गैरीबाल्डी (Garibaldi) का जन्म 4 जुलाई 1807, तथा देहांत 2 जून 1882 को हुआ। गैरीबाल्डी इटली का एक राजनैतिक और सैनिक नेता था, जिसने इटली के इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
कैवूर, विक्टर इमेनुआल द्वितीय तथा मेजिनी के साथ गैरीबाल्डी का नाम इटली के ‘पिताओं’ में सम्मिलित हैं।
गैबाल्डी जब पैदा हुआ तब इटली कई राज्यों में खंडित था और यूरोप की बाकी शक्तियों के रहम-ओ-करम पर था। पहले गैरीबाल्डी ने “कार्बोनेरी” नाम के गुप्त राष्ट्रवादी क्रन्तिकारी संगठन के साथ नाता जोड़ा लेकिन एक असफल विद्रोह के बाद इसे इटली छोड़ना पड़ा। फिर इसने दक्षिण अमेरिका में कई विद्रोहों और लड़ाइयों में हिस्सा लिया। उसके बाद यह वापस इटली आया और इटली को एक करने की लड़ाई में मुख्य रणनीतिकार रहा।
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गैरीबाल्डी का योगदान
गैरीबाल्डी का जन्म 1807 में नीस नगर में हुआ था। उसके पिता एक व्यापारी जहाज के अधिकारी थे, अतः वह युवक होने पर तटीय व्यापार में लग गया और उसे अपने समुद्री जीवन में भूमध्य सागर का अच्छा ज्ञान हो गया। इन्हीं यात्राओं के दौरान उसका इटली के देशभक्तों से परिचय हुआ, जिससे उसके मन में देश की स्वतंत्रता की ऐसी लगन लगी कि वह अपने देश के लिये सर्वस्व बलिदान करने को तैयार हो गया।
कुछ समय बाद वह मेजिनी के संपर्क में आया और उसके आदर्शों से प्रभावित होकर वह युवा इटली का सदस्य बन गया। 1833 में उसने मेजिनी के सहयोग से इटली में गणतंत्र स्थापित करने के षड्यंत्र में भाग लिया, किन्तु षड्यंत्र का भंडाफोङ हो जाने से उसे कैद कर लिया गया। उसे देशद्रोह के अपराध में मृत्यु दंड की सजा सुनाई गयी, किन्तु वह इटली से भाग निकला और दक्षिणी अमेरिका पहुँच गया। 1848 तक वह दक्षिणी अमेरिका में रहा और अमेरिका के स्वतंत्रता संग्रामों में भाग लेता रहा। उसके साथी लाल कमीज पहनते थे, अतः उसका दल लाल कुर्ती दल कहलाया।
1848 की क्रांति की सूचना प्राप्त होते ही वह पुनः इटली लौट आया तथा उसने चार्ल्स एल्बर्ट के नेतृत्व में आस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध में भाग लिया, किन्तु 25 जुलाई, 1848 की क्रांति की सूचना प्राप्त होते ही वह पुनः इटली लौट आया तथा उसने चार्ल्स एल्बर्ट के नेतृत्व में आस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध में भाग लिया, किन्तु 25 जुलाई, 1848 को सार्डीनिया पराजित हुआ तथा चार्ल्स एल्बर्ट को आस्ट्रिया से संधि करनी पङी।
इसी बीच रोम में क्रांति हो गयी थी तथा मेजिनी के नेतृत्व में रोमन गणराज्य की स्थापना हो चुकी थी। गैरीबाल्डी मेजिनी की सहायतार्थ रोम आ पहुँचा। फ्रांस ने रोम की रक्षार्थ करने का दृढता से प्रयत्न किया, किन्तु वह सफल नहीं हो सका और किसी प्रकार बचकर टस्कनी आ पहुँचा। टस्कनी से उसे पीडमाण्ट आना पङा तथा यहाँ से वह पुनः इटली लौट आया। इटली वापस आकर वह सार्डीनिया के निकट केप्रीरा नामक टापू खरीदकर एक स्वतंत्र कृषक के रूप में रहने लगा।
1856 में उसकी कैवूर से भेंट हुई तथा इस भेंट में वह कैवूर के विचारों से प्रभावित हुआ और 1857 में उसने सार्डीनिया के शासक को अपनी सेवाएँ अर्पित कर दी। गैरीबाल्डी के जीवन की यह सबसे महत्त्वपूर्ण घटना थी, क्योंकि गणतंत्रवादी गैरीबाल्डी अब वैध राजसत्तावाद का समर्थक बन गया। उसी के कारण सार्डीनिया के गणतंत्रवादियों एवं राजसत्तावादियों में समझौता हो गया और उन्होंने अपने मतभेदों को भुलाकर अपने उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु संयुक्त रूप से कार्य किया।
केटलबी ने लिखा है – कि, यदि यह समझौता नहीं होता और दोनों के मतभेद बने रहते तो वे एख दूसरे को नष्ट करने का प्रयत्न करते और इटली की एकता का प्रयत्न विफल हो जाता। इटली के एकीकरण में गैरीबाल्डी का वास्तविक कार्य 1860 में आरंभ होता है।
![गैरीबाल्डी](/wp-content/uploads/2020/11/image-3.png)
सिसली का विद्रोह
1860 के प्रारंभ में मेजिनी के प्रोत्साहन के कारण सिसली की जनता ने अपने निरंकुश शासक के विरुद्ध विद्रोह कर दिया।विद्रोहियों ने गैरीबाल्डी से सहायता की माँग की। गैरीबाल्डी ने इस शर्त पर सहयोग देना स्वीकार किया कि विद्रोह सार्डीनिया के पक्ष में हो।
यद्यपि कैवूर की सहानुभूति गैरीबाल्डी के साथ थी, किन्तु वह खुले रूप से गैरीबाल्डी की सहायता नहीं कर सकता था, क्योंकि प्रथम तो ऐसा करना अन्तर्राष्ट्रीय कानुन के विरुद्ध था तथा दूसरा गैरीबाल्डी को सहायता देने से नेपिल्स और सार्डीनिया के बीच युद्ध छिङ जाता और संभवतः यूरोपीय राज्य उसमें हस्तक्षेप करने लगते।
ऐसी परिस्थिति में कैवूर ने दोहरी नीति अपनाई। बाहरी तौर पर तो वह अपनी तटस्थता का प्रदर्शन करता रहा, किन्तु गुप्त रूप से गैरीबाल्डी व सिसली के देशभक्तों को सहायता पहुँचाता रहा। 5 मई, 1860 को गैरीबाल्डी ने अपने एक हजार लाल कुर्ती वाले स्वयंसेवकों को लेकर सिसली की ओर प्रस्थान किया।
11 मई को वह सिसली पहुँच गया तथा 15 मई को केल्टाफीमी नामक स्थान पर नेपिल्स की सेनाओं को परास्त किया। 27 मई, को उसने पेनारेमो पर अधिकार कर लिया तथा जून के अंत तक सिसली पर गैरीबाल्डी का अधिकार हो गया। गैरीबाल्डी ने अपने आपको सिसली का अधिनायक घोषित कर दिया।
नेपिल्स पर अधिकार
सिसली पर अधिकार करने के बाद गैरीबाल्डी ने 19 अगस्त, 1860 को नेपिल्स के मुख्य भाग रेगियो-डि-केलेब्रिया पर आक्रमण कर दिया। 21 अगस्त को उसने रेगियो पर सरलता से अधिकार कर लिया। रेगियो से गैरीबाल्डी नेपिल्स की ओर बढा। नेपिल्स के शाक फ्रांसिस ने सभी राज्यों से सहायता की माँग की, किन्तु उसे कहीं से सहायता नहीं मिली, अतः 6 सितंबर को फ्रांसिस वहाँ से भाग खङा हुआ तथा नेपिल्स के पूरे राज्य पर गैरीबाल्डी का अधिकार हो गया।
नेपिल्स की जनता ने उसका भव्य स्वागत किया। गैरीबाल्डी अपने आपको नेपिल्स का अधिनायक घोषित किया। उसके बाद उसने रोम पर अधिकार करने की योजना बनाई। उसने यह पहले ही घोषणा कर दी थी कि वह सिसली और नेपिल्स को तभी इटली राज्य में शामिल करेगा, जब वह रोम की विजय करके विक्टर इमेनुअल को इटली का सम्राट घोषित कर देगा।
गैरीबाल्डी की सफलता से उत्पन्न कठिनाइयाँ
गैरीबाल्डी अपनी विजयों से प्रोत्साहित होकर रोम पर आक्रमण करने की योजना बना रहा था। इससे अंतर्राष्ट्रीय कठिनाई उत्पन्न होने की संभावना थी, क्योंकि रोम की सुरक्षा के लिये फ्रांसीसी सैनिक वहाँ तैनात थे, अतः रोम पर आक्रमण करने से फ्रांसीसी सैनिकों से युद्ध होना अनिवार्य था और ऐसी स्थिति में नेपोलियन का हस्तक्षेप स्वाभाविक था। गैरीबाल्डी वेनेशिया पर भी आक्रमण कर सकता था।
ऐसी स्थिति में आस्ट्रिया से युद्ध अनिवार्य था। फ्रांस और आस्ट्रिया, दोनों की सेनाओं से युद्ध करना सार्डीनिया के लिये संभव नहीं था। इसके अलावा गैरीबाल्डी, मेजिनी का अनुयायी था, अतः कैवूर को आशंका थी, कि गैरीबाल्डी अपने विजित प्रदेशों में कहीं गणतंत्र स्थापित न कर दे।
ऐसा होने से सार्डीनिया के नेतृत्व में इटली के एकीकरण का स्वप्न भंग हो जाएगा। कैवूर के समक्ष यह समस्या थी, कि इन कठिनाइयों से कैसे निपटा जाय, किन्तु उसने गैरीबाल्डी को विफल बनाने का उपाय खोज निकाला। उसने यह निश्चय किया कि गैरीबाल्डी के आगे बढने से पूर्व ही पोप के राज्य पर सार्डीनिया की सेनाओं द्वारा आक्रमण कर दिया जाय, किन्तु इससे फ्रांस के साथ युद्ध होने का खतरा था।
अतः कैवूर ने नेपोलियन से बातचीत की तथा उसे समझाया कि गैरीबाल्डी की प्रगति को रोकने के लिये पोप के राज्य में सेना भेजना आवश्यक है। नेपोलियन इस समय पोप से अप्रसन्न था, क्योंकि पोप ने फ्रांस की सैनिक सहायता से मुक्त होने के लिये अपनी अलग से सेना गठित कर ली थी, जिसका सेनापति नेपोलियन का व्यक्तिगत शत्रु था। नेपोलियन ने कैवूर को स्वीकृति प्रदान कर दी।
पोप के राज्य पर अभियान
नेपोलियन की ओर से आश्वासन मिलने के बाद 11 सितंबर, 1860 को सार्डीनिया की सेनाओं ने पोप के राज्य पर आक्रमण कर दिया। 29 सितंबर को आम्बिया और मार्चेस पर सार्डीनिया का अधिकार हो गया। इधर गैरीबाल्डी भी रोम की ओर आगे बढ रहा था, किन्तु रास्ते में नेपिल्स के शासक फ्रांसिस की सेनाओं ने उसका रास्ता रोक लिया, जिससे वह कई दिन तक आगे नहीं बढ सका।
उधर इटली की संसद के निर्णयानुसार नेपिल्स, सिसली व पोप के जीते हुये प्रदेशों में जनमत संग्रह कराया गया तथा अक्टूबंर, 1860 के अंत तक सभी क्षेत्रों की जनता ने उत्तरी इटली के राज्य में सम्मिलित होने का निर्णय किया। इससे कैवूर की स्थिति मजबूत हो गयी। दूसरी ओर गैरीबाल्डी को यह विश्वास हो गया कि इटली की सेना के बिना वह सफल नहीं हो सकता। इसी समय विक्टर इमेनुअल स्वयं अपनी सेना लेकर नेपिल्स की ओर बढा तथा टिआनो नामक स्थान पर उसकी गैरीबाल्डी से भेंट हुई।
गैरीबाल्डी ने उसका इटली के शासक के रूप में अभिनन्दन किया तथा 27 अक्टूबर, 1860 को गैरीबाल्डी ने अपनी सेना तथा समस्त अधिकार विक्टर इमेनुअल को समर्पित कर दिये। 7 नवंबर, 1860 को विक्टर इमेनुअल ने गैरीबाल्डी के साथ नेपिल्स में प्रवेश किया। तत्पश्चात गैरीबाल्डी अपने केप्रीरा टापू में चला गया।
गैरीबाल्डी को देश सेवा के लिये पुरस्कारस्वरूप सम्मान एवं उपाधियाँ देने का प्रस्ताव हुआ, किन्तु उसने आदरपूर्वक किसी भी प्रकार का सम्मान या उपाधि लेने से इन्कार कर दिया। उसने कहा कि, देश सेवा स्वयं एक पुरस्कार है, मुझे कोई दूसरी चीज नहीं चाहिये। गैरीबाल्डी अपने केप्रीरा टापू में जाकर वहीं खेती करने लगा।
फरवरी, 1861 में ट्यूरीन में इटली की प्रथम संसद की बैठक हुई, जिसमें रोम और वेनेशिया को छोङकर समस्त इटली के प्रतिनिधि सम्मिलित हुए। विक्टर इमेनुअल को विधिवत इटली का शासक स्वीकार किया गया। संसद ने कैवूर का यह भी प्रस्ताव स्वीकार किया कि रोम इटली की राजधानी होनी चाहिये।
इसके कुछ ही समय बाद 6 जून, 1861 को कैवूर की मृत्यु हो गयी क्योंकि रोम और वेनेशिया के बिना इटली का एकीकरण अपूर्ण था। वास्तव में कैवूर ने महान कार्य किए। एक राष्ट्र के रूप में इटली कैवूर की ही देन है। यद्यपि इटली की मुक्ति के लिये मेजिनी, गैरीबाल्डी औदि देशभक्तों ने भी प्रयत्न किये, किन्तु कैवूर की देन सबसे भिन्न थी। उसने एकीकरण के प्रश्न को दलगत राजनीति से अलग रखा।
मेजिनी में भावनाओं को उत्तेजित करने की अपूर्व क्षमता थी। वह निर्जीव आत्मा में भी प्राण फूँक सकता था। गैरीबाल्डी एक कुशल सेनापति तथा निःस्वार्थ देशभक्त था, किन्तु कैवूर इन दोनों से भिन्न कुशल कूटनीतिज्ञ तथा व्यावहारिक था, इसलिए वह सफल भी रहा।
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1. पुस्तक- आधुनिक विश्व का इतिहास (1500-1945ई.), लेखक - कालूराम शर्मा
Online References Wikipedia : गैरीबाल्डी