इतिहासदिल्ली सल्तनतमध्यकालीन भारत

सल्तनत काल(1206-1526ई.) महत्त्वपूर्ण तथ्य

गुलाम वंश (1206-1290ई.)

गुलाम वंश की स्थापना 1206 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक ने की थी। वह गौरी का गुलाम था।

गुलामों को फारसी में बंदगॉ कहा जाता था। इन्हें सैनिक सेवा के लिये खरीदा जाता था।

कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपना राज्याभिषेक 24 जून, 1206 को किया था। कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपनी राजधानी लाहौर में बनायी थी। कुतुबमीनार की नींव कुतुबुद्दीन ऐबक ने रखी थी।

दिल्ली की कुवत-उल-इस्लाम मस्जिद एवं अजमेर का अढाई दिन का झोंपङा नामक मस्जिद का निर्माण ऐबक ने करवाया था। कुतुबुद्दीन ऐबक को लाख बख्श (लाखों का दान देने वाला) भी कहा गया है। प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय को ध्वस्त करने वाला ऐबक का सहायक सेनानायक बख्तियार खिलजी था।

ऐबक की मृत्यु 1210 ई. में चौगान खेलते समय घोङे से गिरकर हो गयी। इसे लाहौर में दफनाया गया।

इल्तुतमिश (1211-1236 ई.)

ऐबक का उत्तराधिकारी आरामशाह हुआ, जिसने सिर्फ आठ महीनों तक शासन किया। आरामशाह की हत्या करके इल्तुतमिश 1211 ई.में दिल्ली की गद्दी पर बैठा। इल्तुतमिश तुर्किस्तान का इल्बरी तुर्क था, जो ऐबक का गुलाम एवं दामाद था।

ऐबक की मृत्यु के समय वह बदायूँ का गवर्नर था। इल्तुतमिश लाहौर से राजधानी को स्थानान्तरित करके दिल्ली लाया।

इसने हौज-ए-सुल्तानी का निर्माण देहली-ए-कुहना के निकट करवाया था।

इल्तुतमिश पहला शासक था, जिसने 1229 ई. में बगदाद के खलीफा से सुल्तान पद की वैधानिक स्वीकृति प्राप्त की। इल्तुतमिश की मृत्यु अप्रैल, 1236 ई. में हो गयी।

इल्तुतमिश द्वारा किये गये महत्त्वपूर्ण कार्य

  • कुतुबमीनार के निर्माण को पूरा करवाया।
  • सबसे पहले शुद्ध अरबी सिक्के जारी किये। (चाँदी का टंका एवं ताँबे का जीतल)
  • इक्ता प्रणाली चलाई।
  • चालीस गुलाम सरदारों का संगठन बनाया, जो तुर्कान-ए-चहलगानी के नाम से जाना गया।
  • सर्वप्रथम दिल्ली के अमीरों का दमन किया।

रुक्नुद्दीन फिरोजशाह (1236ई.)

इल्तुतमिश के बाद उसका पुत्र रुक्नुद्दीन फिराजशाह गद्दी पर बैठा।

उसकी माता का नाम शाह तुर्कान था, जो मूलतः एक तुर्की दासी थी। मुस्लिम सरदारों ने शाह तुर्कान और रुक्नुद्दीन फिरोज की हत्या कर दी।

रजिया (1236-40 ई.)

रजिया दिल्ली के अमीरों तथा जनता के सहयोग से सिंहासन पर बैठी। रजिया दिल्ली की सुल्तान बनने वाली पहली महिला थी। रजिया ने पर्दा प्रथा को त्यागकर पुरुषों के समान काबा (चोगा)एवं कुल्हा पहनकर दरबार की कार्यवाइयों में हिस्सा लिया।

उसने अबिसीनिया के हब्सी गुलाम जमालुद्दीन याकूत को अमीर-ए-आखूर एवं मलिक हसन गोरी को सेनापति के पद पर नियुक्त किया।

रजिया ने अल्तूनिया से विवाह किया। कैथल के समीप डाकुओं ने 13 अक्टूबर, 1240 को रजिया की हत्या कर दी।

मुईजुद्दीन बहराम शाह (1240-42 ई.)

रजिया के बाद तुर्क सरदारों ने उसके भाई व इल्तुतमिश के तीसरे पुत्र मुईजुद्दीन बहराम शाह को सुल्तान बनाया।

1242 ई. में मुईजुद्दीन बहराम शाह की हत्या कर दी गयी।

अलाउद्दीन मसूद शाह (1242-46 ई.)

1242 ई. में अलाउद्दीन मसूद शाह दिल्ली की गद्दी पर बैठा।

बलबन के षङयंत्र द्वारा 1246 ई. में अलाउद्दीन मसूद शाह को सुल्तान के पद से हटाकर नासिरुद्दीन महमूद को सुल्तान बना दिया।

नासिरुद्दीन महमूद (1245-66 ई.)

नासिरुद्दीन महमूद ने राज्य की समस्त शक्ति बलबन को सौंप दी।

अगस्त, 1249 ई. में बलबन ने अपनी पुत्री का विवाह नासिरुद्दीन महमूद से कर दिया। सुल्तान ने बलबन को उलूग खाँ की उपाधि प्रदान की। नासिरुद्दीन महमूद के काल में बलबन ने ग्वालियर, रणथंभौर, मालवा तथा चंदेरी के राजपूतों का दमन किया।

कैकुबाद व शम्सुद्दीन (1287-90ई.)

बलबन ने अपने पौत्र खुसरो को अपना उत्तराधिकारी बनाया।

दिल्ली के कोतवाल फखरुद्दीन ने कूटनीति से खुसरो को मुल्तान की सूबेदारी देकर बुगरा खाँ के पुत्र कैकुबाद को सुल्तान बनाया। कैकुबाद ने मुइजुद्दीन कैकुबाद की उपाधि धारण की। कैकुबाद विलासी शासक सिद्ध हुआ तथा शासन प्रबंध की ओर से वह पूर्णतया उदासीन हो गया।

कैकुबाद ने तुर्क सदार जलालुद्दीन फिरोज खिलजी को अपना सेनापति नियुक्त किया।

खिलजी वंश (1290-1320ई.)

जलालुद्दीन फिरोज खिलजी (1290-96 ई.)

13 जून, 1290 को जलालुद्दीन फिरोज खिलजी ने गुलाम वंश के शासन को समाप्त कर खिलजी वंश की स्थापना की, उसने अपनी राजधानी किलोखरी को बनाया।

जलालुद्दीन खिलजी ने कङा के सूबेदार मुगीसुद्दीन (मलिक छज्जू)के विद्रोह का दमन किया।

जलालुद्दीन के काल में मंगोल नेता अब्दुला का आक्रमण हुआ। जलालुद्दीन के शासनकाल की सबसे बङी उपलब्धि देवगिरि की विजय थी।

जलालुद्दीन की हत्या 1296 ई. में उसके भतीजे एवं दामाद अलाउद्दीन खिलजी ने कङा-मानिकपुर (इलाहाबाद) में कर दी।

अलाउद्दीन खिलजी (1296-1316 ई.)

अलाउद्दीन खिलजी 22 अक्टूबर, 1296 में दिल्ली का सुल्तान बना। अलाउद्दीन के बचपन का नाम अली या गुरशस्प था। अलाउद्दीन का राज्यारोहण दिल्ली में स्थित बलबन के लाल महल में हुआ।

अलाउद्दीन ने सिकंदर-ए-सानी की उपाधि धारण की।

अलाउद्दीन ने गुजरात, जैसलमेर, रणथंभौर, चित्तौङ, मालवा, उज्जैन, धारानगरी, चंदेरी, सिवाना तथा जालौर पर विजय प्राप्त की। अलाउद्दीन प्रथम मुस्लिम सुल्तान था, जिसने दक्षिण भारत पर आक्रमण किया और उसे अपने अधीन कर लिया। दक्षिण भारत की विजय का श्रेय अलाउद्दीन के सेनानायक मलिक काफूर को दिया जाता है। मलिक काफूर एक हिन्दू हिंजङा था, जिसे नुसरत खाँ ने गुजरात विजय के दौरान 1,000 दीनार में खरीदा था, जिसके कारण उसे हजारदीनारी भी कहा जाता था। अलाउद्दीन खिलजी प्रशासनिक क्षेत्र में महान सेनानी था। अलाउद्दीन खिलजी प्रशासनिक क्षेत्र में महान सेनानी था। अलाउद्दीन की नीतियों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उसकी बाजार नियंत्रण की नीति थी।

अलाउद्दीन ने भू-राजस्व की दर को बढाकर उपज का 1/2 भाग कर दिया। राजत्व का दैवी सिद्धांत प्रतिपादित करने वाला शासक अलाउद्दीन था।

अलाउद्दीन खिलजी ने अपने शासनकाल में दो नए कर चराई (दुधारू पशुओं पर) पर एवं गढी (घरों एवं झोंपङी पर) लगाया।

अलाउद्दीन खिलजी ने सेना को नगद वेतन देने एवं स्थायी सेना रखने की प्रथा चलाई।

अलाउद्दीन खिलजी ने घोङा दागने एवं सैनिकों का हुलिया लिखने की प्रथा की शुरुआत की। अलाउद्दीन ने इक्ता, इनाम, मिल्क तथा वक्फ भूमि को खालसा (राजकीय)भूमि में परिवर्तित कर दिया।

अलाउद्दीन के शासनकाल में गैर-मुस्लिमों से जजिया कर और मुस्लिमों से जकात कर वसूला जाता था।

उसके दरबार में प्रमुख विद्वान अमीर खुसरो और हसन देहलवी थे।

अलाउद्दीन को सर्वप्रथम उलेमा-वर्ग के प्रभाव से स्वतंत्र होकर शासन करने का श्रेय दिया जाता है। अमीर खुसरो अलाउद्दीन के दरबारी कवि थे। इन्हें सितार एवं तबले के आविष्कार का श्रेय दिया जाता है। अमीर खुसरो को अलाउद्दीन खिलजी ने तूति-ए-हिन्द (भारत का नेता) के नाम से संबोधित किया।

अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु 5 जनवरी, 1316 ई. को हुई थी।

शहाबुद्दीन उमर तथा मलिक काफूर

अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु के बाद मलिक काफूर ने राज्य के अमीरों और अधिकारियों को एक जाली उत्तराधिकार पत्र दिखा कर नाबालिग उमर खाँ को सुल्तान बना दिया।

मलिक काफूर ने अलाउद्दीन के पुत्रों को बंदी बनाकर अंधा करवा दिया और शासन करने लगा।

अलाउद्दीन के तीसरे पुत्र मुबारक खिलजी ने 11 फरवरी, 1316 ई. को मलिक काफूर की हत्या कर दी तथा स्वयं सुल्तान का संरक्षक बन गया।

कुतुबुद्दीन मुबारक शाह खिलजी (1316 – 20 ई.)

मुबारक शाह, सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी का पुत्र था। वह 5 जनवरी, 1316 को दिल्ली की गद्दी पर बैठा। वह एक भ्रष्ट शासक था। कुतुबुद्दीन मुबारक शाह खिलजी ने बगदाद के खलीफा के अस्तित्व को नकारते हये स्वयं को खलीफा घोषित कर दिया। मुबारक के वजीर खुसरो शाह ने 15 अप्रैल, 1320 को उसकी हत्या कर दी और स्वयं दिल्ली के सिंहासन पर बैठा।

खुसरो शाह ने पैगम्बर के सेनापति की उपाधि धारण की।

तुगलक वंश(1320-1398ई.)

गयासुद्दीन तुगलक (1320-25ई.)

5 सितंबर, 1320 ई. को खुसरो को पराजित करके गाजी तुगलक ने ग्यासुद्दीन तुगलक के नाम से तुगलक वंश की स्थापना की।

1321 ई. में ग्यासुद्दीन तुगलक ने जौना खान (उलूग खान) अर्थात् मुहम्मद बिन तुगलक को तेलंगाना के विद्रोही शासक प्रताप रुद्रदेव के विरुद्ध अभियान के लिये दक्षिण भेजा। ग्यासुद्दीन तुगलक ने 29 बार मंगोल आक्रमण को विफल किया। ग्यासुद्दी ने अपने साम्राज्य में सिंचाई व्यवस्था की तथा संभवतः नहरों का निर्माण करने वाला पहला शासक था।

ग्यासुद्दीन तुगलक ने दिल्ली के समीप स्थित पहाङियों पर तुगलकाबाद नाम का एक नया नगर स्थापित किया तथा दिल्ली में मजलिस-ए-हुक्मरान की स्थापना की थी।

उसने रोमन शैली में निर्मित तुगलकाबाद में एक दुर्ग का निर्माण भी किया, जिसे छप्पनकोट के नाम से जाना जाता है।

ग्यासुद्दीन तुगलक की मृत्यु 1325 ई. में बंगाल के अभियान से लौटते समय जूना खाँ द्वारा निर्मित लकङी के महल में दबकर हो गयी।

बिहार के मैथिली कवि विद्यापति की रचनाओं में ग्यासुद्दीन तुगलक के विषय में महत्त्वपूर्ण विवरण प्राप्त होते हैं।

मुहम्मद बिन तुगलक (1325-51ई.)

ग्यासुद्दीन तुगलक की मृत्यु के बाद जौना खां मुहम्मद बिन तुगलक के नाम से दिल्ली सल्तनत का साम्राज्य सर्वाधिक विस्तृत था।

मुहम्मद बिन तुगलक मध्यकालीन सभी सुल्तानों में सर्वाधिक शिक्षित तथा विद्वान था। मुहम्मद बिन तुगलक ने चार योजनाओं को क्रियान्वित किया, जो इस प्रकार हैं-

राजधानी दि्लली का दौलताबाद स्थानान्तरण।

सोने-चाँदी के स्थान पर ताँबे एवं पीतल की सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन।

दोआब क्षेत्र में भू-राजस्व की दर कुल उपज का 1/2 करना।

कराचिल एवं खुरासान का विफल अभियान।

मुहम्मद तुगलक ने कृषि के विकास के लिये एक नये कृषि विभाग दीवान-ए-अमीर कोही की स्थापना की।

अफ्रीकी यात्री इब्नबतूता मुहम्मद तुगलक के समय भारत आया था।

1333 ई. में मुहम्मद बिन तुगलक ने इब्नबतूता को दिल्ली का काजी नियुक्त किया। मुहम्मद बिन तुगलक ने इब्नबतूता को 1342 ई. में राजदूत बनाकर चीन भेजा।

मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में दक्षिण में हरिहर एवं बुक्का नामक दो भाईयों ने 1336 ई. में स्वतंत्र राज्य विजयनगर की स्थापना की।

1347 ई. में महाराष्ठ्र में अलाउद्दीन बहमन शाह ने बहमनी साम्राज्य की स्थापना की। उसके शासनकाल में सर्वाधिक विद्रोह हुए, जिसके परिणामस्वरूप लगभग पूरे दक्षिण का राज्य स्वतंत्र हो गया।

मुहम्मद बिन तुगलक ने अल-सुल्तान जिल्ली अल्लाह (ईश्वर सुल्तान का समर्थक है) की उपाधि धारण की। उसके शासनकाल में कान्हा नायक ने विद्रोह कर स्वतंत्र वारंगल राज्य की स्थापना की। मुहम्मद बिन तुगलक ने इंशा-ए-महरु नामक पुस्तक की रचना की।

1341 ई. में चीनी सम्राट तोगनतिमुख ने अपना राजदूत भेजकर मुहम्मद बिन तुगलक से हिमाचल प्रदेश के बौद्ध मंदिरों के जीर्णोद्धार के लिये अनुमति मांगी।

जैन संत जिन चंद्रसूरी को मुहम्मद तुगलक ने सम्मानित किया।

मुहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु थट्टा में हुई। मुहम्मद तुगलक की मृत्यु पर बदायूंनी ने लिखा है, कि सुल्तान को उसकी प्रजा से और प्रजा को अपने सुल्तान से मुक्ति मिल गई।

फिरोजशाह तुगलक (1351-88ई.)

मुहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु के बाद उसका चचेरा भाई फिरोजशाह तुगलक दिल्ली की गद्दी पर बैठा।

फिरोजशाह तुगलक का राज्याभिषेक थट्टा में हुआ तथा पुनः 1351 ई. में दिल्ली में दोबारा राज्याभिषेक हुआ। उसने 24 आपत्तिजनक करों को समाप्त किया।

फिरोज ने शरीयत द्वारा स्वीकृत 4 करों – खराज(लगान), जजिया (गैर मुस्लिमों से वसूला जाने वाला कर), खम्स (युद्ध में लूट का माल), जकात (मुसलमानों से लिया जाने वाला कर) आदि को ही प्रचलन में मुख्य रूप से रखा। फिरोज ने सिंचाई कर हक-ए-हर्ब लगाया, जो सिंचित भूमि की कुल उपज का 1/10 था। फिरोज तुगलक ने 5 बङी नहरों का निर्माण करवाया। उसने फिरोजाबाद, हिसार, जौनपुर, फतेहाबाद आदि नगरों की स्थापना की।

फिरोजशाह तुगलक ने सर्वप्रथम राज्य की आय का प्रमाणिक ब्यौरा तैयार करवाया।

फिरोज तुगलक ने अशोक के खिज्राबाद (टोपरा) एवं मेरठ में स्थित दो स्तंभों को वहाँ से स्थानान्तरति कर दिल्ली में स्थापित किया। फिरोज तुगलक ने अनाथ मुस्लिम महिलाओं, विधवाओं एवं लङकियों के लिये दीवान-ए-खैरात (दान-विभाग)की स्थापना की। फिरोज तुगलक के शासनकाल में सल्तनतकालीन सुल्तानों में दासों की संख्या सर्वाधिक (लगभग 1,80,000)थी। उसने दासों के लिये दीवान-ए-बंदगान (दास-विभाग) की स्थापना की। फिरोज के दरबार में विद्वान जियाउद्दीन बरनी तथा शम्से शिराज अफीफ रहता था। बरनी और शम्से अफीफ ने तारीख-ए-फिरोज की रचना की।

फिरोजशाह तुगलक ने अपनी आत्मकथा लिखी, जो फुतूहाते-फिरोजशाही के नाम से जानी जाती है।

फिरोजशाह तुगलक ने दिल्ली के निकट दार – उल – सफा नामक एक खैराती अस्तपताल खोला। फिरोज तुगलक ने चाँदी एवं ताँबे के मिश्रण से शसगनी, अद्धा एवं विश्व जैसे सिक्के चलाये। फिरोज तुगलक के काल में खान-ए-जहां तेलंगानी के मकबरे का निर्माण हुआ।

खान-ए-जहाँ तेलंगानी के मकबरे की तुलना जेरुसलम की उमर मस्जिद से की जाती है।

दिल्ली स्थित फिराजशाह कोटला दुर्ग (फिरोज तुगलक द्वारा निर्मित )

फिरोज तुगलक ने अपने जाजनगर (उङीसा) अभियान के दौरान पुरी के जगन्नाथ मंदिर को ध्वस्त किया तथा नगरकोट अभियान के दौरान ज्वालामुखी मंदिर को ध्वस्त कर इसे लूटा।

फिरोज तुगलक ने लगभग 300 प्राचीन संस्कृत ग्रंथों का फारसी अनुवाद आजउद्दीन खालिद द्वारा दलायले-फिरोजशाही के नाम से करवाया।

नासिरुद्दीन महमूद तुगलक तुगलक वंश का अंतिम शासक था। इसी के शासनकाल में तैमूरलंग ने 1398 ई. में भारत पर आक्रमण किया।

सैय्यद वंश (1414-1451ई.)

खिज्र खाँ (1414-1421ई.)

तैमूरलंग के सेनापति खिज्र खाँ ने दिल्ली पर सैय्यद वंश के शासन की स्थापना की।

खिज्र खाँ ने रैय्यत-ए-आला की उपाधि धारण की। खिज्र खाँ के शासनकाल में पंजाब, लाहौर व मुल्तान पुनः सल्तनत के अधीन हो गया।

खिज्र खाँ ने कटेहर, इटावा, खोर, चलेसर, बयाना, मेवात, बदायूं आदि में विद्रोहों को दबाया। खिज्र खाँ सैय्यद वंश का सर्वाधिक योग्य शासक था। 20 मई, 1421 को खिज्र खाँ की मृत्यु हो गयी।

मुबारक शाह (1421-1434 ई.)

खिज्र खाँ की मृत्यु के बाद उसका पुत्र मुबारक शाह सुल्तान बना।

मुबारक शाह ने यमुना के तट पर मुबारकाबाद नामक नगर बसाया।

उसके आश्रम में प्रसिद्ध इतिहासकार याह्या-बिन-अहमद सरहिन्दी थे। इसकी पुस्तक तारीख-ए-मुबारक शाही से सैय्यद वंश के विषय में जानकारी मिलती है।

19 फरवरी, 1434 ई. को उसके एक सरदार सरवर-उल-मुल्क ने एक षडयंत्र द्वारा उसकी हत्या करवा दी।

मुहम्मद शाह (1434-1444ई.)

मुहम्मद शाह के काल में दिल्ली सल्तनत में अराजकता व अव्यवस्था व्याप्त रही। मालवा के शासक महमूद खिलजी ने मुहम्मद शाह के समय दिल्ली पर आक्रमण किया। लाहौर और मुल्तान के शासक बहलोल खाँ लोदी को मुह्मद साह ने खान-ए-खाना की उपाधि प्रदान की और उसे अपना पुत्र कहकर भी पुकारा।

1444 ई. में मुहम्मद शाह की मृत्यु हो गयी।

आलम शाह (1445-1451 ई.)

मुहम्मद शाह की मृत्यु के बाद उसका पुत्र अलाउद्दीन आलमशाह के नाम से गद्दी पर बैठा। आलमशाह अपनी राजधानी दिल्ली से हटाकर बदायूं ले गया।

आलमशाह के मंत्री हमीद खाँ ने बहलोल लोदी को दल्ली आमंत्रित किया, जिसने दिल्ली पर अधिकार कर लिया।

1451 ई. में आलमशाह ने बहलोल लोदी को दिल्ली का राज्य पूर्णतः सौंप दिया और स्वयं बदायूं की जागीर में रहने लगा। 37 वर्ष के शासन के बाद सैय्यद वंश का अंत हो गया तथा लोदी वंश की नींव पङी।

लोदी वंश (1451-1526ई.)

बहलोल लोदी (1451-1488ई.)

लोदी वंश का संस्थापक बहलोल लोदी था। वह 19 अप्रैल, 1451 ई. को बहलोल शागाजी की उपाधि से दिल्ली के सिंहासन पर बैठा। दिल्ली पर प्रथम अफगान राज्य की स्थापना का श्रेय बहलोल लोदी को दिया जाता है।

बहलोल लोदी ने बहलोल सिक्के को प्रचलित करवाया।

वह अपने सरदारों को मकनद ए अली कहकर पुकारता था। वह अपने सरदारों के खङे रहने पर स्वयं भी खङा रहता था।

सिकंदर लोदी (1489-1517ई.)

बहलोल लोदी का पुत्र निजाम खाँ 17 जुलाई, 1489 ई. में सुल्तान सिकंदर शाह की उपाधि से दिल्ली के सिंहासन पर बैठा।

1504 ई. में सिकंदर लोदी ने आगरा शहर की स्थापना की। भूमि के लिये मापन के प्रामाणिक पैमाने गजे सिकंदरी का प्रचलन सिकंदर लोदी ने किया।

गुलरुखी शीर्षक से फारसी कविताएँ लिखने वाला सुल्तान सिकंदर लोदी था। सिकंदर लोदी ने आगरा को अपनी नई राजधानी बनाया। इसके आदेश पर संस्कृत के एक आयुर्वेद ग्रंथ फारसी में फरहंगे सिकंदरी के नाम से अनुवाद हुआ। इसने नगरकोट के ज्वालामुखी मंदिर की मूर्ति को तोङकर उसके टुकङों को कसाइयों को मांस तौलने के लिये दे दिया था। इसने मुसलमानों को ताजिया निकालने एवं मुसलमान स्त्रियों के पीरों तथा संतों के मजार पर जाने पर प्रतिबंध लगा दिया। गले में बीमारी के कारण सिकंदर लोदी की मृत्यु 21 नवंबर, 1517 ई. को हो गयी। सिकंदर लोदी का पुत्र इब्राहिम इब्राहिम शाह की उपाधि से आगरा के सिंहासन पर बैठा।

21 अप्रैल, 1526 को पानीपत के प्रथम युद्ध में इब्राहिम लोदी बाबर से हार गया। इस युद्ध में वह मारा गया।

बाबर को भारत पर आक्रमण के लिये निमंत्रण पंजाब के शासक दैलत खाँ लोदी एवं इब्राहिम लोदी के चाचा आलम खाँ ने दिया था। मोठ की मस्जिद का निर्माण सिकंदर लोदी के वजीर द्वारा करवाया गया था।

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