इतिहासराजस्थान का इतिहास

गागरोण पर सुल्तान महमूद खिलजी का अधिकार

गागरोण पर महमूद खिलजी का अधिकार

महमूद खिलजी – गागरोण पर खींची राजपूतों का शासन था और उन्हीं के नाम पर इस क्षेत्र को खींचीवाङा कहा जाता था। खींचियों के महाराणा कुम्भा के साथ घनिष्ठ मैत्रीपूर्ण संबंध थे। एक प्रकार से वे मेवाङ की पूर्वी सीमा के प्रहरी थे।

गागरोण का राजा अचलदास खींची कुम्भा का बहनोई था और राणा मोकल के शासनकाल में होशंगशाह के आक्रमण के समय लङता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ था। उसकी मृत्यु के बाद गागरोण पर मालवा का अधिकार हो गया था।

महमूद खिलजी

परंतु कुछ वर्षों बाद अचलदास के लङके पालहनसिंह ने मेवाङ की सैनिक सहायता से गागरोण का दुर्ग पुनः अपने अधिकार में कर लिया था। उस समय महमूद खिलजी अपनी आंतरिक समस्याओं के कारण गागरोण की पुनर्विजय के लिये कोई कदम नहीं उठा पाया।

परंतु मेवाङ अभियान से वापस लौटने के बाद फरवरी 1444 ई. में उसने गागरोण पर आक्रमण किया। महाराणा कुम्भा ने गागरोण की सहायता के लिये दाहिर के नेतृत्व में एक सेना भेज दी। एक घमासान युद्ध में दाहिर मारा गया। कुछ दिनों बाद पालहन सिंह भी लङता हुया मारा गया और उसकी मृत्यु के बाद गागरोण पर महमूद खिलजी का अधिकार हो गया।

यह ठीक है कि गागरोण मेवाङ राज्य का एक अभिन्न अंग नहीं था, परंतु यह एक प्रकार से मेवाङ का आश्रित क्षेत्र और उसकी पूर्वी सीमा का प्रहरी था। महमूद खिलजी की विजय के परिणामस्वरूप अब गागरोण मालवा की सीमान्त चौकी बन गया जिसे आधार बनाकर मालवा के सुल्तान को मेवाङ राज्य में घुसपैठ का सुअवसर मिल गया।

इतना ही नहीं, अपितु इसको आधार बनाकर मालवा को हाङौती क्षेत्र में भी घुसपैठ करने का अवसर मिल गया। इस दृष्टि से गागरोण पर महमूद खिलजी का अधिकार हो जाना कुम्भा के लिये बङा घातक सिद्ध हुआ।

References :
1. पुस्तक - राजस्थान का इतिहास, लेखक- शर्मा व्यास
Online References
wikipedia : गागरोन का दुर्ग

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