इटली का एकीकरणइतिहासविश्व का इतिहास

इटली का एकीकरण

इटली का एकीकरण

इटली का एकीकरण (Unification of Italy)-

नेपोलियन के आक्रमणों से इटली में एक नवीन युग का सूत्रपात हुआ था। वहाँ संगठित एवं एकरूप शासन स्थापित होने के फलस्वरूप इटली के लोगों में राष्ट्रीय एकता एवं स्वतंत्रता की भावना जागृत हो उठी थी, किन्तु 1815 ई. की वियना व्यवस्था से इटली पुनः छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित हो गया।

इटली का एकीकरण की आवश्यकता

इटली का एकीकरण

इटली के उत्तर-पश्चिम में सार्डीनिया-पीटमाण्ट का राज्य था, जहां सेवाय वंश का शासन था। उसके उत्तर-पूर्व में लोम्बार्डी और वेनेशिया के प्रदेश थे, जिन पर आस्ट्रिया का आधिपत्य था। परमा, मोडेना और टस्कनी के यद्यपि स्वतंत्र राज्य थे, किन्तु उन पर भी आस्ट्रिया का प्रभाव था। मध्य में पोप का अपना स्वतंत्र राज्य था।

दक्षिण में नेपिल्स और सिसली थे, जहाँ बुर्बो वंश के फर्डीनेण्ड प्रथम का शासन था। यह नई व्यवस्था पूर्णतः निरंकुश, प्रतिक्रियावादी एवं भ्रष्ट थी। इटली की इस दयनीय स्थिति का चित्रण करते हुये मेजिनी ने कहा था, कि हमारा कोई एक स्थान है।

मेजिनी ने यह भी कहा कि हम आठ राज्यों में विभाजित हैं, जो सभी एक-दूसरे से स्वतंत्र हैं। इन आठ राज्यों की भिन्न-भिन्न मुद्राएँ हमको एक-दूसरे से अलग करके हमें अजनबी बना देती हैं।

मेटरनिख ने भी कहा था, कि यहां का एक प्रांत दूसरे प्रांत के विरुद्ध है, एक नगर दूसरे नगर के विरुद्ध है, एक वंश दूसरे वंश के विरुद्ध है तथा एक मनुष्य दूसरे मनुष्य के विरुद्ध है।

इटली के लोग बी क्रांतिजनित विचारधारा से प्रभावित थे। नेपोलियन महान के समय से उनमें राष्ट्रीय एकता की भावना जागृत हो चुकी थी। अतः वे निरंकुश, स्वेच्छाचारी, प्रतिक्रियावादी और अत्याचारपूर्ण शासन को सहन करने को तैयार नहीं थे। अतः इटली के देशभक्त अपने देश को स्वतंत्र एवं संगठित करने के प्रयत्न करने लगे। इटली के लेखकों एवं साहित्यकारों ने भी राष्ट्रीयता की भावनाओं को उत्तेजित करने में योगदान दिया।

इटली का एकीकरण के मार्ग में बाधाएँ

  • इटली का एकीकरण के प्रयास

इन सभी बाधाओं के बावजूद इटली के कुछ देशभक्तों ने मिलकर स्वतंत्रता प्राप्ति के लिये संघर्ष आरंभ कर दिया। इसके लिये इटली में अनेक गुप्त संस्थाओं की स्थापना हुई, जिनमें कार्बोनरी संस्था प्रमुख थी। कार्बोनरी संस्था का प्रमुख केन्द्र नेपिल्स में था तथा इसकी शाखाएँ समस्त इटली में फैली हुई थी।

इस संस्था के दो प्रमुख राजनैतिक उद्देश्य थे – विदेशियों को इटली से बाहर निकालना तथा वैधानिक स्वतंत्रता की स्थापना करना। कार्बोनरी संस्था में सभी वर्ग के लोग थे तथा इसी के नेतृत्व में 1831 तक इटली का स्वाधीनता संग्राम चलता रहा।

  • सन् 1820-21 का विद्रोह

स्पेन की क्रांति से प्रेरित होकर 1820 में कार्बोनरी संस्था के नेताओं ने नेपिल्स में विद्रोह कर दिया और इस प्रकार इटली में गुप्त संस्थाओं द्वारा आयोजित क्रांतिकारी आंदोलनों का सूत्रपात हुआ। 1821 में पीडमाण्ट के देशभक्तों ने विद्रोह कर दिया। नेपिल्स और पीडमाण्ट के विद्रोहियों ने अपने शासकों को खदेङ दिया, किन्तु आस्ट्रिया का चान्सलर मेटरनिख इस उदारवाद की लहर को कब सहन करने वाला था ?

उसने तुरंत हस्तक्षेप कर विद्रोह का दमन कर दिया तथा दोनों राज्यों के राजसिंहासनों पर पुनः निरंकुश शासकों को बैठा दिया। यद्यपि विद्रोह को कुचल दिया गया, किन्तु जन असंतोष कम नहीं हुआ तथा विद्रोहाग्नि पूरी तरह से बुझी नहीं ।

  • सन् 1830 का विद्रोह

यद्यपि नेपिल्स एवं पीडमाण्ट में पुनः निरंकुश एवं प्रतिक्रियावादी शासन आरंभ हो गया, किन्तु क्रांतिकारी गुप्त रूप से अपनी तैयारियाँ कर रहे थे। 1830 में फ्रांस में क्रांति हो गयी तथा इस क्रांति की अग्नि तीव्र गति से यूरोप में फैल गई। इस क्रांति के प्रभाव से पोप के राज्य, परमा और मोडेना में विद्रोह हो गया।

इटली के क्रांतिकारियों को फ्रांस से सहायता मिलने की आशा थी, किन्तु फ्रांस की ओर से उन्हें कोई सहायता प्राप्त नहीं हुई। इस बार फिर आस्ट्रिया की फौजों ने हस्तक्षेप करके विद्रोहियों को कुचल दिया तथा सभी राज्यों में पुराने शासक फिर से सिंहासनारूढ कर दिये गये।

क्रांति की लहर एक बार फिर रोक दी गयी। राष्ट्रीयता एवं उदारवाद की पुनः पराजय हुई, क्योंकि आस्ट्रिया की संगठित शक्ति के समक्ष विद्रोहियों की असंगठित शक्ति नहीं टिक सकी।

यद्यपि 1820 और 1830 में इटली की एकता स्थापित करने के सभी प्रयत्न असफल सिद्ध हो चुके थे तथापि इटली के देशभक्त नेताओं को यह ज्ञात हो गया कि जब तक आस्ट्रिया के आधिपत्य का अंत नहीं हो जाता तब तक इटली अपनी स्वतंत्रता और एकता स्थापित नहीं कर सकता, अतः अपने उद्देश्यों में सफलता प्राप्त करने के लिये उन्होंने यह आवश्यक समझा कि विदेशी सत्ता का शीघ्रताशीघ्र अंत किया जाय। उन्होंने यह भी अनुभव किया कि स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिये केवल कार्बोनरी संस्था ही पर्याप्त नहीं है।

मेजिनी का उदय (1820-72) – इटली का एकीकरण के पूर्व इटली एक “भौगोलिक अभिव्यक्ति” मात्र था। वह अनेक छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित था। राज्यों में मतभेद था और सभी अपने स्वार्थ में लिप्त थे। एकीकरण के मार्ग में अनेक बाधाएँ थीं।लेकिन इटली के कुछ प्रगतिवादी लोगों ने एकता की दिशा में कदम उठाया। इटली के एकीकरण में आर्थिक तत्त्वों की भूमिका महत्त्वपूर्ण थी। इटली के एकीकरण में सबसे अधिक योगदान रेलवे के विकास था।

इटली में राष्ट्रीय आन्दोलन चलाने के लिए अनेक गुप्त समितियों का संगठन किया गया। इन गुप्त समितियों में कार्बोनरी प्रमुख था। इसके नेतृत्व में 1831 ई. तक इटली का एकता-आन्दोलन चलता रहा…अधिक जानकारी

  • उदार राजतंत्रवादी और संघवादी

युवा इटली के अलावा कुछ अन्य देशभक्त भी इटली की स्वतंत्रता के लिये कार्य कर रहे थे। कुछ देशभक्त उदारवादी राजतंत्र के माध्यम से इटली को स्वतंत्र करना चाहते थे। वे पीडमाण्ट-सार्डीनिया के शासक चार्ल्स एल्बर्ट के नेतृत्व में इटली को विदेशी सत्ता से मुक्त करना चाहते थे।

यद्यपि पहले पीडमाण्ट – सार्डीनिया का राज्य भी प्रतिक्रियावादी था, किन्तु शनैः शनैः चार्ल्स एल्बर्ट के समय नीति में परिवर्तन आ गया तथा उसने अपने राज्य में अनेक सुधार किये। इटली के राष्ट्रवादियों का यह विश्वास था, कि इटली के स्वाधीनता संघर्ष का नेतृत्व पीडीमाण्ट का शासक ही करेगा। वे आर्थिक कार्यक्रम और सार्वजनिक शिक्षा में सुधार लाकर इटली के एकीकरण को प्राप्त करना चाहते थे।

कुछ देशभक्त पोप की सत्ता में विश्वास करते थे, क्योंकि जब 1846 में पायस नवम् पोप बना तो उसने अपनी उदार और दयालु प्रवृत्ति को प्रदर्शित किया तथा उसने अनेक प्रशासनिक सुधार भी किये, जिससे उसकी लोकप्रियता बढ गयी। जो लोग पोप के नेतृत्व में विश्वास रखते थे, वे पोप की अध्यक्षता में इटली के विभिन्न राज्यों का एक संघ बनाना चाहते थे। इस प्रकार मध्यममार्गी विचारधारा पर आधारित इटली के एकीकरण की एक नई योजना भी जनता के समक्ष प्रस्तुत की गयी।

  • सन् 1848 का विद्रोह और युद्ध

1848 में फ्रांस में पुनः क्रांति हो गयी, जिससे प्रेरित होकर यूरोप के विभिन्न राज्यों में क्रांति का शंखनाद गूँज उठा। जनवरी, 1848 में नेपिल्स और सिसली में सुधारवादियों ने विद्रोह कर दिाय तथा संविधान की माँग की गयी। इस क्रांति से विवश होकर नेपिल्स के राजा फर्डीनेण्ट द्वितीय को उदारवादी संविधान स्वीकार करना पङा।

उसके बाद पीडमाण्ट, टस्कनी और पोप के राज्यों में भी संवैधानिक शासन की माँग ने जोर पकङ लिया तथा मार्च, 1848 में तीनों राज्यों को भी संविधान प्रदान करना पङा। अब आस्ट्रिया के अधीन लोम्बार्डी और वेनेशिया को छोङकर लगभग सारे इटली में संवैधानिक राजतंत्र स्थापित हो गये।

मार्च, 1848 में वियना में क्रांति हो गयी, जिसके फलस्वरूप मेटरनिख को वियना छोङकर इंग्लैण्ड भाग जाना पङा। मेटरनिख के पलायन की सूचना मिलते ही एक-एक करके इटली के सारे राज्यों में आस्ट्रिया विरोधी आंदोलन उठ खङे हुये। मिलान में विद्रोह के फलस्वरूप वहाँ के वायसराय को भागना पङा।

वेनिस में भी आस्ट्रिया के शासन का अंत होकर गणतंत्र की स्थापना हुई। उसी समय इटली की समस्त जनता एक स्वर में, पीडमाण्ट-सार्डीनिया के शासन के नेतृत्व में आस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध की माँग करने लगी। 23 मार्च, को सार्डीनिया के शासक चार्ल्स एल्बर्ट ने इटलीवासियों की ओर से आस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी।

परमा, मोडेना, टस्कनी, नेपिल्स और पोप के राज्यों के शासकों ने भी सार्डीनिया की ओर से युद्ध में भाग लिया। आस्ट्रिया की सेना जगह-जगह परास्त होने लगी और ऐसा प्रतीत होने लगा मानो इटली से आस्ट्रिया का प्रभाव अब सदा के लिये समाप्त हो जाएगा। इस युद्ध के संबंध में केटलबी ने लिखा है, इटली के स्वाधीनता संग्राम का एक नया दौर आरंभ हुआ।

अब तक इटली का संघर्ष विद्रोहों तथा आंदोलनों तक ही सीमित था, किन्तु अब उसने राष्ट्रीय युद्ध का रूप धारण कर लिया। पीडमाण्ट के शासक ने घोषणा की कि, सभी का केवल एक ही कर्त्तव्य है, कि आस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध छेङ दे। इस घोषणा के साथ ही सारा इटली उसके झंडे के नीचे आ गया, किन्तु इटली की यह एकता क्षणिक सिद्ध हुई।

पोप सर्वप्रथम पीछे हट गया। नेपिल्स के शासक फर्डीनेण्ट द्वितीय ने पीठ फेर ली तथा टस्कनी भी सहायता देने से मुकर गयी। ऐसी परिस्थिति में चार्ल्स एल्बर्ट अकेला रह गया, अतः वह आस्ट्रिया के विरुद्ध सफल नहीं हो सका। जुलाई, 1848 में उसे आस्ट्रिया से समझौता करना पङा। लोम्बार्डी और वेनेशिया पर पुनः आस्ट्रिया का अधिकार हो गया। आस्ट्रिया ने इटली पर पुनः अपनी प्रधानता स्थापित कर ली तथा पीडमाण्ट को छोङकर सभी स्थानों पर पुनः निरंकुश शासन स्थापित हो गया।

चार्ल्स एल्बर्ट की इस असफलता से राजतंत्रवादियों की योजनाएँ विफल हो गयी। अतः अब उग्र गणतंत्रवादियों ने राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व अपने हाथ में ले लिया। मेजिनी ने घोषणा की कि, राजाओं का युद्ध समाप्त हो गया है, अब जनता का संघर्ष आरंभ होना चाहिये। इस प्रकार, मेजिनी के नेतृत्व में पोप की राजधानी रोम में विद्रोह हो गया। पोप भाग खङा हुआ तथा फरवरी, 1849 में रोम में गणतंत्र प्रवृत्तियों के प्रबल होने से राजतंत्रवादियों ने चार्ल्स एल्बर्ट पर पुनः युद्ध आरंभ करने हेतु दबाव डाला।

अतः उसने आस्ट्रिया के साथ हुए समझौते को खत्म कर आस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी, किन्तु 23 मार्च, 1849 को नोवारा नामक स्थान पर वह बुरी तरह से परास्त हुआ। अतः उसने अपने पुत्र विक्टर इमेनुअल को विवश होकर आस्ट्रिया से संधि करनी पङी।

नोवारा की पराजय के बाद इटली में सर्वत्र प्रतिक्रिया आरंभ हुई। नेपिल्स और सिसली में फर्डीनेण्ड ने पुनः अपनी शक्ति प्राप्त कर ली। टस्कनी में लियोपोल्ड वापस आ गया। वेनिस पर आस्ट्रिया का पुनः अधिकार हो गया। रोम में लुई नेपोलियन ने सेना भेजकर पोप को पुनः गद्दी पर बैठा दिया।

मेजिनी स्विट्जरलैण्ड भाग गया तथा एक अन्य देशभक्त गैरीबाल्डी भागकर पीडमाण्ट चला गया। आस्ट्रिया ने परमा, मोजेना, टस्कनी आदि के शासकों को पुनः उनके सिंहासन पर बैठा दिया तथा उन्होंने जो संविधान स्वीकार किये थे, वे रद्द कर दिये। पीडमाण्ट व रोम को छोङकर संपूर्ण इटली पर आस्ट्रिया का प्रभाव पुनः स्थापित हो गया।

इटली के स्वाधीनता संग्राम का प्रथम चरण समाप्त हुआ, जिसमें देशभक्तों को केवल असफलता ही हाथ लगी, किन्तु इस असफलता के बावजूद उनके कुछ अच्छे परिणाम भी निकले। इस संघर्ष के बाद क्रांतिकारियों को स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व करने के लिये पीडमाण्ट का राज्य मिल गया।

चार्ल्स एल्बर्ट ने आस्ट्रिया का विरोध करके जनता को उदार संविधान प्रदान करके अपनी जनता का ह्रदय जीत लिया था। विक्टर इमेनुअल द्वितीय ने भी तिरंगे झंडे को ऊँचा उठाए रखने का आश्वासन दिया, जिससे देशभक्तों को उसके नेतृत्व में पूर्ण विश्वास उत्पन्न हो गया। इस प्रकार पीडमाण्ट सार्डीनिया का राज्य इटली के एकीकरण से संबंधित सभी गतिविधियों का केन्द्र बन गया।

विक्टर इमेनुअल द्वितीय वर्तमान इटली के ‘जनक’ माने जाते हैं। उनका नाम जर्मनी के प्रिंस बिस्मार्क और भारत के सरदार पटेल के दर्जे का माना जाता है। इन्होंने अनेक राज्यों में विभक्त देश को एक कर वर्तमान इटली का रूप दिया, सीमावर्ती प्रबल देशों से उसे निर्भय बनाया और उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठा दिलायी…अधिक जानकारी

काउण्ट कैवूर का जन्म 1810 में ट्यूरिन (सार्डीनिया) के एक कुलीन परिवार में हुआ था। सैनिक शिक्षा प्राप्त कर वह सेना में इंजीनियर के रूप में भर्ती हुआ, किन्तु अपने उदार विचारों के कारण 1831 में उसे सैनिक सेवा से त्याग पत्र देना पङा। इसके बाद वह 15 वर्ष तक अपनी जमींदारी संभालता रहा। इसी काल में उसने फ्रांस, जर्मनी, इंग्लैण्ड आदि की यात्राएँ कर राजनीति का ज्ञान प्राप्त कर लिया…अधिक जानकारी

आस्ट्रिया की पराजय से इटली के सभी राज्यों की जनता सार्डीनिया से संबद्ध होने के लिये उत्तेजित हो उठी तथा एक शक्तिशाली राज्य के रूप में इटली के उदय होने के लक्षण दिखाई देने लगे। इससे नेपोलियन चौकन्ना हो गया। वह नहीं चाहता था, कि फ्रांस की दक्षिणी-पूर्वी सीमा पर एक शक्तिशाली राज्य की स्थापना हो, जिससे फ्रांस को खतरा उत्पन्न हो जाय। इधर नेपोलियन को युद्ध में काफी हानि उठानी पङी थी और यदि यह युद्ध कुछ समय और चलता तो उसे अधिक हानि की संभावना थी…अधिक जानकारी

इटली का एकीकरण

गैरीबाल्डी का जन्म 4 जुलाई 1807, तथा देहांत 2 जून 1882 को हुआ। गैरीबाल्डी इटली का एक राजनैतिक और सैनिक नेता था, जिसने इटली के इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। कैवूर, विक्टर इमेनुआल द्वितीय तथा मेजिनी के साथ गैरीबाल्डी का नाम इटली के ‘पिताओं’ में सम्मिलित हैं…अधिक जानकारी

  • मध्य इटली में एकीकरण की लहर

सार्डीनिया आस्ट्रिया युद्ध में सार्डीनिया की विजय से मध्य इटली के विभिन्न राज्यों में राष्ट्रीयता की भावना प्रबल हो गई। मध्य इटली की जनता ने परमा, मोडेना और टस्कनी के शासकों को निकाल दिया। बोलाग्ना तथा रोमाग्ना से पोप के प्रतिनिधियों को हटा दिया गया। इन सभी स्थानों पर देशभक्तों ने अपनी अस्थायी सरकारें स्थापित कर ली तथा उन्होंने सार्डीनिया के साथ सम्मिलित होने का निर्णय लिया।

ब्रिटेन ने मध्य इटली के राज्यों का समर्थन किया और कहा कि मध्य इटली की जनता को अपने शासक चुनने का उतनी ही अधिकार है, जितना कि इंग्लैण्ड, फ्रांस और बेल्जियम की जनता को है। आस्ट्रिया और प्रशा चाहते थे, कि ज्यूरिक की संधि के अनुसार मध्य इटली में पुराने शासकों को गद्दी पर बैठाया जाए।नेपोलियन नहीं चाहता था, कि मध्य इटली के राज्य पीडमाण्ट सार्डीनिया के साथ मिले।

इसी बीच जनवरी, 1860 में कैवूर पुनः पीडमाण्ट का प्रधानमंत्री बन गया। कैवूर जानता था कि नेपोलियन की सहमति के बिना मध्य इटली के राज्यों का सार्डीनिया के साथ मिलना कठिन है, अतः उसने नेपोलियन से बातचीत की तथा यह तय किया गया कि यदि वह (नेपोलियन) मध्य इटली के राज्यों को पीडमाण्ट में सम्मिलित होने देगा तो उसके बदले में सेवाय और नीस फ्रांस को सौंप दिए गये।

लोम्बार्डी पर पहले ही सार्डीनिया का अधिकार हो चुका था। इस प्रकार कैवूर की इस नीति के फलस्वरूप सार्डीनिया का एक छोटा राज्य, एक वर्ष में विशाल राज्य में परिवर्तित हो गया। फ्रांस को सेवाय और नीस प्राप्त हो जाने से फ्रांस की चिर-प्रतीक्षित अभिलाषा पूर्ण हो गयी, किन्तु गैरीबाल्डी ने इसका यह कहकर विरोध किया कि, उसने (कैवूर) मेरी मातृभूमि निजा (नीस) को बेच दिया और मुझे विदेशी बना दिया है। इधर नेपोलियन को इंग्लैण्ड की मित्रता से भी हाथ धोना पङा, क्योंकि सेवाय और नीस का फ्रांस में मिल जाना उसे अच्छा नहीं लगा।

कैवूर के प्रयत्नों से इटली का उत्तरी और मध्य भाग तो एक राजसत्ता के अधीन आ गये थे तथा संयुक्त इटली के लिये दृढ आधार तैयार हो गया था, किन्तु अभी तक आधा इटली बाकी था। वेनेशिया, रोम, नेपिल्स और सिसली के राज्य अभी बाहर थे। विलाफ्रेंका की संधि के बाद कैवूर ने कहा था, यूरोपीय शक्तियों ने मुझे कूटनीति के द्वारा उत्तर की ओर से इटली का एकीकरण नहीं करने दिया। अब मुझे क्रांति का सहारा लेकर दक्षिण की ओर से इटली का एकीकरण करना होगा। 1860 के अंत में कैवूर ने दक्षिणी इटली की ओर ध्यान दिया।

1821 से 1860 तक नेपिल्स का इतिहास अत्याचारपूर्ण निरंकुशलता का इतिहास है। वहाँ तीन बार विद्रोह हो चुका था तथा वहाँ के शासक फ्रांसिस द्वितीय ने कुछ सुधार करने का प्रयत्न किया, किन्तु इससे जनता का असंतोष कम नहीं हुआ। इसी प्रकार सिसली में भी क्रांतिकारियों का प्रचार कार्य तेजी से चल रहा था…अधिक जानकारी

  • इटली का पूर्ण एकीकरण

रोम और वेनेशिया को छोङकर इटली का एकीकरण पूर्ण हो चुका था। कैवूर की मृत्यु से इटली के नए राज्य को बङा आघात लगा। विक्टर इमेनुअल को प्रतिवर्ष एक नया प्रधानमंत्री नियुक्त करना पङता, क्योंकि किसी भी प्रधानमंत्री को अधिक समय तक संसद का समर्थन प्राप्त नहीं रहता। इसके अलावा इटली के कुछ क्षेत्रों के लोग पीडमाण्ट सार्डीनिया की प्रधानता से द्वेष रखते थे तथा इटली के निर्वासित शासक अपनी सत्ता पुनः ग्रहण करने हेतु षड्यंत्र कर रहे थे। ऐसी परिस्थितियों में विक्टर इमेनुअल ने बङे धैर्य से काम लिया।

प्रशा का चान्सलर बिस्मार्क आस्ट्रिया को जर्मनी से निकालना चाहता था। इटली के राजनीतिज्ञ इस स्थिति का लाभ उठाकर वेनेशिया प्राप्त करना चाहते थे। बिस्मार्क इटली से मित्रता करना चाहता था, अतः 8 अप्रैल, 1866 को इटली और प्रशा के बीच संधि हुई, जिसके अनुसार प्रशा और आस्ट्रिया के युद्ध में प्रशा को इटली सैनिक सहायता देगा तथा इसके बदले में इटली को वेनेशिया दिलवा दिया जाएगा।

14 जून, 1866 को प्रशा व आस्ट्रिया के बीच युद्ध आरंभ हो गया तथा इटली ने भी आस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। समुद्री युद्ध में आस्ट्रिया की सेना ने इटली की सेनाओं को परास्त कर दिया, किन्तु सेडोवा में प्रशा की सेना ने आस्ट्रिया को पूर्ण रूप से पराजित कर दिया। बिस्मार्क ने आस्ट्रिया से प्राग की संधि की, जिसके द्वारा वेनेशिया इटली को दिलवा दिया। 7 नवंबर, 1866 को विक्टर इमेनुअल ने वेनिस में प्रवेश किया।

इसके 4 वर्ष बाद जर्मनी का एकीकरण पूर्ण करने के लिये बिस्मार्क को फ्रांस से युद्ध करना अनिवार्य हो गया। इस अवसर पर नेपोलियन तृतीय ने प्रशा के विरुद्ध इटली और आस्ट्रिया से मित्रता का प्रस्ताव किया, किन्तु विक्टर इमेनुअल ने तटस्थता की नीति अपनाई। 1870 में फ्रांस और प्रशा के बीच युद्ध आरंभ हो गया, अतः नेपोलियन को रोम से अपनी सेना बुलानी पङी। सीडान के युद्ध में नेपोलियन को अपने 83 हजार सैनिकों के साथ प्रशा के समक्ष आत्मसमर्पण करना पङा।

इसकी सूचना मिलते ही विक्टर इमेनुअल ने अपने सेनापति केडोर्ना के नेतृत्व में 60 हजार सैनिक रोम पर आक्रमण करने के लिये भेज दिये। 29 सितंबर, 1870 को रोम पर इटली का अधिकार हो गया। रोम में जनमत संग्रह कराया गया, जिसमें रोम के नागरिकों ने इटली में सम्मिलित होना स्वीकार कर लिया।

फलस्वरूप रोम को इटली में मिला लिया गया तथा उसे संयुक्त इटली की राजधानी बनाया गया। 2 जून, 1871 को एक भव्य जुलूस के साथ विक्टर इमेनुअल ने रोम में प्रवेश किया। इस प्रकार एक दीर्घकालीन संघर्ष के बाद मेजिनी के नैतिक बल, गैरीबाल्डी की तलवार, कैवूर की कूटनीति, विक्टर इमेनुअल की समझदारी तथा व्यावहारिक बुद्धि एवं असंख्य देशभक्तों के बलिदान से इटली के एकीकरण का महायज्ञ पूरा हुआ।

  • पोप की स्थिति

एकीकरण के बाद समस्या यह उत्पन्न हुई कि इटली राज्य और पोप के बीच क्या संबंध हो ? रोम अब संयुक्त इटली की राजधानी थी तथा पोप भी वहीं रहता था, अतः एक ही नगर में दो सत्ताएँ थी, जिनके पारस्परिक संबंधों की समस्या थी। 1871 में इटली की संसद ने इस समस्या को हल कर दिया।

संसद ने एक कानून लॉ ऑफ पेपर गारण्टीज पारित किया। इस कानून के अनुसार पोप का निवास स्थान और उसके चारों ओर का कुछ क्षेत्र पोप को दे दिया गया। इस क्षेत्र पर पोप की सर्वोच्च सत्ता स्वीकार की गयी। पोप की स्थिति एक स्वतंत्र शासक के समान रखी गयी। इस क्षेत्र में इटली का कोई कानून नहीं होता था तथा इटली राज्य का कोई कर्मचारी इस क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर सकता था। पोप अन्य देशों में अपने राजदूत भेज सकता था तथा अन्य देशों के राजदूत पोप के यहां रह सकते थे।

इस प्रकार, 1815 में वियना कांग्रेस जिसे भौगोलिक अभिव्यक्ति मात्र कहा था, वह अब एक स्वतंत्र राष्ट्र बन गया, जो वियना कांग्रेस की व्यवस्था पर गहरा आघात था।

1. पुस्तक- आधुनिक विश्व का इतिहास (1500-1945ई.), लेखक - कालूराम शर्मा

Online References
Wikipedia : इटली का एकीकरण

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