वेंगी के पूर्वी चालुक्य शासकों का इतिहास
वेंगी के पूर्वी चालुक्य – वेंगी का प्राचीन राज्य आधुनिक आंध्र प्रदेश की कृष्णा तथा गोदावरी नदियों के बीच स्थित था। वेंगी की पहचान गोदावरी जिले में स्थित पेड्डवेगि नामक स्थान से की जाती है। वातापी के प्रसिद्ध चालुक्य शासक पुलकेशिन द्वितीय ने इसे जीतकर अपने छोटे भाई विष्णुवर्धन को यहाँ का उपराजा बनाया था। कालांतर में उसी ने यहाँ एक स्वतंत्र चालुक्य वंश की स्थापना की, जिसे पूर्वी चालुक्य वंश कहा जाता है। जल्दी ही यह एक स्वतंत्र राज्य बन गया तथा कुब्ज विष्णुवर्धन ने वेंगी के पूर्वी चालुक्य वंश की स्थापना की। कई बार उत्तराधिकार के प्रश्न पर यह राज्य राष्ट्रकूटों, चोलों तथा कल्याणी के चालुक्यों के बीच विवाद का कारण बना।
प्रारंभिक शासक
कुब्ज विष्णुवर्धन
विष्णुवर्धन योग्य तथा शक्तिशाली राजा था। बहुत समय तक वह अपने भाई (वातापी के चालुक्य शासक पुलकेशिन द्वितीय)के प्रति निष्ठावान रहा तथा उसकी ओर से विभिन्न युद्धों में भाग लिया। जिस समय पुलकेशिन – पल्लव नरेश नरसिंहवर्मा प्रथम के साथ भीषण युद्ध में फंसा हुआ था, उसी समय विष्णुवर्धन ने वेंगी में अपनी स्वाधीनता घोषित कर दी …अधिक जानकारी
वेंगी के चालुक्य शासक विष्णुवर्धन का पुत्र जयसिंह प्रथम (633-663ई.) उसके बाद शासक हुआ। उसने पृथ्वीबल्लभ, पृथ्वीजयसिंह तथा सर्वसिद्धि जैसी उपाधियाँ धारण की।एक लेख में उसे कई सामंत शासकों को पराजित करने वाला बताया गया है…अधिक जानकारी
विष्णुवर्धन द्वितीय
जयसिंह प्रथम के बाद उसका पुत्र विष्णुवर्धन द्वितीय (663-672ई.) गद्दी पर बैठा। उसने विषमसिद्धि, मकरध्वज तथा प्रलयादित्य जैसी उपाधियाँ ग्रहण की।
मंगि युवराज
विष्णुवर्धन द्वितीय का उत्तराधिकारी उसका पुत्र मंगि बना, जिसे विजयसिद्धि और सर्वलोकाश्रय भी कहा जाता है। उसने ल25 वर्षों (672-697ई.) तक शासन किया।
जयसिंह द्वितीय
मंगि युवराज का पुत्र जयसिंह द्वितीय था, जिसे सर्वलोकाश्रय तथा सर्वसिद्धि भी कहा गया है, अपने पिता की मृत्यु के बाद राजा बना तथा 13 वर्षों (697-710ई.) तक शासन किया। उसके समय में उसके छोटे भाई विजयादित्यवर्मन् ने, जो एलमंचिलि का वायसराय था, अपने को स्वतंत्र कर लिया और महाराजा की उपाधि ग्रहण की। उसके बाद एलमंचिलि पर उसके पुत्र कोकिलिवर्मन् का अधिकार हो गया।
कोकुलि विक्रमादित्य
जयसिंह द्वितीय की मृत्यु के बाद वेंगी पर उसके सौतेले भाई कोकुलि विक्रमादित्य ने अधिकार कर लिया तथा उसने केवल छः माह तक राज्य किया। उसने एलमंचिलि पर पुनः अधिकार कर लिया।
विष्णुवर्धन तृतीय
कोकुलि विक्रमादित्य को हटाककर उसका बङा भाई विष्णुवर्धन तृतीय (710-746ई.) राजा बन बैठा। उसने एलमंचिलि क्षेत्र को जीतकर अपने राज्य में मिला लिया। उसके समय में पृथ्वीव्याघ्र नामक एक निषाद शासक ने उसके राज्य के दक्षिणी भाग पर अधिकार कर लिया। परंतु बाद में विष्णुवर्धन ने उसे पुनः जीत लिया।
विजयादित्य प्रथम
विष्णुवर्धन तृतीय के बाद उसका पुत्र विजयादित्य प्रथम(746-764ई.) वेंगी के चालुक्य वंश का राजा बना। उसने त्रिभुवनांकुश और विजयादित्य जैसी उपाधियाँ धारण की। उसके समय में बादामी के चालुक्य वंश का राष्ट्रकूटों ने उन्मूलन कर दिया। इसके बाद राष्ट्रकूटों का वेंगी के पूर्वी चालुक्यों के साथ संघर्ष प्रारंभ हुआ।
वेंगी के चालुक्य शासक विजयादित्य प्रथम के बाद उसका पुत्र विष्णुवर्धन चतुर्थ (764-799ई.) राजा बना। इस समय राष्ट्रकूट वंश में कृष्ण प्रथम का शासन था। उसने अपने पुत्र गोविंद द्वितीय को वेंगी के चालुक्य राज्य पर आक्रमण करने के लिये भेजा। राष्ट्रकूट वंश के अलस अभिलेख (769ई.) से पता चलता है, कि युवराज गोविंद द्वितीय ने वेंगी के विरुद्ध अभियान का नेतृत्व किया था तथा उसने मुसी और कृष्णा नदियों के संगम पर अपने विजयशिविर में कोष, सेना तथा भूमि सहित वेंगी नरेश के समर्पण को स्वीकार किया था। इससे ऐसा निष्कर्ष निकलता है, कि विजयादित्य ने बिना युद्ध के ही राष्ट्रकूट नरेश की अधीनता स्वीकार कर ली थी…अधिक जानकारी
वेंगी के चालुक्य शासक विजयादित्य द्वितीय के बाद उसका पुत्र विष्णुवर्धन पंचम शासक बना, जिसने 18 से 20 माह तक शासन किया। उसके कई पुत्र थे, जिनमें से विजयादित्य तृतीय वेंगी की गद्दी पर बैठा। उसने 44 वर्षों (848-892ई.) तक राज्य किया…अधिक जानकारी
वेंगी के चालुक्य शासक विजयादित्य तृतीय के बाद उसका भतीजा भीम प्रथम चालुक्य वंश का राजा बना। उसकी प्रारंभिक स्थिति अत्यन्त संकटपूर्ण थी। उसके चाचा तथा कुछ अन्य पारिवारिक सदस्यों ने उसके राज्यारोहण का विरोध किया। चाचा युद्धमल्ल ने राष्ट्रकूट नरेश कृष्ण द्वितीय से सहायता मांगी…अधिक जानकारी
वेंगी के चालुक्य शासक भीम के बाद विजयादित्य चतुर्थ राजा बना।उसने भी राष्ट्रकूट सेना को पराजित किया। उसका कलिंग के गंगवंश के साथ भी संघर्ष हुआ। राजा बनने के बाद उसने एक सेना के साथ कलिंग राज्य पर आक्रमण किया …अधिक जानकारी
अम्म प्रथम वेंगी के चालुक्य शासक विजयादित्य चतुर्थ का ज्येष्ठ पुत्र था तथा उसकी मृत्यु के बाद राजा बना…अधिक जानकारी
अल्पकालीन शासक
अम्म प्रथम का पुत्र विजयादित्य पंचम 929 ई. में पिता की मृत्यु के बाद राजा बनाथ। यह केवल 15 दिनों तक राजा रहा। इसके बाद युद्धमल्ल द्वितीय के पुत्र ताल ने उसे गद्दी से हटा कर सिंहासन प्राप्त कर लिया था. ताल युद्धमल्ल द्वितीय का पुत्र था। उसने संभवतः राष्ट्रकूटों की सहायता से गद्दी प्राप्त की थी। परंतु एक महीने बाद एक – दूसरे दावेदार भीम प्रथम के पुत्र विक्रमादित्य ने उसे पदच्युत कर दिया। विक्रमादित्य द्वितीय ने एक वर्ष तक शासन किया। लेकिन इस अल्पावधि में ही उसने त्रिकलिंग को पुनः जीत लिया, जिसके ऊपर भीम प्रथम के बाद चालुक्यों का अधिकार समाप्त हो गया था. विक्रमादित्य को अम्म प्रथम के दूसरे पुत्र भीम द्वितीय ने अपदस्थ कर राज्य पर अधिकार कर लिया। 8 महीने के शासन के बाद ताल के पुत्र युद्धमल्ल द्वितीय ने उसे मार डाला। उसके इस कार्य में राष्ट्रकूट नरेश इन्द्र तृतीय ने सहायता प्रदान की। उसने एक बङी सेना चालुक्य राज्य में भेजी, जिसकी सहरायता से युद्धमल्ल भीम को पदच्युत करने में सफल रहा।
युद्धमल्ल द्वितीय ने सात वर्षों (930-37)तक राज्य किया। किन्तु वह नाममात्र का ही शासक था तथा उसके समय में चालुक्य राज्य पर राष्ट्रकूटों का पूर्ण प्रभाव बना रहा। उसके अन्य भाई भी उसे हटाने के लिये षङयंत्र कर रहे थे। उसका काल अराजकता और अव्यवस्था का रहा।इस स्थिति से चालुक्य राज्य को छुटकारा जिलाने का श्रेय विजयादित्य चतुर्थ के पुत्र भीम द्वितीय को दिया जाता है, जिसने राष्ट्रकूट सेनाओं को अपने साम्राज्य से बाहर भगाया तथा युद्धमल्ल को हटाकर 935ई.में वेंगी का शासक बन बैठा। भीम की इस सफलता में राष्ट्रकूट राज्य में फैली अव्यवस्था का विशेष योगदान रहा। 930 ई.में गोविन्द के शासन के विरुद्ध उसके कुछ उच्च अधिकारियों ने बड्डेग तथा उसके पुत्र कन्नर के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया। इनका साथ कुछ अन्य सामंतों ने भी दिया। गोविन्द उन्हें दबा नहीं सका तथा विद्रोह बढता गया। इसी का लाभ उठाते हुये भीम ने अपनी स्वतंत्रता घोषित कर दी तथा वेंगी में पङी हुई राष्ट्रकूट सेना को पराजित कर बाह भगा दिया। युद्धमल्ल के सामने हथियार डालने के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं था। भीम ने 12 वर्षों तक शासन किया। उसने विष्णुवर्धन, लोकाश्रय, राजमार्तण्ड, त्रिभुवनांकुश जैसी उपाधियाँ धराण की। उसने विजयवाङा में मल्लेश्वर स्वामी का मंदिर बनवाया था।
वेंगी के चालुक्य शासक भीम द्वितीय के बाद 947 ई. के लगभग उसका पुत्र अम्म द्वितीय राजा बना। उसे राजमहेन्द्र तथा विजयादित्य भी कहते हैं…अधिक जानकारी
दानार्णव
दानार्णव ने तीन वर्षों तक शासन किया था। वह बराबर संघर्ष में उलझा रहा। 973 ई.में अम्म द्वितीय के साले चोडभीम ने दानार्णव की हत्या कर सिंहासन पर अधिकार कर लिया था।
शक्तिवर्मा दानार्णव का पुत्र था, जो चोडभीम के बाद वेंगी का शासक बना था। इसके साथ ही वेंगी में चालुक्य वंश का शासन पुनः स्थापित हुआ…अधिक जानकारी
1018 ई.में विमलादित्य की मृत्यु के बाद उसका ज्येष्ठ पुत्र राजराज नरेन्द्र वेंगी का राजा बना। उसे अपने अनुज विजयादित्य के विरोध का सामाना करना पङा। लेकिन चोल शासक राजेन्द्र की सहायता से उसने वेंगी की गद्दी पर अधिकार कर लिया। दोनों भाईयों का संघर्ष जारी रहा…अधिक जानकारी
विजयादित्य सप्तम राजराज नरेन्द्र का छोटा भाई था। राजराज के बाद यह वेंगी के चालुक्य वंश का अंतिम शासक बना। उसे कल्याणी के चालुक्यों का समर्थन प्राप्त था…अधिक जानकारी
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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