विवरण आदि से भी परमार शासकों के बारे में पता चलता है।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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