इतिहासराजस्थान का इतिहास

कोटा चित्रकला शैली का इतिहास

कोटा चित्रकला शैली – बूँदी के राव रतनसिंह के द्वितीय पुत्र माधोसिंह ने 1631 ई. में कोटा राज्य की स्थापना की थी तथा उसका मुगल दरबार से घनिष्ठ संबंध रहा था, अतः कोटा की चित्र शैली और मुगल शैली का सामंजस्य होते हुए भी कोटा में एक नवीन शैली आरंभ होती है। इसमें स्त्रियों के चित्र प्रतिमा के समान दिखायी देते हैं, जो या तो शीशे में अपना मुँह देख रही हैं या वृक्ष की डाली को पकङे हुए हैं। सिर के बाल काफी ऊँचाई से आरंभ होते हैं। तथा अस्वाभाविक रूप से लंबे लगते हैं। उनका ललाट काफी चौङा, आँखें बङी-बङी, खंजनानुकृति अथवा बादामानुकृति में, नाक छोटी, ठुड्डी गोल, वक्षस्थल काफी ऊँचा और कमर अत्यधिक पतली दिखायी गयी है। ओंठ पूरे फैले हुए तथा आभूषण भी बहुलता से दिखाये गये हैं। महाराव रामसिंह (1686-1708 ई.) और महाराव अर्जुनसिंह (1709-1724 ई.) के काल में कोटा चित्र शैली में मौलिकता आने लग गयी थी, लेकिन बूँदी शैली का प्रभाव यथावत रहा। महाराव उम्मेदसिंह (1771-1820ई.) के काल में तो कोटा की चित्रकला अपने चरम बिन्दु पर पहुँच गयी। इस समय के अधिकांश चित्रों में महाराव उम्मेदसिंह को शिकार करते हुए बताया गया है। शिकारियों के समूह, पेङ पत्तियाँ और पशु वर्ग का चयन स्थानीय आधार पर हुआ है।

कोटा, वल्लभ संप्रदाय की पुष्टि मार्ग शाखा का केन्द्र रहा है, अतः कुछ चित्रों में कोटा के शासकों को श्रीनाथजी की पूजा करते दिखाया गया है। मथुराधीश के मंदिर में श्रीनाथजी की प्रतिमा के पीछे लगने वाले कपङों पर भी सुन्दर चित्र बनाये गये हैं, जिन्हें पिछवाई के चित्र कहा जाता है। पिछवाई के चित्रों में राधा अपनी सखियों के साथ, राधा और कृष्ण तथा कृष्ण को गायें चराते दिखाया गया है। संभवतः पिछवाई के चित्रों के आधार पर ही बाद में भित्ति-चित्रकला का विकास हुआ था। कोटा के भित्ति-चित्रों में हाथियों की लङाई, स्वस्तिक, मंगलकलश, तोते और मोर के चित्र विशेष उल्लेखनीय हैं। कोटा शैली के चित्रों में स्त्रियों के चित्र विशेष आकर्षक बनाये गये। उनके अंग-प्रत्यंगों का चित्रण रीति काल के काव्यों के आधार पर हुआ है। इन चित्रों में गरे नीले और हरे रंगों का प्रयोग अधिकता से हुआ है तथा चित्रों के किनारे लाल, काले और सुनहरे रंगों से बनाये गये। रावसिंह (1828-1866ई.) के काल में यद्यपि परंपरागत चित्रों का निर्माण होता रहा, लेकिन कोटा शैली में विदेशी तत्वों का मिश्रण आरंभ हो गया तथा महाराव छत्रसिंह (1866-1889ई.) के काल में यूरोपीय प्रभाव बढता ही गया और कोटा शैली की आत्मा का हास होता गया।

References :
1. पुस्तक - राजस्थान का इतिहास, लेखक- शर्मा व्यास

Related Articles

error: Content is protected !!