धोलावीरा नामक स्थल गुजरात के कच्छ जिले के भचाऊ तालुका में मासर एवं मानहर नदियों के संगम पर स्थित है। यह सिन्धु सभ्यता का एक प्राचीन और विशाल नगर था।
इसकी खोज जगतपति जोशी ने 1967-68 में की लेकिन इसका विस्तृत उत्खनन 1990-91 में रवीन्द्रसिंह बिस्ट ने किया।
धोलावीरा के अलावा सिंधु घाटी सभ्यता के नगरों की संख्या 6 है, जो निम्नलिखित हैं
हङप्पा, मोहनजोदङो, कालीबंगा, चन्हूदङो, बनवाली, लोथल।
धोलावीरा की विशेषताएँ

यह स्थल अपनी अद्भुत् नगर योजना, दुर्भेद्य प्राचीर तथा अतिविशिष्ट जलप्रबंधन व्यवस्था के कारण सिन्धु सभ्यता का एक अनूठा नगर था।
धोलावीरा सिंधु सभ्यता का सबसे सुन्दर नगर है। जल संग्रहण के प्राचीनतम साक्ष्य मिले हैं, तथा अच्छी जल प्रबंधन की प्रणाली भी यहीं से मिली है।
धोलावीरा नगर तीन मुख्य भागों में विभाजित था –
यहां से तीन टीले मिले हैं – जिनमें दुर्गभाग,मध्यम नगर तथा नीचला भाग थे।मध्यम नगर केवल धोलावीरा में ही पाया गया है।(एकमात्र स्थल)
धोलावीरा नगर के दुर्ग भाग एवं माध्यम भाग के मध्य अवस्थित 283×47 मीटर की एक भव्य इमारत के अवशेष मिले हैं। इसे स्टेडियम बताया गया है। इसके चारों ओर दर्शकों के बैठने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई थीं। पूर्वी टीला से बांध या तालाब के साक्ष्य प्राप्त हुये हैं। 20 तालाब प्राप्त हुये हैं। इनके साथ-साथ धोलावीरा से दो नहरों के साक्ष्य भी मिले हैं।
धोलावीरा नगर के दुर्ग भाग एवं माध्यम भाग के मध्य अवस्थित 283×47 मीटर की एक भव्य इमारत के अवशेष मिले हैं। इसे स्टेडियम बताया गया है। इसके चारों ओर दर्शकों के बैठने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई थीं।पूर्वी टीला से बांध या तालाब के साक्ष्य प्राप्त हुये हैं। 20 तालाब प्राप्त हुये हैं। इनके साथ-साथ धोलावीरा से दो नहरों के साक्ष्य भी मिले हैं।
यहाँ से पाषाण स्थापत्य के उत्कृष्ट नमूने मिले हैं। पत्थर के भव्य द्वार, वृत्ताकार स्तम्भ आदि से यहाँ की पाषाण कला में निपुणता का पता चलता है। पौलिशयुक्त पाषाण खंड भी बड़ी संख्या में मिले हैं,जिनसे विदित होता है कि पत्थर पर चमक लाने की कला से धोलावीरा के कारीगर सुविज्ञ थे।
धोलावीरा से सिन्धु लिपि के सफ़ेद खड़िया मिट्टी के बने दस बड़े अक्षरों में लिखे एक बड़े अभिलेख पट्ट की छाप मिली है। यह संभवतः विश्व के प्रथम सूचना पट्ट का प्रमाण है।
धौलावीरा से मिले साक्ष्य
- अनेक जलाशय के प्रमाण
- निर्माण में पत्थर के साक्ष्य
- पत्थर पर चमकीला पौलिश
- त्रिस्तरीय नगर-योजना
- क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से भारत सैन्धव स्थलों में सबसे बड़ा नगर।
- घोड़े की कलाकृतियाँ के अवशेष भी मिलते हैं
- श्वेत पौलिशदार पाषाण खंड मिलते हैं जिससे पता चलता है कि सैन्धव लोग पत्थरों पर पौलिश करने की कला से परिचित थे।
- सैन्धव लिपि के दस ऐसे अक्षर प्रकाश में आये हैं जो काफी बड़े हैं और विश्व की प्राचीन अक्षरमाला में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
Reference :
Wikipedia : धोलावीरा
