हैदरअली(hyder ali) कहाँ का शासक था

हैदरअली का जन्म 1722 ई. में मैसूर राज्य में बुदिकोट नामक स्थान पर हुआ।उसका पिता फतहमुहम्मद मैसूर राज्य की सेना में एक सैनिक अधिकारी था। जिस समय हैदरअली 6वर्ष का था, उसका पिता एक लङाई में मारा गया। बङा होने पर हैदरअली को भी मैसूर की सेना में नौकरी मिल गई। हैदरअली बिल्कुल निरक्षर था, किन्तु असाधारण प्रतिभा का व्यक्ति था । उसकी युद्ध-शैली एवं कुशलता से प्रभावित होकर नंदराज को पराजित कर सत्ता अपने हाथ में ले ली।
राजमाता ने इस सलाह को स्वीकार कर लिया।हैदरअली ने नंदराज को परास्त कर दिया और सत्ता राजमाता को सौंपने के बजाय अपने हाथ में ले ली। जब खांडेराव ने इसका विरोध किया तो हैदरअली ने उसे भी कैद कर लिया।
डिंडुगल का फौजदार बनने के बाद हैदरअली ने अपनी शक्ति बढाना आरंभ कर दिया था। हैदराबाद के निजाम आसफखाँ की मृत्यु के बाद नासिरजंग हैदराबाद का निजाम बना था। 1750 में नासिरजंग की हत्या कर दी गई। उस समय हैदरअली अपने सैनिकों सहित हैदराबाद में था।नासिरजंग की हत्या से राज्य में अव्यवस्था फैल गयी। नासिरजंग के विरोधी उसका लगभग 3/4 कोष लेकर भागने लगे।
हैदरअली ने नासिरजंग के इन विरोधियों को परास्त कर सारा कोष उनसे छीन लिया।इस प्रकार शीघ्र ही उसके पास करोङों रुपये की धनराशि हो गयी। 1776 में जब मैसूर के राजा की मृत्यु हो गयी, तब हैदरअली ने स्वयं को मैसूर का सुल्तान घोषित कर दिया।इससे पहले हैदरअली ने शासन के समस्त कार्य एवं विजय मैसूर के राजा के नाम पर की थी और उनसे कभी भी अपने आपको राजा नहीं कहा, यद्यपि व्यावहारिक दृष्टि से वही शासक था।
हैदरअली के इस उत्कर्ष में उस समय की परिस्थितियों ने उसे भारी सहायता पहुँचाई थी। आंग्ल-फ्रांसीसी संघर्ष से कर्नाटक की समृद्धि का नाश हो चुका था। पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठों की कमर टूट चुकी थी। और हैदराबाद का निजाम निर्बल और लाचार था । अतः हैदरअली की बढती हुई शक्ति को रोकने वाला कोई नहीं था।उसका उत्कर्ष केवल उसकी सैनिक और राजनीतिक योग्यता तथा व्यक्तिगत परिश्रम पर आधारित था। दक्षिण में फैली अव्यवस्था का लाभ उठाकर हैदरअली ने राज्य की सीमाओं का भी विस्तार कर लिया था।
हैदरअली और मराठे
1762 से 1778 तक हैदरअली इस बात के लिए असफल प्रयत्न करता रहा कि मराठों के विरुद्ध अपनी स्थिति दृढ करने में अंग्रेजों की सहायता प्राप्त करे। किन्तु हैदर की बढती हुई शक्ति से न केवल अंग्रेज बल्कि निजाम और मराठे भी चौकन्ने हो उठे थे। 1764 में मराठों ने मैसूर पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में हैदर पराजित हुआ और मार्च, 1765 में उसे मराठों से संधि करनी पङी। तदनुसार गुण्टी व सावनूर के जिले व 32 लाख रुपये मराठों को देने पङे इसके एक वर्ष बाद 1765 में अंग्रेज,मराठा व निजाम ने हैदर के विरुद्ध एक शक्तिशाली संघ बना लिया। किन्तु इस त्रिगुट में पारस्परिक विश्वास नहीं था। मराठों को अंग्रेजों की बढती हुई शक्ति से भय था।
निजाम भी अंग्रेजों से उत्तरी सरकार के प्रदेश वापिस लेना चाहता था।हैदर ने अपनी विलक्षण बुद्धि से इस त्रिगुट को भंग कर दिया।उसने मराठों को 35 लाख रुपये देकर वापस लौटा दिया।
इसमें से 18 लाख रुपये नकद दिये गये और शेष 17 लाख रुपयों के बदले कोलार का जिला दिया गया।हैदर ने निजाम के पास संदेश भेजा कि वह उसे उत्तरी सरकार के प्रदेश दिलवाने में सहायता देने को तैयार है। जब निजाम ने देखा कि मराठा सेना लौट रही है, तब उत्तरी सरकार प्राप्त करने की आशा में अंग्रेजों के विरुद्ध उसने 1767 में हैदर से संधि कर ली।इस प्रकार हैदर ने अपनी कूटनीति द्वारा त्रिगुट को भंग कर दिया।तत्पश्चात् हैदर ने अंग्रेजों पर आक्रमण कर उन्हें पराजित कर दिया।
मार्च 1769 में अंग्रेजों को हैदर से संधि करनी पङी, जिसमें उन्होंने हैदर को वचन दिया कि यदि कोई शक्ति हैदर पर आक्रमण करेगी तो वे उसे सहायता देंगे। अंग्रेजों से सहायता का आश्वासन प्राप्त कर हैदर ने मराठों को खिराज देना बंद कर दिया तथा मराठों को दिये गयेअपने प्रदेशों पर आक्रमण कर दिया। इस पर मराठों ने 1770-72 में मैसूर पर आक्रमण कर दिया। हैदर ने अंग्रेजों से सहायता माँगी, किन्तु अंग्रेजों ने उसकी कोई सहायता नहीं की। फलस्वरूप हैदर को पराजित होकर मराठों से अपमानजनक संधि करनी पङी।।
अगस्त 1773 में पेशवा नारायणराव की मृत्यु के बाद मराठा संघ में गृहकलह उत्पन्न हो गया। इस अव्यवस्था का लाभ उठाकर हैदर ने उन सभी प्रदेशों पर अधिकार कर लिया, जो उसे मराठों को देने पङे थे।इसी समय अंग्रेजों और मराठों के बीच युद्ध आरंभ हो गये।मराठे,अंग्रेजों के विरुद्ध हैदर की सहायता चाहते थे।अतः पेशवा के मंत्री नामा फङनवीस ने 1780 में हैदर से समझौता किया, जिसमें हैदर ने वचन दिया कि अंग्रेजों को भारत से निकालने में वह मराठों की सहायता करेगा। इसके बदले में नाना फङनवीस ने हैदर से वसूल की जाने वाली वार्षिक खिराज की राशि में भारी कमी कर दी। तत्पश्चात् हैदर ने अंग्रेजों के विरुद्ध मराठों को सहायता दी थी, किन्तु युद्ध के दौरान ही हैदर की मृत्यु हो गई थी।
हैदरअली व अंग्रेज
अंग्रेज इस बात को अच्छी तरह से जानते थे कि दक्षिण भारत की यदि तीनों शक्तियाँ एक हो जाती हैं तो दक्षिण में अंग्रेजों के अस्तित्व को खतरा उत्पन्न हो जायेगा।इसलिए वे इन तीनों शक्तियों को अलग-2 रखना चाहते थे। निजाम,मैसूर व मराठे अपने स्वार्थों की पूर्ति हेतु परस्पर संघर्ष में लीन रहते थे।अतः दक्षिण में अंग्रेजों की कूटनीति अधिक प्रभावशाली सिद्ध हुई।
किन्तु मैसूर की स्थिति ऐसी थी कि दक्षिण की अन्य शक्तियाँ उसके अस्तित्व को बनाये रखना चाहती थी।मराठों को खिराज,निजाम को मराठों के आक्रमण के विरुद्ध एक मित्र तथा अंग्रेजों को दक्षिण में शक्ति-संतुलन बनाये रखने के लिए मैसूर की आवश्यकता थी। साथ ही ये शक्तियाँ मैसूर को इतना शक्तिशाली भी देखना नहीं चाहती थी कि वह उनके लिए खतरा बन जाय।
हैदरअली का मूल्यांकन
आधुनिक भारत के इतिहास में हैदरअली का स्थान भारत के प्रमुख शासकों में है। वह एक साधारण सैनिक की स्थिति से उठकर मैसूर का सेनापति और अंत में वहाँ का शासक बन गया। वह अशिक्षित होते हुए भी उच्च कोटि का कूटनीतिज्ञ था। वह ऐसी किसी भी शक्ति से मैत्री करने को तैयार था, जो उसे सैनिक सामग्री उपलब्ध करवाये।
अतः 1778 तक वह इस बात के लिए प्रयत्नशील रहा कि उसे अंग्रेजों की सहायता उपलब्ध हो सके। जब अंग्रेजों ने उसे वह सुविधा प्रदान नहीं की तो उसने फ्रांसीसियों की सहायता प्राप्त करने का प्रयत्न किया। वह एक ऐसी सेना के गठन में सफल हुआ जो अंग्रेजों की सेना से समानता के स्तर पर टक्कर ले सकी।
अंग्रेज इतिहासकारों ने उसे लुटेरा तथा दूसरों के राज्य का अपहरणकर्ता कहा है । किन्तु हैदर के बारे में यह कहना उचित नहीं है, क्योंकि वह जमाना ही ऐसा था, जब राज्य और शक्ति इसी तरीके से प्राप्त किये जाते थे। जिन परिस्थितियों में उसने मैसूर राज्य का निर्माण किया, वह उसकी योग्यता का प्रमाण था। सैनिक दृष्टि से हैदर अंग्रेज सेनानायकों से अधिक योग्य था।
Reference : https://www.indiaolddays.com/