इटली का एकीकरणइतिहासविश्व का इतिहास

बिस्मार्क का उदय

बिस्मार्क का उदय

बिस्मार्क का जन्म 1 अप्रैल, 1815 को ब्रेडनबर्ग के एक कुलीन परिवार में हुआ था। उसकी शिक्षा गर्टिजन और बर्लिन विश्वविद्यालयों में हुई, किन्तु उसने कोई विशेष प्रतिभा का परिचय नहीं दिया। शिक्षा समाप्त कर उसने प्रशा के न्याय विभाग में नौकरी कर ली, किन्तु 1839 में उसने इस नौकरी से त्याग पत्र दे दिया तथा अगले 8 वर्ष उसने अपनी जागीर के प्रबंध करने तथा उसमें सुधार करने में व्यतीत किए।

इस काल में उसने कृषि संबंधी ज्ञान प्राप्त किया, विदेशों की यात्रा की तथा राजनीति में भाग लेना आरंभ किया। इसी समय उसका संबंध ट्रीगलाफ नामक एक समिति से हो गया, जिसका संबंध बर्लिन के अनुदार दल से था। इसी समय से वह रूढिवादी तथा निरंकुश शासन का समर्थक बन गया।

1847 में उसने राजनीति में प्रवेश किया। उस वर्ष सम्राट ने उदारवादियों की माँग पर संयुक्त प्रशियन डायट आमंत्रित की तथा बिस्मार्क उसका सदस्य निर्वाचित हुआ। इस सभा में उसने उदारवाद और क्रांति का विरोध किया था। 1847 से 1851 तक प्रशा के इतिहास में अनेक महत्त्वपूर्ण घटनाएँ घटित हुई।

इसी अवधि में 1848 की क्रांति हुई, प्रशा के शासक ने फ्रेंकफर्ट संसद द्वारा प्रस्तावित राजमुकुट को अस्वीकार किया तथा जर्मन संघ बनाने का प्रयत्न रहा। यहाँ उसने उदारवादियों एवं क्रांतिकारियों की कटु आलोचना की तथा निरंकुश राजतंत्र का समर्थन किया। इस प्रकार, 1851 तक बिस्मार्क राजतंत्र के कट्टर समर्थक और लोकतंत्र के शत्रु के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त कर चुका था।1851 में प्रशा के सम्राट ने बिस्मार्क को फ्रेंकफर्ट की सभा में प्रशा का प्रतिनिधि नियुक्त किया तथा वहाँ वह आठ वर्ष तक प्रशा का प्रतिनिधित्व करता रहा।

यहाँ पर उसके आस्ट्रिया संबंधी विचारों में परिवर्तन आया। पहले वह आस्ट्रिया से सहयोग कर क्रांति का दमन करने का समर्थक रहा था, किन्तु अब उसे ज्ञात हुआ कि आस्ट्रिया और प्रशा का सहयोग संभव नहीं है, क्योंकि आस्ट्रिया प्रशा को बराबरी का स्थान देने को तैयार नहीं था। आस्ट्रिया जर्मनी की छोटी-छोटी रियासतों को अपने पक्ष में रखकर जर्मन संघ पर अपना प्रभाव बनाए रखना चाहता था, अतः वह इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि आस्ट्रिया को पराजित किए बिना प्रशा के नेतृत्व में जर्मनी का एकीकरण संभव नहीं है।

उसने फ्रेंकफर्ट की सभा में आस्ट्रिया के प्रभाव को रोकने का हर संभव प्रयत्न किया। जनवरी, 1859 में बिस्मार्क को राजदूत बनाकर रूस भेजा गया। रूस में उसने जार अलेक्जेण्डर द्वितीय से व्यक्तिगत मित्रता स्थापित की। क्रीमिया युद्ध के समय प्रशा में रूस के विरुद्ध युद्ध घोषित करने की माँग की गयी, किन्तु बिस्मार्क के कारण प्रशा तटस्थ बिस्मार्क को फ्रांस में राजदूत बनाया गया। फ्रांस में उसे नेपोलियन तृतीय एवं उसके मंत्रियों से वह पामर्स्टन तथा डिजरैली से मिला। सितंबर, 1862 में प्रशा के सम्राट ने उसे तार भेजकर बर्लिन बुला लिया तथा 22 सितंबर, 1862 को उसे प्रशा का चान्सलर नियुक्त किया।

बिस्मार्क

बिस्मार्क की रक्त और लौह की नीति

बिस्मार्क

बिस्मार्क प्रशा की सैन्य शक्ति के आधार पर प्रशा के नेतृत्व में जर्मनी का एकीकरण करना चाहता था। चान्सलर बनने के बाद उसका एकमात्र लक्ष्य आस्ट्रिया को पराजित कर जर्मनी के एकीकरण के मार्ग को निष्कंटक बनाना था, इसलिए उसने प्रशा की सैन्य शक्ति के पुनर्गठन का कार्य जारी रखा।

इस कार्य के संबंध में सम्राट विलियम प्रथम और संसद के मध्य झगङा छिङ चुका था। बिस्मार्क ने संसद के विरोधी पक्ष से समझौता करने का प्रयास किया, किन्तु संसद अपनी जिद पर अङी हुई थी। बजट संबंधी एक समिति में 1862 में ही उसने उदारवादियों के सिद्धांतों का खंडन करते हुये अपनी नीति को इस प्रकार स्पष्ट किया, जर्मनी का ध्यान प्रशा के उदारवाद की ओर नहीं है वरन् उसकी शक्ति पर लगा हुआ है।

प्रशा को अनुकूल अवसर आने तक अपनी शक्ति को सुरक्षित रखना है। हम पहले कई बार इस प्रकार के अवसर खो चुके हैं। हमारे समय की महान समस्याएँ भाषणों और बहुमत के प्रस्तावों द्वारा नहीं बल्कि रक्त और लौहे के द्वारा ही सुलझ सकती हैं, 1848-49 में हमने यही सबसे बङी भूल की थी। बिस्मार्क के इस नीति संबंधी स्पष्टीकरण का अर्थ यह था, कि प्रशा के भविष्य का निर्माण सेना द्वारा होगा, न कि संसद द्वारा।

जर्मन साम्राज्य भाषणों अथवा बहुमत के प्रस्तावों पर खङा नहीं हो सकता बल्कि तलवार का प्रयोग कर रक्त की सुदृढ नींव पर ही खङा किया जा सकता है। उस समय उदारवादियों ने तथा उसके विरोधियों ने बिस्मार्क की इस नीति की कटु आलोचना की, किन्तु बिस्मार्क जानता था, कि यदि उसकी जर्मनी-एकीकरण की नीति सफल हो गयी तो जर्मन जनता उसकी अनुदारता को भूल जाएगी।

अब बिस्मार्क और संसद के बीच भी लङाई ठन गयी। निम्न सदन से बजट स्वीकार कराना बहुत ही कठिन कार्य था। बिस्मार्क ने इसका रास्ता भी खोज लिया। उसने निम्न सदन की अवहेलना करके उच्च सदन से बजट पास करवा लिया तथा सैनिक सुधारों के लिये आश्यक धनराशि प्राप्त कर ली।

1862 से 1866 तक वह इसी प्रकार उच्च सदन में बजट पास करवाता रहा। यद्यपि बिस्मार्क का यह कार्य असंवैधानिक था, किन्तु राष्ट्रहितों को सर्वोपरि मानते हुये उसने विधान की कोई परवाह नहीं की। 1863 में उसने कहा था, प्रशा के राजतंत्र का लक्ष्य अभी प्राप्त नहीं हुआ है, इसलिए वह अभी संसदीय शासन पद्धति के अन्तर्गत एक खिलौना बनने के लिये तैयार नहीं है। बिस्मार्क अपने आपको केवल सम्राट के प्रति उत्तरदायी समझता था। यद्यपि स्वयं सम्राट भी कभी-कभी उसकी स्वेच्छाचारी नीति से घबरा उठता था, किन्तु बिस्मार्क उसको समझाकर अपनी कार्यवाही पर स्वीकृति प्राप्त कर लेता था।

यद्यपि बिस्मार्क को अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये अनेक आंतरिक एवं बाह्य कठिनाइयों का सामना करना पङा, किन्तु वह बङे ही धैर्य, साहस और लगन के साथ आगे बढता गया। उसने प्रशा की सेना का पुनर्गठन कर उसे यूरोप में सर्वश्रेष्ठ बना दिया। तत्पश्चात उसने अपनी कूटनीति द्वारा आस्ट्रिया को निर्बल बनाने का प्रयास किया। उस समय की अंतर्राष्ट्रीय स्थिति बिस्मार्क के अनुकूल थी। क्रीमिया युद्ध के कारण आस्ट्रिया व फ्रांस के भी संबंध बिगङ चुके थे। इंग्लैण्ड इस समय यूरोपीय मामलों में अधिक रुचि नहीं ले रहा था, अतः आस्ट्रिया को किसी भी महान शक्ति से सहायता नहीं मिल सकती थी।

बिस्मार्क द्वारा विदेशों से मित्रता

बिस्मार्क ने प्रशा को सर्वपश्रेष्ठ सैनिक शक्ति में परिवर्तित कर अब जर्मनी के एकीकरण की तैयारी आरंभ कर दी। वह चाहता था, कि ऐसी एक अंतर्राष्ट्रीय स्थिति उत्पन्न कर दी जाय कि यदि प्रशा का आस्ट्रिया के साथ युद्ध हो तो कोई भी राष्ट्र आस्ट्रिया की सहायता न करे। इसके लिये उसने रूस, फ्रांस और इटली को अपना मित्र बना लिया।

बिस्मार्क रूस के जार अलेक्जेण्डर द्वितीय का व्यक्तिगत मित्र था और जनवरी, 1863 में पोलैण्ड विद्रोह के समय यह मित्रता और भी अधिक दृढ हो गयी। 1863 में पोलैण्ड ने रूस के विरुद्ध विद्रोह कर दिया, तब इंग्लैण्ड, फ्रांस और आस्ट्रिया ने पोलैण्ड के प्रति सहानुभूति प्रकट की। प्रशा की जनता की भी सहानुभूति पोलैण्ड के साथ थी, किन्तु बिस्मार्क ने प्रशा के हितों को ध्यान में रखते हुये अन्य यूरोपीय राज्यों का साथ नहीं दिया तथा रूस की पोलैण्ड संबंधी नीति का समर्थन किया।

उसने अपने एक विशेष राजदूत को रूस भेजा, जिसने रूस के साथ संधि कर ली। इस संधि के अनुसार दोनों ने अपनी-अपनी सीमाओं पर सैनिक तैनात कर दिये ताकि अपने राज्य से कोई पोल विद्रोहियों की सहायता के लिये न जा सके। प्रशा ने यह आश्वासन दिया कि किसी पोल विद्रोही को अपने राज्य में शरण नहीं देगा। यद्यपि प्रशा की संसद ने इस नीति की कटु आलोचना की, किन्तु बिस्मार्क ने यह स्पष्ट कह दिया कि युद्ध एंव संधि करने का परमाधिकार सम्राट का है तथा संसद उसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती। वस्तुतः प्रशा के सहयोग से रूस को बङा ही बल मिला।

यदि बिस्मार्क अन्य यूरोपीय राज्यों का साथ देता तो रूस को अनिवार्य रूप से झुकना पङता। इस घटना से रूस, प्रशा का मित्र बन गया तथा रूस व प्रशा की मैत्री बिस्मार्क की नीति का आधार स्तंभ थी।

इसी बीच बिस्मार्क ने फ्रांस से भी अच्छे संबंध स्थापित करने का प्रयास किया। फ्रांस का सम्राट नेपोलियन तृतीय भी आंतरिक रूप से आस्ट्रिया का विरोधी था। बिस्मार्क ने इसका लाभ उठाते हुये नेपोलियन से कहा कि यदि फ्रांस, आस्ट्रिया का व प्रशा के युद्ध में तटस्थ रहता है तो उसे राइन तट की ओर या बेल्जियम की ओर कुछ प्रदेश दे दिये जाएँगे।

यद्यपि बिस्मार्क ने इन प्रदेशों के लिये कोई निश्चित या स्पष्ट आश्वासन नहीं दिया था, फिर भी बिस्मार्क की बातों से नेपोलियन को यह आभास हुआ था। नेपोलियन तृतीय ने प्रशा और आस्ट्रिया के युद्ध में तटस्थ रहने का आश्वासन दिया। फ्रांस से अच्छे संबंध बनाए रखने के लिये उसने फ्रांस के साथ एक व्यापारिक संधि भी कर ली।

बिस्मार्क ने इटली से भी मित्रता की। इटली भी आस्ट्रिया को निकालना चाहता था, क्योंकि आस्ट्रिया का प्रभाव बने रहने पर इटली का एकीकरण संभव नहीं था। अतः बिस्मार्क के प्रयत्नों से 8 अप्रैल, 1866 को इटली और प्रशा के बीच एक संधि हुई, जिसके अनुसार आस्ट्रिया व प्रशा के युद्ध में इटली प्रशा को सैनिक सहायता देगा तथा इसके बदले में इटली को वेनेशिया दिलवा दिया जाएगा। इस प्रकार, बिस्मार्क ने इटली को भी अपना मित्र बना लिया।

बिस्मार्क ने अन्तर्राष्ट्रीय कूटनीति को अपने पक्ष में करने के बाद अब जर्मनी के एकीकरण की दिशा में आगे कदम बढाया। जर्मनी का एकीकरण बिस्मार्क की रक्त और लोह नीति का परिणाम था। इस नीति का अनुसरण उसने तीन युद्धों में किया। प्रथम, 1864 में डेनमार्क के साथ, दूसरा 1866 में आस्ट्रिया के साथ तथा तीसरा 1870 में फ्रांस के साथ। इन तीनों युद्धों के द्वारा उसने जर्मनी का एकीकरण पूर्ण किया।

1. पुस्तक- आधुनिक विश्व का इतिहास (1500-1945ई.), लेखक - कालूराम शर्मा

Online References
Wikipedia : बिस्मार्क का उदय

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