प्राचीन इतिहास तथा संस्कृति के प्रमुख स्थल एलोरा
महाराष्ट्र प्राप्त के औरंगाबाद जिले में स्थित एलोरा नाक स्थान अपने गुहा- मन्दिरों(Care- Temples) के लिये प्रसिद्ध है। यहाँ पहाड़ियों को काटकर अनेक गुफायें बनाई गयी है जो बौद्ध, हिन्दू तथा जैन सम्प्रदायों से सम्बन्ध है।
यहाँ पर बोद्ध गुफाएँ 12 है, जिनमें ‘विश्वकर्मा की गुहा मन्दिर’(संख्या 10) सबसे से सुन्दर है यह विशाल चैत्य के प्रकार का है जिसमें उच्चे स्तम्भ बने हैं। स्तम्भों में अनेक बौनों की प्रतिमाएँ बनी हैं।

एलोरा से 17 गुहा – मन्दिर प्राप्त होते है जिसमें से अधिकतर राष्ट्रकूट शासकों के समय (7वी. – 8वी. शता.) में बने थे। इनमें ‘कैलाश- मन्दिर’ सर्वप्रसिद्ध है। यह प्राचीन वास्तु एवं तक्षण कला का एक अत्युत्कृष्ट नमूना है। विशाल पहाड़ियों को तराश कर मनुष्यों, पशुओं, देवी-देवताओं आदि की सुन्दर एवं बारीक मूर्तियों बनाई गई हैं। हाथियों की जो मूर्तियों है इनके आँख की पलकें भी पत्थर को तराश कर अत्यत सूक्ष्मता एवं कुशलता से बनायी गयी हैं। मन्दिर का विशाल प्रांगण 276 फीट लम्बा तथा 154 फीट चौड़ा है। इसके ऊपर 95 फीट ऊँचाई का विशाल शिखर है। इसका निर्माण कृष्ण प्रथम (756-793ई.) ने अत्यधिक धन व्यय करके बनवाया था। यहाँ के अन्य मन्दिरों में रावण की खाब, देववाड़ा, दशावतार, लम्बेश्वर, रामेश्वर, नीलखण्ड आदि उल्लेखनीय है।
दशावतार मन्दिर का निर्माण 8वी. शती में दन्तिदुर्ग ने करवाया था। इसमें विष्णु के दश अवतारों की कथा मूर्तियों में अंकित की गई है। स्थापत्य एवं तक्षण की दृष्टि से यह मन्दिर भी उत्कृष्ट है।
एलोरा से पाँच जैन मन्दिर भी मिलते है जिनका निर्माण 5वी. शता. में हुआ था। इसमें ‘इन्द्र सभा’ प्रमुख है जिनमें जैन तीर्थकरों कई मूर्तियाँ है। 23वें तीर्थकर पार्श्वनाथ की समाधिस्थ प्रतिमा मिलती है। मन्दिर के स्तम्भों एवं छतों पर अद्भूत चित्रकारियाँ हैं। समग्र रूप से एलौरा के मन्दिर वास्तु एवं तक्षण दोनों ही दृष्टियों से प्राचीन भारतीय कला के अत्यत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करते है।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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