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वेंगी के चालुक्य शासक भीम प्रथम का इतिहास

वेंगी के चालुक्य शासक विजयादित्य तृतीय के बाद उसका भतीजा भीम प्रथम चालुक्य वंश का राजा बना। उसकी प्रारंभिक स्थिति अत्यन्त संकटपूर्ण थी। उसके चाचा तथा कुछ अन्य पारिवारिक सदस्यों ने उसके राज्यारोहण का विरोध किया। चाचा युद्धमल्ल ने राष्ट्रकूट नरेश कृष्ण द्वितीय से सहायता मांगी। कृष्ण ने विजयादित्य के हाथों हुई अपनी पराभव का बदला लेने के लिये तुरंत एक सेना वेंगी भेजी। भीम कृष्ण द्वितीय के सामंत वड्डेग द्वारा पराजित हुआ और बंदी बना लिया गया। कृष्ण द्वितीय के सैनिकों ने गुन्टूर तथा नेल्लोर तक दक्षिम में चालुक्य राज्य को रौंद डाला। किन्तु राष्ट्रकूटों की विजय स्थायी नहीं रही। पूर्वी चालुक्यों के कुछ स्वामीभक्त सामंतों तथा सहायकों ने मुदुगोण्ड के चालुक्य शासक कुसुमायुध के नेतृत्व में संगठित होकर आक्रमणकारियों का सामना किया तथा उन्हें अपने राज्य से बाहर भगा दिया। उसके बाद भीम प्रथम ने 892 ई. में वेंगी का सिंहासन प्राप्त किया। राज्यारोहण के बाद उसने विष्णुवर्धन की उपाधि ग्रहण की। किन्तु वह शांतिपूर्वक शासन नहीं कर सका। कुछ समय बाद कृष्ण द्वितीय ने अपने सेनापति दंडेस गुण्डय के नेतृत्व में पुनः एक सेना चालुक्य राज्य पर आक्रमण करने को भेजी। इसमें राष्ट्रकूटों की मदद के लिये लाट तथा कर्नाटक प्रदेश की सेनायें भी थी। भीम तथा उसके पुत्र इरिमर्तुगंड ने निर्वधपुर में राष्ट्रकूट सेनाओं को पराजित किया। इसके बाद पेरुवंगुरुग्राम में राष्ट्रकूटों तथा चालुक्यों में पुनः युद्ध हुआ। इस युद्ध में भी भीम प्रथम की ही विजय हुई, किन्तु उसका पुत्र मारा गया। उधर राष्ट्रकूट सेनापति दंडेश भी वीरगति को प्राप्त हुआ। इस प्रकार भीम ने अपने राज्य को राष्ट्रकूटों के आक्रमण से सुरक्षित बचा लिया।

भीम के राज्य काल की अन्य घटनाओं के बारे में जानकारी नहीं मिलती। वह शिव का उपासक था, तथा उनकी उपासना के लिये मंदिर बनवाये थे। उसने 922ई. तक राज्य किया।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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