हर्ष के समय धर्म तथा धार्मिक जीवन
हर्ष के व्यक्तिगत धर्म तथा उसके समय की धार्मक अवस्था के विषय में हम हर्षचरित तथा हुएनसांग के भ्रमण-वृतांत से जानकारी प्राप्त करते हैं। हर्ष के पूर्वज भगवान शिव और सूर्य के अनन्य उपासक थे। अतः प्रारंभ में हर्ष भी अपने कुल देवता शिव का परम भक्त था। हर्षचरित से पता चलता है, कि शशांक पर आक्रमण करने से पहले उसने शिव की पूजा की थी। लगता है, कि बचपनसे ही उसकी प्रवृत्ति बौद्ध धर्म की ओर हो गयी थी। उसने विन्ध्यवन में दिवाकरमित्र नामक बौद्ध भिक्षु से साक्षात्कार किया था, जिसका प्रभाव हर्ष पर बहुत अधिक पङा। चीनी यात्री हुएनसांग से मिलने के बाद तो उसने बौद्ध धर्म की महायान शाखा को राज्याश्रय प्रदान किया था तथा वह पूर्ण बौद्ध बन गया। अन्य धर्मों में महायान की उत्कृष्टता सिद्ध करने के लिये हर्ष ने कन्नौज में विभिन्न धर्मों एवं संप्रदायों के आचार्यों की एक विशाल सभा बुलवायी।

विदेशी वृतांत में हेनसांग द्वारा दी गई जानकारी।
चीनी साक्ष्यों से पता चलता है, कि इस सभा में बीस देशों के राजा अपने देशों के प्रसिद्ध ब्राह्मणों, श्रमणों, सैनिकों, राजपुरुषों आदि के साथ उपस्थित हुए थे। यह समारोह बीस दिनों तक चला तथा इक्कीसवें दिन बुद्ध की तीन फिट ऊँची स्वर्ण मूर्ति को सुसज्जित हाथी पर रख कर एक भव्य जुलूस निकाला गया। हर्ष ने इस अवसर पर मोतियों तथा बहुमूल्य वस्तुओं का खूब वितरण किया। इस सभा की अध्यक्षता हुएनसांग ने की थी। इसके परिणामस्वरूप महायान बौद्धधर्म के सिद्धांतों का अधिकाधिक प्रचार-प्रसार हुआ।
उसने बौद्ध विहार एवं स्तूप भी निर्मित करवाये थे। हर्ष बौद्ध भिक्षुओं एवं श्रमणों का सम्मान करता तथा समय-2 पर उन्हें पुरस्कृत भी करता था।
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धर्म-सहिष्णु सम्राट
हर्ष ने अपने उत्तरकालीन जीवन में बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया था, लेकिन वह एक धर्म – सहिष्णु सम्राट भी था, जो विभिन्न धर्मों एवं संप्रदायों का सम्मान करता था। हर्षचरित में कई स्थानों पर ब्राह्मणों के प्रति उसकी उदारता का उल्लेख हुआ है। हर्ष के समय में प्रयाग के संगमक्षेत्र में प्रति पाँचवें वर्ष एक समारोह आयोजित किया जाता था, जिसे महामोक्षपरिषद् कहा गया है। हुएनसांग स्वयं 6वें समारोह में शामिल हुआ था। वह लिखता है, कि इसमें 18 अधीन देशों के राजा उपस्थित हुए थे। इसमें बलभी तथा कामरूप के शासक भी थे। इसके अतिरिक्त ब्राह्मणों, साधुओं, अनाथों एवं बौद्ध भिक्षुओं की संख्या भी बहुत बङी थी। यह समारोह लगभग 75 दिनों तक चला। हर्ष ने बारी-2 से बुद्ध, सूर्य तथा शिव की प्रतिमाओं की पूजा की थी। प्रयाग के इस धार्मिक समारोह में हर्ष दीन- दुखियों एवं अनाथों में प्रभूत दान वितरित किया करता था। यहाँ तक कि वह अपने बहुमूल्य वस्रो तथा व्यक्तिगत आभूषणों तक को लूटा दिया करता था।
कामरूप का देश तथा हर्ष के संबंध कैसे थे ?
हर्षवर्धन के समय तक धर्मों तथा संप्रदायों की संख्या बहुत बढ चुकी थी। हिन्दू धर्म के अंतर्गत शैव संप्रदाय सर्वाधिक लोकप्रिय था। हर्षचरित के अनुसार थानेश्वर के प्रत्येक घर में भगवान शिव की पूजा होती थी। शिव की उपासना के लिये मूर्तियाँ तथा लिंग स्थापित किये जाते थे। मालवा तथा वाराणसी में शिव के विशाल मंदिर बने थे, जहाँ उनके सहस्रों भक्त निवास करते थे। शिव के अलावा विष्णु तथा सूर्य की भी उपासना होती थी। दिवाकर मित्र के आश्रम में पांचरात्र तथा भागवत संप्रदायों के अनुयायी भी निवास करते थे, जिनकी पूजा पद्धति भिन्न प्रकार की थी।
हुएनसांग मूलस्थानपुर में सूर्य के मंदिर का उल्लेख करता है। यहाँ सूर्य की स्वर्ण निर्मित मूर्ति विभिन्न पदार्थों से अलंकृत थी। यह अपनी अलौकिक शक्ति के लिये दूर-2 तक विख्यात थी। बाण उज्जैनीवासियों को सूर्य का उपासक बताते हैं। हर्षचरित में कई स्थानों पर दुर्गा देवी की पूजा का उल्लेख हुआ है। कुछ लोग प्राचीन वैदिक यज्ञों का भी अनुष्ठान करते थे। प्रयाग के संगम तीर्थ का बङा महत्त्व था।
ब्राह्मण धर्म के साथ बौद्ध और जैन धर्मों का भी कुछ प्रदेशों में प्रचलन था। परंतु इन धर्मों की अवनति प्रारंभ हो चुकी थी।
बौद्ध धर्म की महायान शाखा उन्नति पर थी। हर्ष ने इसी शाखा को संरक्षण प्रदान किया था। हुएनसांग मगध के महायान संप्रदाय के 10 हजार भिक्षुओं का उल्लेख करता है। देश में अनेक स्तूप, मठ तथा विहार थे। नालंदा महाविहार में महायान बौद्ध धर्म की ही शिक्षा दी जाती थी। जैन धर्म, बौद्ध धर्म के समान लोकप्रिय नहीं था पंजाब, बंगाल तथा दक्षिणी भारत के कुछ भागों में जैन-मतानुयायी निवास करते थे।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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