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हींग के बारे में जानकारी/Information about Asafoetida

हींग के बारे में जानकारी निम्नलिखित है –

हींग

भारत को मसालों का देश कहा जाता है। जितने विभिन्न प्रकार के मसाले हमारे यहाँ भोजन में प्रयुक्त होते हैं उतने कहीं नहीं किए जाते। यही कारण है कि यहाँ जितनी विभिन्नता, चाहे स्वाद में हो या रंग-रूप में, और किसी भी देश के भोजन में देखने को नहीं मिलती।

हींग रसोईघर में प्रयुक्त होने वाला एक पारम्परिक मसाला है। सब्जी, दाल, चाट, पकौङी, चूर्ण, चटनी, अचार, बङी, पापङ, मंगोङी आदि को स्वादिष्ट, अतिरिक्त सुगंध, सुपाच्य, गुणकारी तथा हाजमे को बनाए रखने के लिये हींग का प्रयोग किया जाता है, इसीलिए अमीर से लेकर गरीब की झोपङी तक हर घर की मसालेदानी में हींग का समावेश होता है। आयुर्वेद के ग्रन्थों में हींग से बहुत सी औषधि के रूप में अधिक काम में ली जाती है।

हींग फैरूला-फोइटिडा नामक पौधों के राइजोम वाले भाग से प्राप्त तेज गंध वाला गोंद है। हींग एकत्रित करने का समय बसंत ऋतु होती है, तीन महीने तक हींग का संग्रह किया जाता है। चार वर्ष के इस वृक्ष के निचले हिस्से में मिट्टी खोदकर चीरा लगाया जाता है। चीरे में से दूध जैसा गाढा व चिपचिपा रस निकलकर पात्र में जमा हो जाता है। धूल, मिट्टी से बचाने के लिए इसे ढक दिया जाता है। कुछ समय बाद इस जमे हुए रस को खुरच कर इकट्ठा किया जाता है। हींग दो रंगों में उपलब्ध होती है। एक सफेद तथा दूसरी जाति काली होती है। सफेद वृक्ष का निर्यास हीरे के समान होता है, इसे हीरा हींग कहा जाता है। काले वृक्ष का निर्यास दुर्गंधित ललाई लिए सफेद होता है। इस प्रकार की किस्म को हींगङा हींग के नाम से पुकारा जाता है। यह जाति निम्न अर्थात् कम गुणों वाली होती है। बाजार में निम्न गुणों वाली या नकली हींग ही उपलब्ध होती है जिसका प्रयोग करने से इच्छित लाभ नहीं मिल पाता। सफेद हींग ईरान से तथा काली हींग अफगानिस्तान से चमङे के थैलों में बाँधकर निर्यात की जाती है। चूँकि हींग एक मूल्यवान वस्तु है इसीलिए व्यापारी इसमें मिट्टी, रॉल, सस्ता गोंद, रंगा हुआ बङ का गोंद, गुङ, गोदंती,आटा आदि वस्तुएँ मिलाकर मिलावट कर देते हैं। प्रमुख रूप से अफगानिस्तान, ईरान, फारस, अरब, काबुल, भूमध्यसागरीय क्षेत्रों में हींग का उत्पादन बहुतायत में होता है। भारत में पंजाब, कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश में हींग पैदा की जाती है।

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