पल्लवकालीन साहित्य का इतिहास
पल्लव राजाओं का शासन संस्कृत तथा तमिल दोनों ही भाषाओं के साहित्य की उन्नति का काल रहा। कुछ पल्लव नरेश उच्चकोटि के विद्वान थे तथा उनकी राजसभा में प्रसिद्ध विद्वान एवं लेखक निवास करते थे।
महेन्द्रवर्मन प्रथम ने मत्तविलासप्रहसन नामक हास्य-ग्रंथ की रचना की थी। इसमें कापालिक एवं बौद्ध भिक्षुओं की हँसी उङाई गयी है।
कुछ विद्वानों के मतानुसार किरातार्जुनीय महाकाव्य के रचयिता भारवि उसी की राजसभा में निवास करते थे। महेन्द्रवर्मन का उत्तराधिकारी नरसिंहवर्मा भी महान विद्या-प्रेमी था। उसकी राजसभा में दशकुमारचरित एवं काव्यादर्श के लेखक दंडी निवास करते थे।
पल्लव शासकों के अधिकांश लेख विशुद्ध संस्कृत में लिखे गये हैं। संस्कृत के साथ-साथ इस समय तमिल भाषा का भी विकास हुआ था। शैव तथा वैष्णव संतों द्वारा तमिल भाषा एवं साहित्य का प्रचार-प्रसार हुआ।
पल्लवों की राजधानी काञ्ची विद्या का प्रमुख केन्द्र थी, जहाँ एक संस्कृत महाविद्यालय (घटिका) था। इसी के समीप एक मंडप में महाभारत का नियमित पाठ होता था तथा ब्राह्मण परिवार वेदाध्ययन किया करते थे। कदंबनरेश मयूरशर्मा विद्याध्ययन के लिये काञ्ची के विद्यालय (घटिका) में ही गया था।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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