इतिहासराजस्थान का इतिहास

बूँदी में जन आंदोलन

बूँदी में जन आंदोलन – बूँदी में सार्वजनिक चेतना के लक्षण 1922 ई. में दिखाई देने लगे थे। विजयसिंह पथिक के बार-बार बूँदी आने-जाने से लोगों में चेतना का संचार हुआ। बाद में, श्री पथिक और रामनारायण चौधरी के नेतृत्व में कर वृद्धि एवं बेगार-प्रथा के विरुद्ध आंदोलन आरंभ हो गया। आंदोलन के दौरान नामणा गाँव में पुलिस ने भीषण अत्याचार किये। फलस्वरूप संपूर्ण राज्य में आंदोलन छिङ गया। अंत में बूँदी महाराव ने बेगार पर प्रतिबंध लगा दिया। तत्पश्चात् बूँदी महाराव ईश्वरीसिंह पासवान की 1927 ई. में मृत्यु हो गयी। राजघराने के पुरोहित रामनाथ कुदाल ने पासवान की अंतिम क्रिया करने से इसलिए इन्कार कर दिया कि वह बूँदी राजघराने का सदस्य नहीं था। इस पर पुलिस ने उसका कत्ल कर दिया। इस घटना के विरोध में राजधानी में नौ दिन तक हङताल रही और प्रदर्शन हुए। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर गोली चलायी, जिससे अनेक लोगों को चोटें आयी।

जैसलमेर में जन आंदोलन

1931 ई. में कांतिलाल की अध्यक्षता में बूँदी प्रजा मंडल की स्थापना की गयी। नित्यानन्द इसके सक्रिय कार्यकर्त्ता थे। प्रजा मंडल ने नागरिक अधिकारों एवं उत्तरदायी शासन स्थापित करने की माँग सरकार के समक्ष रखी। किन्तु सरकार ने दमन-नीति का सहारा लिया। 1935 ई. में सार्वजनिक सभाओं पर प्रतिबंध लगा दिया। 1936 ई. में राजस्थान समाचार-पत्र पर भी पाबंदी लगा दी। किन्तु प्रजा मंडल का जोर बढता गया और प्रशासनिक सुधारों की माँग भी बलवती होती गयी। सरकार ने 1937 ई. में प्रजा मंडल के अध्यक्ष ऋषिदत्त मेहता को तीन वर्षों के लिये राज्य से निकाल दिया। 1940 ई. में उनके बूँदी लौट आने पर पुनः राजनीतिक हलचल आरंभ हुई। 1942 ई. में ऋषिदत्त मेहता और बृजसुन्दर शर्मा ने एक जन आंदोलन आरंभ किया। किन्तु मेहता को बंदी बनाकर अजमेर भेज दिया गया। प्रजा मंडल को गैर-कानूनी संस्था घोषित कर दिया गया। इस पर मेहता ने रिहा होने के बाद 1944 ई. में बूँदी राज्य लोक परिषद का गठन कर पुनः आंदोलन छेङ दिया। कुछ समय बाद राज्य सरकार ने इसे मान्यता प्रदान कर दी। लोक परिषद ने उत्तरदायी शासन की माँग प्रस्तुत की। कुछ समय बाद बूँदी महाराव ने एक संविधान निर्मात्री सभा की नियुक्ति की, जिसमें प्रजा मंडल के सदस्यों को भी मनोनीत किया। इससे पहले कि संविधान निर्मात्री सभा द्वारा पारित विधान स्वीकृत हो सके, बूँदी ने राजस्थान संघ में विलीन होना स्वीकार कर लिया।

References :
1. पुस्तक - राजस्थान का इतिहास, लेखक- शर्मा व्यास

Related Articles

error: Content is protected !!