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जलालुद्दीन खिलजी(1290-1296 ई.) का इतिहास

जलालुद्दीन खिलजी जलालुद्दीन खिलजी एक निष्ठावान, दयालु और उदार व्यक्ति था पर वह शाही सत्ता का दृढता के साथ प्रयोग करने में असमर्थ रहा। बलबन की कठोर विचारधारा में पले यथार्थवादी राजनीतिज्ञ उसके भावुकता से प्रेरित कार्यों से निराश हुए। बलबन के सिंहासन पर बैठने से इन्कार करते हुए उसने अमीरों से कहा, तुम जानते हो कि मेरे पूर्वजों में कोई भी शासक नहीं था, जिससे राजत्व का अभिमान और गौरव मुझे विरासत में मिलते। सुल्तान बलबन यहाँ बैठते थे और मैंने उनकी सेवा की है। उस शासक के भय और गौरव ने मेरे ह्रदय को अभी नहीं त्यागा है। यह महल बलबन ने बनवाया था जब वह खान था औ यह उसकी, उसके पुत्रों व संबंधियों की संपत्ति है।खिलजी वंश का संस्थापक जलालुद्दीन खिलजी

इस प्रकार की भावनाएँ व्यक्त करने वाला 70 वर्षीय जलालुद्दीन उस युग के शासकों की नीति का पालन करने में पूर्णतः असमर्थ था। उसका दुर्भाग्य यह रहा कि उसके सत्ता में आते ही विद्रोह और षङयंत्रों का क्रम प्रारंभ हो गया। विद्रोहियों के प्रति उसने दुर्बल नीति अपनाई और कहा, मैं एक वृद्ध मुसलमान हूँ और मुसलमानों का रक्त बहाने की मेरी आदत नहीं है। इसी तरह विदेश नीति में भी उसने अत्यंत दुर्बलता का परिचय दिया।

जलालुद्दीन खिलजी

जलालुद्दीन की इस दुर्बलता का लाभ उठाकर उसके दामाद व भतीजे अलाउद्दीन को बलपूर्वक सिंहासन हथियाने का उचित अवसर मिल गया। भिलसा, चंदेरी और देवगिरि के सफल अभियानों से वह अपार धन लेकर आया। इस कोष और प्रशिक्षित सेना की सहायता से उसे अपनी योजना कार्यान्वित करने में कोई कठिनाई नहीं हुई। सावधान रहने के सभी परामर्शों की अवहेलना कर जलालुद्दीन अपने प्रिय भतीजे से मिलने गया और अलाउद्दीन के संकेत पर उसकी हत्या कर दी गई। यह घृणित कृत्य 20 जुलाई, सन् 1298 को किया गया और बरनी का कहना है कि शहीद सुल्तान के कटे हुए मस्तक से अभी रक्त टपक रहा था, जब शाही चँदोबा अलाउद्दीन के सिर के ऊपर उठाया गया और वह सुल्तान घोषित किया गया।

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