हर्षवर्धन तथा बलभी का युद्ध
बलभी राज्य आधुनिक गुजरात में स्थित था। वहाँ का शासक ध्रुवसेन द्वितीय था। हर्ष ने उस पर आक्रमण किया। ध्रुवसेन पराजित हुआ तथा उसने भागकर भङौंच के गुर्जर शासक दद्द द्वितीय के दरबार में शरण ली। गुर्जर नरेश ने हर्ष से उसका राज्य वापस दिला दिया।
दद्द की प्रथम ज्ञात तिथि 627 ईस्वी है, जिससे यह अनुमान किया जा सकता है, कि यह युद्ध 629-30 ईस्वी में हुआ होगा। दद्द ने 640 ईस्वी तक राज्य किया था, जिसके आधार पर हम अनुमान लगा सकते हैं, कि यह युद्ध 630 से 640 ईस्वी के बीच में हुआ होगा।
वर्धन वंश के इतिहास को जानने के लिये स्रोत।
दद्द एक साधारण सा शासक था, जो अकेला हर्ष जैसे शक्तिशाली शासक से नहीं लङ सकता था, अतः उसने चालुक्य नरेश पुलकेशिन द्वितीय की सहायता से यह युद्ध किया होगा। पुलकेशिन के एहोल अभिलेख से पता चलता है, कि दद्द उसका सामंत था।
हर्ष का दद्द से युद्ध करने तथा पुलकेशन द्वितीय का इस युद्ध में दद्द की सहायता करने में योगदान देने वाली घटना ही हर्ष तथा पुलकेशिन द्वितीय के बीच संघर्ष का कारण बनी।
हर्ष ने बलभी नरेश को अपनी ओर मिलाने के लिये अपनी पुत्री का विवाह उससे कर दिया। अब बलभी का राजा हर्ष का संबंधी बन गया ।
नर्मदा घाटी की समस्या
हर्ष के सामने नर्मदा नदी घाटी को सुरक्षित करने की समस्या थी। नर्मदा के दक्षिण में चालुक्यों का शक्तिशाली राज्य था, जो अवसर पाकर उत्तर भारत पर आक्रमण कर सकते थे। हर्ष इस संकट से वाकिफ था। अतः उसने बलभी नरेश को जीत लेने के बाद बलभी का राज्य उसको वापस दे दिया तथा साथ ही साथ बलभी नरेश को हर्ष ने मालवा तथा उसके अधीनस्थ राज्य भी दे दिये थे।
बलभी से संबंध और गहरे बनाने के लिये हर्ष ने अपनी पुत्री का विवाह भी बलभी के नरेश से कर दिया। इस सूझबूझ से हर्ष ने अपने साम्राज्य की पश्चिमी सीमा को शत्रुओं से सुरक्षित कर लिया था।
बलभी नरेश चालुक्यों के विस्तार के मार्ग में बहुत बङी बाधा हो गया था। यह हर्ष की कूटनीतिक उपलब्धि थी, जिसकी तुलना चंद्रगुप्त द्वितीय की वाकाटक नीति से कर सकते हैं।
चंद्रगुप्त द्वितीय तथा वाकाटक संबंध।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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