मध्यकालीन भारतइतिहासगुलाम वंशदिल्ली सल्तनत

दिल्ली सल्तनत में इल्तुतमिश का स्थान

इल्तुतमिश ( 1210 – 1236 ई. )-

इल्तुतमिश का पूरा नाम शम्सुद्दीन इल्तुतमिश था। इल्तुतमिश दिल्ली सल्तनत में गुलाम वंश का प्रमुख शासक था।

इल्तुतमिश

इल्तुतमिश कुतुबुद्दीन ऐबक का गुलाम था, जिसे 1197 में अन्हिलवाङा (गुजरात) के आक्रमण के समय ऐबक ने खरीदा था। लेकिन अपनी योग्यता से इल्तुतमिश इक्तेदार ( सामंत ) तथा कुतुबुद्दीन ऐबक का दामाद बन जाता है।

ऐबक की मृत्यु के समय इल्तुतमिश बदायू ( यू. पी. ) का इक्तेदार था।

ऐबक की मृत्यु के बाद कुछ इतिहासकारों के अनुसार आरामशाह लाहौर में नया शासक बना, लेकिन दिल्ली के तुर्की अमीरों ने इल्तुतमिश को नया सुल्तान घोषित किया। 1210 ई. में जूद ( पंजाब ) की लङाई में इल्तुतमिश ने आरामशाह को मारकर लाहौर पर भी अधिकार कर लिया। लेकिन मिनहास उस सिराज के अनुसार ऐबक पुत्रहीन था।

सुल्तान की उपाधि धारण-

इल्तुतमिश दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक तथा प्रथम वैधानिक सुल्तान था। इसने 1229 ई. में बगदाद के खलीफा अल-मुंतसिर-बिल्लाह से सुल्तान की उपाधि व खिलअत (इजाजत) प्राप्त की।

इल्तुतमिश ने अपने नाम का खुतबा पढवाया तथा मानक सिक्के – टंका   चलाया था । टंका चांदी  का होता था।  (1 टंका = 48 जीतल )

यह पहला मुस्लिम शासक था जिसने सिक्कों पर टकसाल का नाम अंकित करवाया था।

इल्तुतमिश न्यायप्रिय था-

इसने न्याय के लिए कदम उठाये । शहरों में उसने न्याय के लिये काजी, अमीर-ए- दाद जैसे अधिकारी नियुक्त किये। अपने दरबार के बाहर शेरों की मूर्तियों से लगी जंजीर स्थापित करवायी जिनमें अनेक घंटियां लगी थी। ताकि कोई पिङित आये तो घंटी बजा दे तथा सुल्तान को पता लग जाये।

तुर्कान – ए – चहलगामी

इल्तुतमिश ने अपने 40 तुर्की सरदारों को मिलाकर तुर्कान- ए -चहलगामी नामक प्रशासनिक संस्था की स्थापना की थी।

इक्ता प्रणाली का संस्थापक-

इल्तुतमिश ने प्रशासन में इक्ता प्रथा को भी स्थापित किया। भारत में इक्ता प्रणाली का संस्थापक इल्तुतमिश ही था।

इसने दोआब ( गंगा-यमुना ) क्षेत्र में हिन्दू जमीदारों की शक्ति तोङने के लिये शम्सी तुर्की ( उच्च वर्ग ) सरदारों को ग्रामीण क्षेत्र में इक्तायें (जागीर) बांटी ।

राजपूतों से संघर्ष-
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इल्तुतमिश के समय दिल्ली व आसपास के क्षेत्र में राजपूत शासकों ने संघर्ष शुरु कर दिया था, उसने अनेक अभियानों में राजपूतों की शक्ति को तोङा।

इल्तुतमिश द्वारा किये गये अभियान निम्नलिखित हैं-

(i) 1226 में रणथंभौर पर आक्रमण

(ii) 1227 में नागौर पर आक्रमण

(iii) 1232 में मालवा पर आक्रमण – इस अभियान के दौरान इल्तुतमिश उज्जैन से विक्रमादित्य की मूर्ति उठाकर लाया था।

(iv) 1235 में ग्वालियर का अभियान – इस अभियान के दौरान इल्तुतमिश ने अपने पुत्रों की बजाय पुत्री रजिया को उत्तराधिकारी घोषित किया।

(iv) 1236 में बामियान (अफगानिस्तान )  पर आक्रमण। यह इल्तुतमिश का अंतिम अभियान था।

बंगाल की स्थिति-

इल्तुतमिश के समय बंगाल के अधिकारी इवाजखाँ ने ग्यासुद्दीन के नाम से स्वतंत्रता धारण कर ली। दिल्ली व बंगाल के बीच दूरी अधिक थी। जिस कारण इल्तुतमिश को बंगाल संभालने में कई दिक्कतों का सामना करना पङा। क्योंकि जैसे ही इल्तुतमिश दिल्ली जाता पिछे से विद्रोह उठ खङे होते।

इल्तुतमिश ने अपने पुत्र नसीरुद्दीन मुहम्मद के नेतृत्व में 1229 ई. में बंगाल को फिर से जीता।

नसीरुद्दीन की मृत्यु होने के कारण बल्का खिलजी नामक अधिकारी ने बंगाल में फिर से आक्रमण किया। अंततः 1230 ई. में बंगाल को इल्तुतमिश जीत पाया।

मंगोलो की समस्या-

1221 ई. में मंगोल शासक तमेचिन (चंगेज खाँ) ने ख्वारिज्म ( पश्चिमि एशिया ) पर आक्रमण कर उसे नष्ट किया और ख्वारिज्म के राजकुमार जलालुद्दीन मांगबर्नी का पीछा करता हुआ 1224 ई. में सिंधु नदी तक आ पहुँचा । जलालुद्दीन द्वारा इल्तुतमिश से संरक्षण मांगने पर इल्तुतमिश ने मना किया इसी के साथ चंगेज खाँ भी जलालुद्दीन का पिछा करता हुआ भारत से चला गया तथा मंगोल आक्रमण का खतरा टल गया।

दिल्ली को राजधानी बनाया – इल्तुतमिश प्रथम मुस्लिम शासक था जिसने दिल्ली को राजधानी बनाया।

इल्तुतमिश के शत्रु-

इसके समय अनेक इक्तेदारों ने विरोध कर दिल्ली को घेर लिया –

कबीरुद्दीन एयाज ने मुल्तान पर अधिकार कर लिया।

मलिक मुहम्मद सलारी ने बदायूं पर अधिकार कर लिया।

मलिक सैफूद्दीन कूची ने हाँसी पर अधिकार कर लिया।

इनके विद्रोहों को दबाने के लिये रुकनुद्दीन दिल्ली से बाहर गया। उसकी अनुपस्थिति का फायदा उठाते हुये रजिया ने दिल्ली की जनता के समर्थन से शाहतुर्कान (रुकनुद्दीन की माँ ) व रुकनुद्दीन की हत्या करवाकर स्वयं शासिका बनी।

इल्तुतमिश के समय भी यल्दौज व कुबाचा के साथ टकराहट बनी रही। 1215 ई. में इल्तुतमिश ने तराइन के तीसरे युद्ध में यल्दौज कुबाचा को पराजित कर सिंधु नदी में डुबोकर मार डाला।

इल्तुतमिश के दरबारी विद्वान-

मिनहाज उस सिराज इल्तुतमिश के दरबारी लेखक थे जिन्होंने तबकाते नासिरी की रचना की। इनके अलावा मलिक ताजुदिन भी इनके दरबार में ही रहते थे।

इल्तुतमिश के निर्माण कार्य-

स्थापत्य कला के अन्तर्गत इल्तुतमिश ने कुतुबुद्दीन ऐबक के निर्माण कार्य (कुतुबमीनार) को पूरा करवाया। भारत में सम्भवतः पहला मकबरा निर्मित करवाने का श्रेय भी इल्तुतमिश को दिया जाता है।

इल्तुतमिश ने बदायूँ की जामा मस्जिद एवं नागौर में अतारकिन के दरवाजा का निर्माण करवाया।  उसने दिल्ली में एक विद्यालय की स्थापना की

इल्तुतमिश की मृत्यु

बयाना पर आक्रमण करने के लिए जाते समय मार्ग में इल्तुतमिश बीमार हो गया।इसके बाद इल्तुतमिश की बीमारी बढती गई। अन्ततः अप्रैल 1236 में उसकी मृत्यु हो गई। इल्तुतमिश प्रथम सुल्तान था, जिसने दोआब के आर्थिक महत्त्व को समझा था और उसमें सुधार किया था।

इल्तुतमिश का मकबरा दिल्ली में स्थित है, जो एक कक्षीय मकबरा है।

इल्तुतमिश के उत्तराधिकारी-

रजिया जो सुल्तान की पुत्री थी को इल्तुतमिश ने अपने जिन्दा रहते हुए ही उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। क्योंकि सुल्तान का बङा पुत्र नासीरुद्दीन महमूद प्रतिनिधि के रूप में बंगाल में शासन कर रहा था। यहाँ पर रहते हुये1229 ई. में नासीरुद्दीन की मृत्यु हो गई तथा अन्य पुत्र अयोग्य थे जिसके कारण रजिया को उत्तराधिकारी घोषित किया गया। रजिया भारत की पहली मुस्लिम शासिका थी।

अन्य संबंधित लेख-

  1. दिल्ली सल्तनत के राजवंश का इतिहास
  2. अलबरूनी कौन था
  3. मध्यकालीन भारत के इतिहास में कुतुबुद्दीन ऐबक

Reference : https://www.indiaolddays.com/

Online References
https://en.wikipedia.org/wiki/Industrial_Revolution

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