इतिहासमध्यकालीन भारतविजयनगर साम्राज्य

कृष्ण देवराय : सेनानायक एवं प्रशासक के रूप में

कृष्ण देवरायकृष्ण देवराय एक महान योद्धा ही नहीं वरन विजयनगर के इतिहास में महानतम सेनानायक था। संपूर्ण भारतीय इतिहास में इतने सफल सेनानायक के दृृष्टांत बहुत थोङे हैं। उसने विजयनगर की सेना को असीमित रूप से शक्तिशाली बनाया और साम्राज्य की समस्त राजनीतिक एवं सैनिक समस्याओं का सफल निदान किया। वह अपने सैनिकों को व्यक्तिगत रूप से स्नेह और संरक्षण प्रदान करता था। युद्ध में घायल सैनिकों की चिकित्सा एवं सेवा-सुश्रूषा की वह व्यक्तिगत रूप से देखभाल करता था और युद्ध में शौर्य प्रदर्शित करने वालों को पूरी तरह सम्मानित करता था। कृष्णदेवराय किसके समकालीन था?

कृष्ण देवराय

कृष्णदेवराय सफल राजनीतिज्ञ एवं महान प्रशासक भी था। प्रसिद्ध तेलगू ग्रंथ आमुक्त माल्यद से उसकी सैनिक एवं नागरिक प्रशासन की क्षमता का आभास होता है। उक्त ग्रंथ में अधीनस्थ अधिकारियों पर नियंत्रण, मंत्रियों की नियुक्ति, न्याय प्रशासन एवं विदेश नीति के संचालन आदि सारे विषयों का विवेचन किया गया है। उसने प्रांतीय प्रशासन का पुनर्गठन किया और नायकों को उचित नियंत्रण में रखा। रैयत की शिकायतों के निवारण, स्थानीय प्रशासकों के कुप्रशासन और प्रजा के प्रति उनके अन्याय को समाप्त करने के लिये वह साम्राज्य का दौरा किया करता था। उसने तालाबों एवं अन्य नहरों का निर्माण करके सिंचाई की सुविधाओं का ही विस्तार नहीं किया वरन बंजर एवं जंगली जमीन को कृषि योग्य बनाने की कोशिश भी की। इस प्रकार न केवल कृषि योग्य भूमि का ही विस्तार हुआ वरन साम्राज्य के राजस्व में भी वृद्धि हुई। उसने विवाह-कर जैसे अलोकप्रिय करों को समाप्त करके अपनी प्रजा को करों से राहत दी। आमुक्त माल्यद में राज्य के राजस्व के विनियोजन और अर्थव्यवस्था के विकास का पर्याप्त वर्णन है। इसी ग्रंथ में निर्देश है कि राजा को तालाबों तथा अन्य जन सुविधाओं की व्यवस्था करके प्रजा को संतुष्ट रखना चाहिए। विदेश व्यापार के सुचारु संचालन के लिये सुविधाजनक बंदरगाहों की व्यवस्था की जानी चाहिए। राजा को कभी भी धर्म तथा न्याय की अवहेलना नहीं करनी चाहिए। आमुक्त माल्यद के ये नीति-निर्देश केवल आदर्श रूप ही नहीं थे, वरन कृष्णदेव राय ने उनका प्रायोगिक रूप में भी पालन किया। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि वह कितना सफल एवं महान प्रशासक था। उसके संपूर्ण शासनकाल में पर्याप्त शांति, व्यवस्था एवं समृद्धि उसके सफल प्रशासक होने के प्रतीक हैं।

सफल प्रशासक होने के साथ-साथ वह महान विद्वान, विद्याप्रेमी एवं कला का संरक्षक भी था। उसका शासनकाल तेलगू साहित्य का क्लासिकी युग माना जाता है। उसके दरबार को तेलगु के आठ महान विद्वान (जिन्हें अष्ठदिग्गज कहा जाता है) सुशोभित करते थे। अतः उसे आंध्र भोज भी कहा जाता है। उसने आमुक्त माल्यद के अलावा दो संस्कृत काव्य-ग्रंथों की भी रचना की। उसने तेलगु के अलावा संस्कृत एवं दक्षिण भारत की अन्य लोकभाषाओं को भी प्रोत्साहन दिया।

कला के क्षेत्र में उसने नागलापुर के नवीन नगर की नींव डाली जहाँ उसने अनेक भव्य भवनों एवं मंदिरों का निर्माण कराया। उसके शासनकाल में संपूर्ण साम्राज्य में सहस्त्र स्तंभों वाले मंडपों और गोपुरमों का निर्माण किया गया। अनेक प्रसिद्ध कलाविदों को राजप्रासादों एवं मंदिरों की सौंदर्य वृद्धि के लिये नियुक्त किया गया। इस प्रकार उपलब्धियों की दृष्टि से कृष्णदेव राय का शासनकाल दक्षिण भारत के इतिहास में एक महानतम युग कहा जा सकता है।

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