स्वतंत्र परमार साम्राज्य की स्थापना : हर्ष अथवा सीयक द्वितीय (945 – 972 ईस्वी)
परमार वंश को स्वतंत्र स्थिति में लाने वाला पहला शासक हर्ष था जो वैरिसिंह द्वितीय का पुत्र था। यह सीयक द्वितीय के नाम से भी जाना जाता था। वैरिसिंह के समय में प्रतिहारों ने मालवा परअधिकार कर लिया था। तथा परमारों को मांडू तथा धारा से भगा दिया था। ऐसा लगता है, कि इस समय परमारों ने भागकर राष्ट्रकूटों के यहाँ पर शरण ली थी। इस प्रकार परमार तथा राष्ट्रकूट सत्ता से अपने वंश को मुक्त कराना सीयक का उत्तरदायित्व हो गया था।
इस समय प्रतिहार साम्राज्य पतन की अवस्था में था। इस स्थिति का लाभ उठाते हुये सीयक ने मालवा तथा गुजरात में अपनी स्थिति मजबूत कर ली थी। इसके बाद उसने अन्य स्थानों को जीतने का अभियान प्रारंभ किया था।सीयक के हर्सोल लेख से पता चलता है, कि योगराज नामक किसी शत्रु को उसने जीत लिया था।
खजुराहो लेख से पता चलता है, कि चंदेल शासक यशोवर्मन् ने सीअक को पराजित किया था। उसे मालवों के लिये काल के समान (काल-वन्मालवानाम्) कहा गया है। ऐसा प्रतीत होता है,कि यशोवर्मन् ने परमार राज्य के किसी भाग पर अधिकार नहीं किया तथा उसका युद्ध केवल परमारों को आतंकित करने के लिये ही था।
सीयक को सबसे महत्त्वपूर्ण सफलता राष्ट्रकूटों के विरुद्ध मिली तथा उसने अपने वंश को राष्ट्रकूटों की अधीनता से मुक्त करवाया । नर्मदा नदी के तट पर राष्ट्रकूट नरेश खोट्टिग की सेनाओं के साथ युद्ध हुआ, जिसमें सीयक की विजय हुई। उसने राष्ट्रकूट नरेश का उसकी राजधानी मान्यखेत तक पीछा किया तथा वहाँ से बहुत अधिक सम्पत्ति लूट कर लाया। वह अपने साथ ताम्रपत्रों की अभिलेखागार में सुरक्षित प्रतियां भी उठा ले गया।
इन्हीं में से एक लेख गोविंद चतुर्थ का था, जिस पर बाद में एक ओर मुंज नेअपना लेख खुदवाया था। राष्ट्रकूटों के साथ संघर्ष में सीयक का एक सेनापति भी मारा गया था।
उसकी इस विजय से परमार राज्य की दक्षिणी सीमा ताप्ती नदी तक जा पहुँची। इस प्रकार सीयक एक शक्तिशाली सम्राट सिद्ध हुआ ।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
India Old Days : Search