मैसूर के साम्राज्य का इतिहास
अन्य संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य-
तालीकोटा का निर्णायक युद्ध जिसने विजयनगर साम्राज्य का अंत कर दिया के, अवशेषों पर जिन स्वतंत्र राज्यों का जन्म हुआ, उनमें मैसूर एक प्रमुख राज्य था।मैसूर पर वाड्यार वंश का शासन था,इस वंश के अंतिम शासक चिक्का कृष्णराज द्वितीय के शासन काल में राज्य की वास्तविक सत्ता देवराज और नंजराज के हाथों में थी।
चिक्का कृष्णराज के समय में दक्कन में मराठों,निजामों,अंग्रेजों और फ्रांसीसियों में अपने-2 प्रभुत्व को लेकर संघर्ष चल रहा था।
मैसूर इस समय मराठों और निजाम के बीच संघर्ष का मुद्दा बना था क्योंकि मराठे लगातार मैसूर पर आक्रमण कर उसे वित्तीय और राजनीतिक दृष्टि से कमजोर कर दिया था,दूसरी ओर निजाम मैसूर को मुगल प्रदेश मानकर इस पर अपना अधिकार समझते थे।
1749 ई. में नंजराज जो मैसूर राज्य में राजस्व और वित्त नियंत्रक था,ने हैदरअली को उसके अधिकारी सैनिक जीवन को शुरू करने का अवसर दिया।
1755 में हैदरअली डिंडीगुल का फौजदार बना।इसी समय मैसूर की राजधानी श्रीरंगपट्टनम् पर मराठों के आक्रमण का भय व्याप्त हो गया परिणाम स्वरूप हैदरअली को राजधानी की राजनीति में हस्तक्षेप कर नंदराज और देवराज को राजनीति से संन्यास लेने के लिए विवश किया।
मैसूर राज्य के हैदर विरोधी गुट ने मराठों को मैसूर पर आक्रमण के लिए आमंत्रित किया, 1760 में हैदर मराठों द्वारा पराजित हुआ, लेकिन शीघ्र ही पानीपत की तीसरी लङाई में हुई मराठों की पराजय ने हैदर को अपनी स्थिति मजबूत बनाने का अवसर दिया।
1761 ई. तक हैदरअली के पास मैसूर की समस्त शक्ति केन्द्रित हो गई।डिंडीगुल में हैदरअली ने फ्रांसीसियों के सहयोग से 1735 ई. में एक शस्रागार की स्थापना की।
Reference : https://www.indiaolddays.com/