नामदेव का भक्ति आंदोलन में योगदान
नामदेव का भक्ति आंदोलन में योगदान
बंगाल के ही समान महाराष्ट्र में भी भक्ति आंदोलन का प्रचार हुआ। यहाँ के मध्ययुगीन सुधारकों में नामदेव का नाम उल्लेखनीय है। उनका जन्म 1270 ई. में सतारा जिले में कन्हाङ के समीप नरसीबमनी गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम दामाशेट तथा माता का नाम जोनाबाई था। वे छिपी जाति के थे। नामदेव को भक्ति की प्रेरणा अपने पिता से ही मिली थी। उन्होंने अपना बचपन साधुओं की सेवा तथा सत्संग में व्यतीत किया।
संत विमोवा खेचर उनके गुरु थे। संत ज्ञानेश्वर के प्रति उनके मन में बङा सम्मान था। ज्ञानेश्वर के साथ उन्होंने कई स्थानों का भ्रमण किया तथा साधु-संतों से परिचय प्राप्त किया। उनकी मृत्यु के बाद नामदेव महाराष्ट्र छोङकर पंजाब के गुरुदासपुर जिले में स्थित घोमन नामक गाँव में जाकर बस गये। यहीं से उन्होंने अपने मत का प्रचार किया। हिन्दू तथा सिख दोनों ही उनके भक्त बन गये। नामदेव भी निरगुणवादी थे। उन्होंने मूर्ति-पूजा तथा धर्म के बाह्माडंबरों का विरोध करते हुये प्रेम, भक्ति एवं समानता का उपदेश दिया।
उनका कहना था, कि परमात्मा ही सब कुछ है। उसके अलावा कोई दूसरी सत्ता नहीं है।वहीं सभी में व्याप्त है। अतः एकान्त में उसी का ध्यान करना चाहिये। भक्ति को उन्होंने मोक्ष का साधन स्वीकार किया। नामदेव की एक भक्त के रूप में महाराष्ट्र तथा उत्तर भारत में इतनी अधिक प्रतिष्ठा थी, कि कबीर ने भी आदरपूर्वक उनका स्मरण किया है। वे हिन्दू-मुस्लिम एकता के भी समर्थक थे।
सभी जातियों के लोगों को उन्होंने अपना अनुयायी बनाया। वे मराठी भाषा तथा साहित्य के प्रमुख कवि थे। मराठी भाषा के माध्यम से उन्होंने महाराष्ट्र की जनता में एक नई चेतना जगाई।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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