जापान में कृषि सुधार
शोगून की समाप्ति और मेजी पुनर्स्थापना, दोनों घटनाएँ अत्यन्त असाधारण ढंग से सम्पन्न हुई, लेकिन इन घटनाओं ने जापान को नवजीवन प्रदान किया, जिससे वह कुछ ही वर्षों में एक आधुनिक राज्य बन गया। जापान के लोगों में विदेशियों के प्रति विरोध की भावना विद्यमान थी और वे किसी तरह विदेशियों को अपने राज्य से निकाल बाहर कर देना चाहते थे।
किन्तु वे चीन की हो रही दुर्दशा से भी परिचित थे और इसलिये वे अनुभव कर रहे थे, कि इन विदेशियों से अपने देश की रक्षा करने का एकमात्र उपाय उन्हीं के साधनों, ज्ञान-विज्ञान, तकनीकी और सैन्य संगठन को अपनाना है। जापानियों की धारणा थी, कि जापान स्वयं एक आधुनिक शक्तिशाली राज्य बनकर ही पाश्चात्य साम्राज्यवाद का मुकाबला कर सकता है।
अतः जापान में देश के आधुनिकीकरण के लिये एक प्रबल आंदोलन आरंभ हो गया, जिसके फलस्वरूप देश के जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आमूल परिवर्तन हुए और जापान का कायाकल्प हो गया। इन्हीं परिवर्तनों में से एक परिवर्तन था – कृषि संबंधी सुधार जिसके बारे में इस पॉस्ट में हम पढेंगे-
जापान में कृषि सुधार कार्य – 1868 ई. के बाद जापान में केवल औद्योगिक विकास ही नहीं हुआ, बल्कि कृषि में भी अभूतपूर्व सुधार हुआ। सामंती प्रथा के समाप्त हो जाने से किसानों की स्थिति में सुधार हुआ। 1872 ई. में किसानों का उनके खेतों पर स्वत्व स्थापित हो गया। पूर्व में सामंत लोग अपनी जागीर में भूमि जोतने वाले किसानों से उनकी उपज का एक निश्चित भाग लगान के रूप में लेने लगे थे, किन्तु सरकार ने अब उपज का भाग लेने के स्थान पर नकद मालगुजारी लेनी आरंभ कर दी। फिर भी सरकार को बढते खर्च को पूरा करने के लिये धन की सख्त आवश्यकता थी, जिससे वह किसानों को कोई विशेष राहत नहीं दे सकी।
किसानों ने शोगून शासन का विरोध और मेजी व्यवस्था का समर्थन इस आशा से किया था, कि सभी सरकारी भूमि उनमें बँट जाएगी और उनके करों का भार हल्का हो जायेगा, किन्तु सरकार में सामंतों की बहुतायत और शासन की आर्थिक कठिनाइयों के कारण ऐसा न हो सका।
जुलाई, 1873 ई. में जमीन की कीमत फसल के मूल्य के औसत से 16 गुने के हिसाब से तय की गयी और जमीन की कीमत का तीन प्रतिशत लगान तय किया गया, जिसे जमीन के मालिक से वसूल किया जाता था। कीमतों में उतार-चढाव के दिनों में इस लगान से किसानों को काफी हानि उठानी पङी।
अतः मेजी शासन के प्रथम दस वर्षों में दो सौ से भी अधिक विद्रोह हुए। कुछ मायूस सामूराइयों ने लोगों को भङकाया। 1876 ई. में सरकार को लगान की दर, जमीन की कीमत की ढाई प्रतिशत करनी पङी, लेकिन इससे भी किसानों को कोई खास राहत नहीं मिल सकी।
जापान में कृषि सुधार तथा सरकार का रवैया
ऐसी स्थिति में सरकार ने किसानों की स्थिति सुधारने हेतु दूसरे उपायों का सहारा लिया। अब कृषि की उन्नति के लिये पैदावार बढाने पर विशेष बल दिया गया। किसानों को हर प्रकार से राजकीय सहायता दी गयी ताकि वे पैदावार बढा सकें। उन्हें वैज्ञानिक तरीकों से खेती करना सिखाया गया, लेकिन इससे भी किसान संतुष्ट नहीं हुए, क्योंकि उनसे लगान बङी कङाई से वसूल किया जाता था। अनाज की कीमत गिर जाने से किसानों की कठिनाइयाँ और भी बढ गयी और वे लगान चुकाने में भी कठिनाई अनुभव करने लगे।
जैसे ही फसल कटती थी, उन्हें मालगुजारी देने के लिये बाध्य किया जाता था। 1883 ई. से 1890 ई. तक कर वसूल करने के लिये किसानों पर घोर अत्याचार किये गये। ऐसी स्थिति में किसानों को अपनी जमीनें बेचनी पङी, जिन्हें जापान के धनी व्यक्तियों एवं पुराने सामंतों ने खरीद लिया। इस प्रकार जापान में एक नया सामंत वर्ग पैदा हो गया तथा भूमिहीन किसान मजदूर बन गये।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है, कि जापानी समाज को जो वर्ग सामंती व्यवस्था के अंतर्गत शोषित था, उसकी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ, क्योंकि नई व्यवस्था के अन्तर्गत भी उसका शोषण चलता रहा। वस्तुतः मेजी पुनर्स्थापना ने जापान के राजानीतिक, सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था के उस बुर्जुआ पूँजीवादी ढाँचे को तैयार किया, जिसके अंतर्गत ही जापान को आगे बढना था। मेजी पुनर्स्थापना ने जापान को आधुनिक पूँजीवाद का स्वर्ग बना दिया।
1. पुस्तक- आधुनिक विश्व का इतिहास (1500-1945ई.), लेखक - कालूराम शर्मा
Online References
Wikipedia : जापान में कृषि सुधार