बिस्मार्क का जीवन परिचय (Biography of Bismarck) –
बिस्मार्क का जन्म 1 अप्रेल,1815 ई. को ब्रेडनबर्ग के एक कुलीन परिवार में हुआ था। उसकी शिक्षा गोर्तिजन एवं बर्लिन विश्वविद्यालय में पूर्ण हुई। उसने शिक्षा पूर्ण करने के उपरांत प्रशा की सिविल सेवा में नौकरी की परंतु कुछ ही वर्षों पश्चात् नौकरी छोङकर पौमेरेनिया में अपनी जागीर की देखभाल करने लगा। इस दौरान उसने विभिन्न भाषाओं, राजनीति, इतिहास और दर्शन का अध्ययन किया। बिस्मार्क अब राजनीति, इतिहास और दर्शन का अध्ययन किया।

बिस्मार्क अब राजनीति में भाग लेने लगा। उसका मतलब बर्लिन की अनुदारवादी विचारधारा की संस्था ट्रीगलाफ से हुआ। 1847 ई. में वह प्रशा के सम्राट द्वारा बुलाई गई संयुक्त प्रशियन डायट (संसद) का सदस्य निर्वाचित हुआ। 1851 ई. में वह फ्रैंकफर्ट की संसद में प्रशा का सदस्य बनाकर भेजा गया। इस संसद में उसने 8 वर्षों तक प्रशा का प्रतिनिधित्व किया। यहाँ रहते हुए उसने राजनैतिक परिपक्वता हासिल की तथा यहाँ रहते हुए ही वह इस निष्कर्ष पर भी पहुँचा कि आस्ट्रिया के रहते हुए जर्मनी कभी भी एकीकृत नहीं हो सकता एवं जर्मनी के एकीकरण के लिए प्रशा-आस्ट्रिया युद्ध अवश्यंभावी है। यहां रहते हुए ही बिस्मार्क ने आस्ट्रिया के प्रभाव को कम करने का हर संभव प्रयास किया।
सम्राट विलियम आस्ट्रिया को रुष्ट नहीं करना चाहता था अतः उसने बिस्मार्क को फ्रैंकफर्ट संसद से वापस बुला लिया तथा उसकी नियुक्ति रूस में राजदूत के रूप में की गयी। यहाँ उसकी राजनैतिक व्यक्तित्व में और निखार आया। बिस्मार्क ने रूस के जार अलेक्जैण्डर द्वितीय से मित्रता कर ली।
क्रीमिया के युद्ध के समय प्रशा में रूस के विरुद्ध युद्ध घोषित करने की मांग की गयी लेकिन प्रशा इस मामले में तटस्थ रहा और प्रशा के इस कदम से रूस के जार अलैक्डैण्डर द्वितीय और बिस्मार्क की मित्रता में और प्रगाढता आई। 1859 ई. से 1862 ई. तक बिस्मार्क रूस में राजदूत रहा। मार्च 1862 ई. में बिस्मार्क को फ्रांस का राजदूत बनाकर भेजा गया। फ्रांस में बिस्मार्क को नेपोलियन तृतीय एवं उसके मंत्रियों से मिलने एवं उनकी नीतियों को समझने का अवसर मिला। इसी दौरान प्रशा में संकट के चलते सम्राट ने बिस्मार्क को प्रशा बुला लिया तथा सितंबर, 1862 ई. में अपना चांसलर नियुक्त किया।
