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सल्तनत कालीन मुद्रा कैसी थी?

सल्तनत कालीन मुद्रा – इल्तुतमिश पहला तुर्क शासक था जिसने शुद्ध अरबी सिक्के चलाए। मुद्रा-प्रणाली में उसका योगदान सर्वाधिक है, क्योंकि उसी ने चाँदी के दो प्रमुख सिक्कों अर्थात् चाँदी का टंका और ताँबे का जीतल प्रचलित किए। इल्तुतमिश ने सिक्कों पर खलीफा का नाम अंकित करवाया। उसने अपने लिए भी शक्तिशाली सम्राट, धर्म और राज्य का तेजस्वी सूर्य, सदा विजयी इल्तुतमिश अंकित करवाया।

सल्तनत कालीन मुद्रा

साथ ही स्वयं को प्रधान धर्मरक्षक नासिर-अमीर उल-मुमनिन भी घोषित किया। चाँदी के ये बङे-बङे सिक्के जिन पर ये शब्द अंकित थे, इल्तुतमिश ने पहली बार चलाए। इससे पहले ऐबक के काल तक तुर्कों के छोटे-छोटे सोने के सिक्कों का उपयोग किया गया जो इस देश में प्रचलित थे। इन पर नागरी में और कई बार अरबी में भी उनके नाम अंकित थे। इन सिक्कों पर हिंदुओं के प्रचलित प्रतीक (जैसे शिव का नंदी) और चौहान घुङसवार अंकित होते थे। इल्तुतमिश पहला सुल्तान था जिसके सिक्के पश्चिमी देशों के सिक्कों के समान थे। उसका चाँदी का टंका 175 ग्रेन का होता था। बाद में बलबन ने इसी वजन के सोने के सिक्के चलाए, परंतु इल्तुतमिश के काल में सोने के सिक्कों में सुधार नहीं हुआ। नेल्सन राइट ने लिखा है, दिल्ली की मुद्रा-प्रणाली में इल्तुतमिश का शासनकाल ऐतिहासिक महत्व रखता है। वह निस्संकोच कहा जा सकता है, कि यह टंका, जैसा कि इसकी तोल से स्पष्ट है, बाद के सुल्तानों के टंकों के लिये एक नमूना था और उन्हीं से आधुनिक रुपये का विकास हुआ। ऐसा प्रतीत होता है कि जीतल को एक विशिष्ट सिक्के के रूप में प्रचलित करने का श्रेय इल्तुतमिश को ही है। इल्तुतमिश एक महान मुद्रा विशेषज्ञ था। विदेशों में प्रचलित टंकों पर टकसाल का नाम लिखने की परंपरा को भारतवर्ष में प्रचलित करने का श्रेय भी इल्तुतमिश को दिया जा सकता है। इल्तुतमिश के मुद्रा सुधार के कुछ विशेष लाभ हुए। सर्वप्रथम जनसाधारण को सुल्तान के स्थायित्व में अधिक विश्वास हो गया क्योंकि उसके टंके पर खलीफा का नाम भी अंकित रहता था। अतः मुसलमानों को उस पर अपेक्षाकृत अधिक निष्ठा हो गयी।

इल्तुतमिश ने अपने स्वामी से प्राप्त अधूरे कार्यों को ही पूरा नहीं किया वरन सल्तनत के स्वरूप, वंशानुगत राजतंत्र, शासन व्यवस्था, शासक वर्ग की स्थापना, न्याय, मुद्रा, सैन्य संगठन सभी क्षेत्रों में अत्यंत महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। बगदाद के खलीफा से मान पत्र प्राप्त कर उसने अपने भारतीय प्रदेशों की वैधानिक स्वीकृति स्थापित की। उससे पूर्व 1191 से 1210 ई. तक भारतीय इतिहास पर गोरी परंपराओं का प्रभाव रहा। परंतु इल्तुतमिश ने गोरी और गजनी से पूर्णतया संबंध विच्छेद किया। उसके समय से दिल्ली का महत्व बढा और लाहौर नगर का महत्त्व क्षीण पङ गया। उसने अपने भारतीय साम्राज्य के लिये दिल्ली को राजनीतिक और प्रशासनिक केंद्र बनाया। उसने अक्ता प्रणाली, सेना और मुद्रा प्रणाली को संगठित किया। अतः उसे ही दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक माना जा सकता है।

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