इटली में फासीवादइतिहासमुसोलिनीविश्व का इतिहास

इटली में फासीवाद क्या था

इटली में फासीवाद क्या था

इटली में फासीवाद

युद्ध की समाप्ति पर 1919 में मुसोलिनी ने एक सम्मेलन बुलाया जिसमें अवकाश प्राप्त सैनिकों को निमंत्रित किया गया। इसके अलावा उन सभी लोगों को भी नियंत्रित किया गया जो इटली की समस्याओं को हल करने के इच्छुक हों। इस सम्मेलन में मार्च, 1919 में एक नवीन फासिस्ट दल का निर्माण किया गया।

इस दल ने अपने आपको अर्द्धसैनिकों की तरह संगठित किया। मुसोलिनी का कहना था कि फासिस्ट लोग “न पार्टी हैं, न पार्टी बन सकते हैं और न पार्टी बनाना चाहते हैं।” वास्तव में “फासिस्ट पार्टी-विरोधी आंदोलन” है।

इटली में फासीवाद

इससे इस दल का खूब प्रचार हुआ। इस दल में अवकाश प्राप्त सैनिक, मजदूर, समाजवादी विद्यार्थी, जमींदार, पूँजीपति और मध्यम वर्ग के लोग सम्मिलित हो गए। इस दल के स्वयंसेवक काली कमीज पहनते थे, अस्र-शस्र धारण करते थे और अनुशासनप्रिय थे।

उनका अपना अलग झंडा था। मुसोलिनी दल का प्रधान कमाण्डर था जिसे डूस कहा जाता था। उसके ओजस्वी भाषण से जनता अत्यधिक प्रभावित होती थी। उसने अपनी घोषणा में निम्नलिखित कार्यक्रम प्रस्तुत किया-

  • हथियार बनाने वाले कारखानों का राष्ट्रीयकरण किया जाय।
  • कुछ उद्योगों पर मजदूरों का नियंत्रण स्थापित किया जाय।
  • मजदूरों से 8 घंटे से अधिक काम न लिया जाय।
  • युद्ध काल में पूँजीपतियों ने जो मुनाफा कमाया है उसका 85 प्रतिशत जब्त कर लिया जाय।
  • चर्च की सम्पत्ति जब्त कर ली जाय।
  • देश का नया संविधान बनाने के लिये संविधान सभा गठित की जाय तथा वयस्क मताधिकार को स्वीकार किया जाय।
  • इटली राष्ट्रसंघ की सदस्यता ग्रहण करे, फ्यूम तथा डलमेशिया पर इटली का अधिकार स्वीकार कराया जाय।

इस घोषणा पत्र का जनता में खूब प्रचार हुआ और इससे फासिस्ट दल के सदस्यों की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि होती गयी। 1921 में इसके सदस्यों की संख्या तीन लाख हो गयी। इसके बाद मुसोलिनी ने देश में एक आंदोलन चलवाया जिसका उद्देश्य आतंकपूर्ण साधनों से विरोधी दलों को समाप्त करना था।

इसके फलस्वरूप फासिस्ट दल ने समाजवादियों और साम्यवादियों की सभाओं पर आक्रमण किए तथा उनके कार्यालयों पर अधिकार कर लिया। सरकार फासिस्टवादियों की इस कार्यवाही को रोकने में असमर्थ रही। फलस्वरूप मुसोलिनी का हौसला बढ गया।

इटली में फासीवाद

अक्टूबर, 1922 में नेपिल्स में फासिस्ट दल का सम्मेलन हुआ जिसमें लगभग 40 हजार स्वयंसेवकों ने काली कमीज धारण करके और अस्र-शस्रों से सुसज्जित होकर भाग लिया। इस सम्मेलन में मुसोलिनी ने घोषणा की कि यदि उसकी निम्नलिखित माँगों को स्वीकार नहीं किया गया तो 27 अक्टूबर, 1922 को वह अपने स्वयंसेवकों की सहायता से रोम पर चढाई कर देगा-

  • मंत्रिमंडल में फासिस्ट दल के पाँच सदस्यों को सम्मिलित किया जाय।
  • नए चुनाव शीघ्र कराने की घोषणा की जाय।
  • सरकार विदेश नीति में दृढता का पालन करे।

सरकार ने मुसोलिनी की इन माँगों को अस्वीकार कर दिया। अतः 27 अक्टूबर, 1922 को फासिस्ट दल के 50 हजार स्वयंसेवकों ने रोम पर चढाई कर दी तथा सेल्वे स्टेशन, डाक घर तथा अन्य सरकारी भवनों पर अधिकार कर लिया। सरकार ने राजा से माँग की कि देश में मार्शल लॉ लागू कर दिया जाय।

किन्तु राजा ने सरकार के इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। राजा का अनुमान था कि यदि मुसोलिनी को मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया जाय तो वह कानून का अनुयायी हो जाएगा। 30 अक्टूबर को मुसोलिनी बिना किसी विरोध के रोम में प्रविष्ट हो गया और बङी ही सरलता से रोम पर अधिकार कर लिया।

फासिस्ट शासन की स्थापना

रोम पहुँच कर मुसोलिनी ने सम्राट विक्टरइमेनुअल तृतीय से माँग की कि वह शासन सत्ता उसे सौंप दे। सम्राट के आदेश पर मंत्रिमंडल ने त्याग पत्र दे दिया तथा मुसोलिनी को मंत्रिमंडल बनाने का अधिकार दे दिया। 31 अक्टूबर, 1922 को मुसोलिनी ने अपना मंत्रिमंडल बनाया।

उस समय अधिकांश जनता तात्कालिक शासन प्रणाली से असंतुष्ट थी अतः जनता ने इस परिवर्तन को सहर्ष स्वीकार कर लिया। अब मुसोलिनी को इटली का सर्वेसर्वा बनने का अवसर मिल गया। सत्ता प्राप्त करने के बाद मुसोलिनी ने शासन को पुनर्गठित करने के लिये निम्नलिखित कार्य किए-

  • उसने संसद को भयभीत कर शासन की समस्त शक्ति अपने हाथ में ले ली और महत्त्वपूर्ण पदों से अपने विरोधियों को हटाकर अपने विश्वासघात व्यक्तियों को नियुक्त कर दिया।
  • 1923 में उसने एक नया निर्वाचन कानून पास कराया जिसके अनुसार जिस दल को निर्वाचन में बहुमत प्राप्त हो उसे चेम्बर ऑफ डेपूटीज में दो-तिहाई स्थान प्रदान कर दिये जायँ ताकि बहुमत प्राप्त दल शासन का संचालन अच्छी तरह से कर सके। शेष एक-तिहाई स्थान अन्य दलों में बाँट दिए जायँ। इस नए कानून के अनुसार अप्रैल, 1924 में नया चुनाव कारया गया, जिसमें फासिस्ट दल को बहुमत प्राप्त हुआ।
  • समाजवादी नेता मेटीओटी ने सरकार पर चुनाव कानून को भंग करने का आरोप लागाया तथा नए निर्वाचन की माँग की। किन्तु इस घटना के तीन दिन बाद मेटीओटी का वध कर दिया गया।
  • 1925 के प्रारंभ में मुसोलिनी के हाथ में पूर्ण सत्ता आ गयी और अब उसने विरोधी दलों के कुचलने का प्रयास किया।
  • 1926 में इटली के समस्त विरोधी दलों को अवैध घोषित कर दिया गया। इसी वर्ष मंत्रिमंडल प्रणाली का अंत कर दिया गया तथा यह निश्चय किया गया कि प्रधानमंत्री संसद के प्रति उत्तरदायी न होकर सम्राट के प्रति उत्तरदायी होगा। इस समय सम्राट के हाथ में कोई वास्तविक सत्ता नहीं थी।
  • राजद्रोहियों को गिरफ्तार करने के लिये पुलिस को व्यापक अधिकार दिए गए। बंदी बनाए गए व्यक्तियों को अनिश्चित काल तक जेल में बंद रखा जा सकता था। इस नियम के अनुसार विरोधी दल के नेताओं को बंदी बनाकर जेलों में ठूँस दिया गया। बहुत से नेता अपने प्राणों की रक्षा हेतु विदेशों में भाग गए।
  • समाचार पत्रों पर कठोर प्रतिबंध लगा दिए गए तथा अनेक समाचार पत्रों का प्रकाशन बंद कर दिया गया।
  • विद्यालयों में फासिस्ट सिद्धांतों की शिक्षा देना अनिवार्य कर दिया गया।
  • राजनैतिक अपराधियों पर मुकदमा चलाने के लिये विशेष न्यायालय स्थापित किए गये।

फासीवाद के सिद्धांत

फासीवाद सर्वत्तात्मक राज्य का समर्थक था अर्थात् एक दल और एक नेता में विश्वास था। इसीलिय मुसोलिनी ने शासन की समस्त शक्ति अपने हाथों में केन्द्रित कर ली थी। राजनैतिक, सैनिक तथा आर्थिक सत्ता पर उसका पूर्ण नियंत्रण स्थापित हो गया था। फासीवाद व्यक्तिवाद का भी विरोधी था।

मुसोलिनी का कहना था कि राज्य का मुख्य उद्देश्य राष्ट्र को शक्तिशाली बनाना है न कि व्यक्ति के कल्याण के लिये प्रयास करना। राज्य में रहकर राज्य के प्रति अपने कर्त्तव्यों का पालन करे। राज्य के बाहर उसके व्यक्तित्व का विकास नहीं हो सकता। राज्य में व्यक्ति को उतनी ही स्वतंत्रता प्राप्त होनी चाहिये जितनी राज्य की सुविधा में बाधा न पङे।

राज्य के हित के लिये व्यक्ति का बलिदान किया जा सकता है। फासीवाद जनतंत्र को पश्चिमी यूरोप के धनी देशों के आमोद-प्रमोद का एक साधन मानता था।अतः वह जनतंत्र का विरोधी था। राज्य में जनमत को कोई स्थान नहीं था, केवल नेता का आदेश ही सर्वोपरि माना जाता था।

इसीलिए मुसोलिनी ने लोकतंत्रात्मक निर्वाचनों को अंत कर दिया, समाचार-पत्रों पर कठोर प्रतिबंध लगा दिए तथा देश में गुप्तचरों का जाल बिछा दिया। फासीवाद, साम्यवाद का भी विरोधी है। साम्यवाद के अनुसार मानव जाति के इतिहास का निर्माण आर्थिक आधार पर हुआ है, किन्तु फासीवाद का मत है कि इतिहास के निर्णय में राजनैतिक घटनाओं का भी महत्त्व है।

साम्यवाद वर्ग संघर्ष को स्वीकार करता है, जबकि फासीवाद वर्ग संघर्ष के स्थान पर सभी वर्गों के सहयोग पर जोर देता है। फासीवाद शांति का विरोधी है। उसके अनुसार शांति की बातें करना कायरता का द्योतक है तथा इसके बलिदान की भावना समाप्त हो जाती है।

युद्ध मनुष्य की शक्ति का परिचायक है। युद्ध से साहस, शक्ति एवं बलिदान की भावना जागृत होती है, अतः युद्ध आवश्यक है। मुसोलिनी नागरिकों को आगे बढने तथा प्रत्येक संकट का सामना करने की शिक्षा देता था। फासीवाद तर्क में विश्वास नहीं करता। उसके अनुसार राज्य जो भी कहे वह ठीक है। जनता का एकमात्र कर्त्तव्य अपने नेता की आज्ञा मानना है।

फासीवाद स्वतंत्र व्यापार का विरोधी है। उसका कहना है कि आर्थिक व्यवस्था में सरकार का हस्तक्षेप आवश्यक है। वह देश के हित के लिये पूँजीवादी वर्ग तथा मजदूर वर्ग दोनों को आवश्यक मानता है। वह यह नहीं चाहता था कि पूँजीपति मजदूरों का शोषण करे। मजदूरों व पूँजीपतियों पर सरकार का नियंत्रण रहना चाहिये।

फासीवाद मजदूरों के हङताल करने तथा पूँजीपतियों पर सरकार का नियंत्रण रहना चाहिये। फासीवाद मजदूरों के हङताल करने तथा पूँजीपतियों के कारखाने बंद करने के अधिकार को मान्यता नहीं देता। देश के हित में निजी उद्योग आवश्यक हैं। सरकार उन्हीं निजी उद्योगों में हस्तक्षेप करती है, जहाँ व्यवस्था अपर्याप्त होती है।

मजदूरों की साप्ताहिक छुट्टी, अवैतनिक अवकाश, बीमा तथा मनोरंजन आदि के अधिकार को मान्यता देती है। इसी सिद्धांत के आधार पर 1926 में इटली में सिण्डीकेटों की स्थापना की गयी। इसमें छः पूँजीपतियों के छः मजदूरों के प्रतिनिधि होते थे और एक स्वतंत्र व्यक्ति होता था। ये सिण्डीकेट राष्ट्रव्यापी थे।

उन पर निगम मंत्री का नियंत्रण होता था। इस व्यवस्था का उद्देश्य मजदूरों तथा मालिकों के संघर्ष का अंत करना था। मजदूरों व मालिकों के झगङों के माध्यम के लिये विशेष प्रकार की अदालतें स्थापित की गई, जिनका निर्णय पक्षों को मानना पङता था। इस प्रकार फासीवाद के आर्थिक सिद्धांत कुछ अंशों सिण्डीकालिज्म और गिल्ड समाजवाद के निकट हैं, किन्तु यह वर्ग संघर्ष में विश्वास नहीं करता।

फासिस्ट युवक संगठन

मुसोलिनी और उसके दल ने युवकों को अपना समर्थक बनाने के लिये फासिस्ट युवक संगठन की स्थापना की और प्राथमिक एवं माध्यमिक स्कूलों में फासिस्टवादी सिद्धांतों की शिक्षा देना अनिवार्य कर दिया ताकि बच्चों को प्रारंभ से ही फासिस्टवादी सिद्धांतों की शिक्षा देना अनिवार्य कर दिया ताकि बच्चों को प्रारंभ से ही फासिस्टवादी सिद्धांतों का ज्ञान हो जाय और आगे चलकर वे युवक कट्टर फासिस्टवादी बन सकें।

आठ वर्ष से कम आयु के लङकों के लिये प्रि-बालिला और आठ से चौदह वर्ष की आयु के लङकों के लिये बालिला नामक संस्थाओं का संगठन किया गया। इन संस्थाओं में लङकों को बालचरों की भाँति प्रशिक्षित किया जाता था और उन्हें निर्भीक एवं साहसी बनाने का प्रयास किया जाता था।

चौदह से अठारह वर्ष की आयु के लङकों के लिये अवानगार्डिया नामक संस्था की स्थापना की गय थी। इन सभी श्रेणियों के बाद युवकों को युवक फासिस्ट नामक संस्था में तीन वर्ष का प्रशिक्षण लेना पङता था और उसके बाद उन्हें फासिस्ट नागरिक सेना में भर्ती कर लिया जाता था।

प्रारंभ में तो जो व्यक्ति फासिस्टवादी सिद्धांतों में आस्था रखता था, वह दल का सदस्य बन सकता था। किन्तु आगे चलकर यह नियम बना दिया गया कि उक्त प्रशिक्षण प्राप्त किए बिना कोई भी व्यक्ति फासिस्ट दल का सदस्य नहीं बन सकता। लङकियों के लिये भी प्रशिक्षण की व्यवस्था की गयी।

बारह वर्ष से कम आयु की लङकियों के लिये पिकोले इटालियाने नामक संस्थाओं की स्थापना की गयी और इससे से अधिक आयु की लङकियों के लिये युवती इटालियाने नामक संस्था की स्थापना की गयी। इन संस्थाओं में लङकियों को फासिस्टवादी सिद्धांत एवं राष्ट्र प्रेम की शिक्षा और व्यायाम द्वारा शरीर के विकास का प्रशिक्षण दिया जाता था।

पोप पायस 11 वें ने सरकार के इस कार्य के इस कार्य की कटु आलोचना की थी। उसका कहना था कि बच्चों को इस प्रकार की शिक्षा देकर उन्हें राज्य को देवता मानने की शिक्षा दी जाती है, जो ईसाई धर्म के विरुद्ध है।

इटली में फासीवाद की स्थापना का यूरोप पर प्रभाव

इटली में फासीवाद की स्थापना से यूरोप के अन्य देशों में प्रजातंत्र विरोधी भावना फैलने लगी तथा जर्मनी और स्पेन में अधिनायकवाद की स्थापना हुई। विश्व में शांति विरोधी वातवरण उत्पन्न हुआ। राष्ट्रसंघ का विरोधी था। फासीवाद ने राष्ट्रसंघ के सामूहिक सुरक्षा के सिद्धांत को आघात पहुँचाया।

विश्व की साम्यवाद-विरोधी लहर में तीव्रता आ गई।साम्यवाद के भय से ही प्रेरित होकर इटली में फासीवाद की स्थापना हुई थी। फासिस्टों ने इटली में सत्ता ग्रहण करने के बाद रूस और उसके अन्तर्राष्ट्रीय साम्यवादी आंदोलन के विरुद्ध विषवमन करना आरंभ कर दिया।

फलतः ब्रिटेन और फ्रांस ने जो पूँजीवादी राष्ट्र होने के कारण साम्यवाद के कट्टर शत्रु थे, इटली व जर्मनी के प्रति तुष्टिकरण की नीति अपनाई। ब्रिटेन और फ्रांस राष्ट्रसंघ के अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा के बङे भारी समर्थक थे, किन्तु यह सोचकर कि इटली और जर्मनी साम्यवाद को नष्ट कर देंगे, ऊपर से उनकी अनुचित कार्यवाहियों के प्रति अप्रसन्नता का झूठा प्रदर्शन करते रहे, जबकि अंदर ही अंदर इन दोनों राष्ट्रों को प्रसन्न रखने के लिये उन्हें हर कार्य में स्वतंत्रता प्रदान कर दी।

इटली ने जब स्पेन के गृह युद्ध में जनतंत्र विरोधी फ्रेंकों की सशस्र सहायता की और अबीसीनिया का अपहरण किया, तब दोनों देश केवल तमाशा देखते रहे और उन्होंने शांति विरोधी शक्तियों को बल पहुँचाया। जर्मनी ने जब सूडेटनलैण्ड की माँग की तब तो म्यूनिख समझौते में सूडेनटनलैण्ड पर जर्मनी का आधिपत्य सहर्ष स्वीकार कर लिया।

इस तुष्टिकरण की नीति के परिणाम विश्वशांति के लिये घातक सिद्ध हुए।

1. पुस्तक- आधुनिक विश्व का इतिहास (1500-1945ई.), लेखक - कालूराम शर्मा

Online References
wikipedia : इटली में फासीवाद

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