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1917 की रूसी क्रांति के परिणाम

1917 की रूसी क्रांति के परिणाम

1917 की क्रांति को बोल्शेविक क्रांति के नाम से भी जाना जाता है। इस क्रांति के परिणामस्वरूप रूस के राजनैतिक, सामाजिक एवं आर्थिक क्षेत्र में आश्चर्यनक परिवर्तन हुए, साथ ही इस क्रांति ने विश्व के अनेक देशों को भी प्रभावित किया। क्रांति के प्रमुख परिणाम निम्नलिखित हैं-

1917 की रूसी क्रांति के परिणाम

साम्यवादी शासन की स्थापना

इस क्रांति के फलस्वरूप रूस में विगत तीन शताब्दियों से चले आ रहे रोमनोव राजवंश और राजतंत्र का अंत हो गया। रूस के अंतिम जार निकोलस द्वितीय एवं उसके परिवार के अनेक सदस्यों को अपने प्राणों से हाथ धोना पङा। राजतंत्र के स्थान पर रूस में साम्यवादी शासन व्यवस्था की स्थापना हुई।

रूस का युद्ध से पृथक होना

सत्ता हाथ में आते ही बोल्शेविकों ने सभी राष्ट्रों से युद्ध बंद करने की अपील की। जब मित्र राष्ट्रों ने इस अपील पर कोई ध्यान नहीं दिया तो लेनिन ने मित्र राष्ट्रों से पूछे बिना ही जर्मनी के साथ ब्रेस्टलिटोवस्क की संधि करके रूस को युद्ध से पृथक कर दिया। रूसवासियों के लिये युद्ध समाप्त हो गया और अब वे अपनी आर्थिक समस्याओं के समाधान में जुट गए।

मित्र राष्ट्रों की नाराजगी

जब रूस ने मित्र राष्ट्रों से पूछे बिना ही जर्मनी के साथ संधि कर ली तो उनका नाराज होना स्वाभाविक ही था, क्योंकि पूर्वी मोर्चे से निश्चिन्त होकर जर्मनी को अपनी संपूर्ण शक्ति का मित्र राष्ट्रों के विरुद्ध पश्चिमी मोर्चे पर उपयोग करने का अवसर मिल गया। बोल्शेविकों के इस कार्य ने मित्र राष्ट्रों को सोवियत सरकार का विरोधी बना दिया और उन्होंने भी साम्यवादियों का तख्ता पलटने में कोई कसर बाकी न रखी।

रूस का विश्व शक्ति के रूप में उदय

क्रांति के बाद साम्यवादी सासन के अन्तर्गत रूस ने इतनी अधिक उन्नति कर ली कि वह विश्व की एक प्रमुख शक्ति बन गया। तात्कालीन इतिहासकार पियर्स ने कहा था कि सोवियत रूस आधुनिक विश्व में एक सर्वाधिक शक्तिशाली व सबसे महान राष्ट्र बनने लगा है।

राष्ट्रीयता का विकास

जार कालीन रूस में राष्ट्रीय भावना का विशेष विकास नहीं हो पाया था, परंतु इस क्रांति के बाद रूसियों में राष्ट्रीय भावना उग्र रूप से प्रसारित हुई। प्रत्येक रूसी अपने राष्ट्र के लिये बङा से बङा त्याग करने में अपना गौरव समझने लगा। इसी राष्ट्रीय भावना के कारण दूसरे विश्व युद्ध में रूसियों ने जर्मनी से कङा मुकाबला किया और पूर्वी मोर्चे पर अंत में उसे बुरी तरह से पराजित किया।

साम्यवाद का प्रसार

आधुनिक विश्व में साम्यवाद का प्रादुर्भाव एवं प्रसार इस क्रांति की देन है। इस क्रांति के द्वारा ही कार्ल मार्क्स के विचार प्रसारित हो रहे हैं। यद्यपि रूस में साम्यवाद का प्रभुत्व लगभग समाप्त होने को आया है, फिर भी अनेक देशों में आज भी साम्यवाद एक महत्त्वपूर्ण राजनीतिक ताकत है और पश्चिम के देश इस साम्यवाद से भयभीत हैं।

पराधीन देशों में नव चेतना का संचार

1917 की रूसी क्रांति ने एशिया और अफ्रीका के पराधीन देशों को अत्यधिक प्रभावित किया। क्रांति ने पराधीन देशों के लोगों में राष्ट्रीयता का संचार कर उन्हें साम्राज्यवादी शक्तियों के विरुद्ध संघर्ष करने की प्रेरणा दी और ऐसे संघर्षों को सोवियत संघ ने अपना नैतिक समर्थन दिया। इससे प्रोत्साहित होकर अनेक पराधीन देशों के लोगों ने अपनी स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिये राष्ट्रीय आंदोलन को और तेज कर दिया। भारत के राष्ट्रीय आंदोलन को भी इस क्रांति ने प्रोत्साहित किया।

यूरोप में तानाशाही शक्तियों का उदय

पश्चिम के पूंजीवादी देशों ने साम्यवाद के बढते हुये प्रभाव को कुचलने का हर संभव प्रयास किया। दूसरी तरफ, सोवियत सरकार ने भी पूँजीवादी ताकतों का डटकर मुकाबला किया। पूँजीवाद और साम्यवाद के इस संघर्ष ने तानाशाही शक्तियों को पनपने का अवसर प्रदान कर दिया। मुसोलिनी के नेतृत्व में इटली में फासिस्टवाद और हिटलर के नेतृत्व में जर्मनी में नाजीवाद का उदय हुआ।

प्रारंभ में स्थानीय पूँजीवादी एवं प्रतिक्रियावदी ताकतों ने साम्यवाद से भयभीत होकर तानाशाहों को सहयोग एवं समर्थन दिया । बाद में पश्चिमी देशों ने साम्यवाद को रोकने की दृष्टि से तानाशाहों के प्रति तुष्टिकरण की नीति अपनाई, जिससे तानाशाहों की शक्ति एवं हौंसला बढता गया और संसार को दूसरे महायुद्ध का सामना करना पङा।

सामाजिक परिणाम

समानता की भावना का उदय

सामाजिक असमानता इस क्रांति का एक मुख्य कारण थी। क्रांति के बाद रूस में एक नए समाज का उदय हुआ, जो समानता की भावना पर आधारित था। पुरानी सामाजिक व्यवस्था समाप्त हो गई। पूँजीपति, भूमिपति, धर्माचार्य आदि तत्वों का उन्मूलन कर दिया गया। शासन सत्ता पर श्रमिकों एवं कृषक वर्ग का प्रभुत्व कायम हो गया। जारकालीन असमानता के सभी अवशेषों को नष्ट कर दिया गया।

शिक्षा का विकास

क्रांति के बाद रूस में शिक्षा के क्षेत्र में भी अभूतपूर्व विकास हुआ। जारकालीन शासन व्यवस्था में शिक्षा प्राप्ति का अधिकार एवं सुविधाएँ कुछ ही परिवारों तक सीमित थी। क्रांति के बाद सरकार ने शिक्षा का काम अपने हाथ में ले लिया और निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था को लागू किया। परिणामस्वरूप 1930 ई, तक रूस की नब्बे प्रतिशत जनता शिक्षित हो गई।

स्त्रियों की स्थिति में सुधार

क्रांति के फलस्वरूप रूस की स्त्रियों की स्थिति में भी क्रांतिकारी परिवर्तन आया। अब उनका कार्यक्षेत्र घर की चारदीवारी तक ही सीमित न रहा। वे कारखानों, सरकारी कार्यालयों और सेना में भी काम करने लगी। आर्थिक दृष्टि से वे आत्मनिर्भर बन गई और राजनीतिक क्षेत्र में वे पुरुषों के समान ही सक्रिय भाग लेने लगी। रूसी स्त्रियों की स्थिति में जो सुधार आया, उसका प्रभाव एशिया और अफ्रीका की स्त्रियों पर विशेष रूप से पङा और वे भी राष्ट्रीय आंदोलनों में सक्रिय हुई।

आर्थिक परिणाम

सामंतों एवं पूँजीपतियों का सफाया

1917 की बोल्शिवक क्रांति के बाद सरकारी अध्यादेशों के अन्तर्गत पूँजीपतियों से उनके कारखाने छीन लिये गये और उनका राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। पूँजीपतियों के स्थान पर अब श्रमिकों की प्रतिष्ठा बढने लगी। इसी प्रकार रूसी सामंत प्रथा का भी सफाया कर दिया गया। उनकी जागीरें छीन ली गयी और भूमि को भूमिहीन किसानों में वितरित कर दिया गया। सामंतों एवं पूँजीपतियों के सफाए से किसानों एवं मजदूरों के शोषण का अंत हो गया, क्योंकि क्रांति ने सभी प्रकार के विशेषाधिकारों को भी समाप्त कर दिया था।

रोटी की समस्या का समाधान

1917 की क्रांति का सूत्रपात रोटी की समस्या को लेकर हुआ था। इसके समाधान की दिशा में पहला कदम रूस को महायुद्ध से अलग करने की दिशा में उठाया गया। इसके बाद सामंतों से भूमि छीनकर उस भूमि को भूमिहीन किसानों में बाँट दिया गया।

युद्ध के दौरान धन संपन्न लोगों तथा मुनाफाकोरों ने बहुत बङी मात्रा में खाद्य-सामग्री का स्टॉक जमा कर रखा था। बोल्शेविक सरकार ने इस प्रकार से जमा खाद्य सामग्री को जब्त करके निर्धन मजदूरों में बाँट दिया। इसका परिणाम यह निकला कि खाद्य वस्तुओं के भावों में काफी गिरावट आ गई और लोगों को अब भोजन की व्यवस्था की चिन्ता से राहत मिल गई।

रूस का औद्योगिक विकास

1917 की क्रांति के पूर्व औद्योगिक विकास की दृष्टि से यूरोपीय राज्यों की तुलना में रूस काफी पिछङा हुआ देश था, परंतु क्रांति के बाद रूस ने इस क्षेत्र में आश्चर्यजनक उन्नति की। बङे-बङे बिजलीघरों और कल कारखानों को स्थापित किया गया। परिणामस्वरूप उत्पादन की मात्रा इतनी अधिक हो गयी कि रूस अपनी घरेलू आवश्यकताओं को पूरी करने के बाद उत्पादित माल का निर्यात करने की स्थिति में आ गया। वह आत्म निर्भर औद्योगिक राष्ट्र बन गया।

पंचवर्षीय योजनाएँ

लेनिन के आर्थिक सुधारों से रूसियों को राहत तो मिली, परंतु वे अधिक उन्नति नहीं कर पाए थे। उसके बाद स्टालिन ने रूस का आर्थिक नक्शा ही बदल दिया। उसने अपने समय में दो पंचवर्षीय योजनाएँ चालू की। उनमें रूस को आशातीत सफलता मिली। परिणाम यह निकला कि रूस विकसित राष्ट्रों की पंक्ति में आ खङा हुआ।

वर्ग संघर्ष की समाप्ति

औद्योगिक विकास के साथ ही वर्ग संघर्ष भी बढता जाता है अर्थात् श्रमिकों का अधिक से अधिक शोषण करने की सोचता है और श्रमिक वर्ग अधिक से अधिक पारिश्रमिक तथा सुविधाओं की माँग करता है। इस प्रकार, दोनों में संघर्ष बढता ही जाता है, परंतु क्रांति के बाद उद्योगपतियों और पूँजीपतियों का सफाया हो जाने से वर्ग-संघर्ष का भी अंत हो गया। कारखानों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया और राष्ट्रीय सरकार सर्वहारा वर्ग की सरकार थी।

श्रमिकों के जीवन स्तर में सुधार

1917 की क्रांति के पूर्व रूस का श्रमिक वर्ग अत्यधिक दयनीय स्थिति में जीवन यापन करता था। शासन एवं समाज में उसकी कोई मान मर्यादा एवं प्रतिष्ठा नहीं थी। उसे बहुत कम मजदूरी मिलती थी और गंदी बस्तियों में जानवरों की भाँति जीवन बिताना पङता था, परंतु क्रांति के बाद धीरे-धीरे उसे अपने विकास के लिये आवश्यक साधन उपलब्ध होने लगे, जिससे उसका जीवन स्तर भी उन्नत हो गया। राजनीतिक अधिकारों की प्राप्ति ने श्रमिक वर्ग की मान-मर्यादा एवं प्रतिष्ठा को भी बढा दिया।

क्रांति का महत्त्व एवं प्रभाव

1917 ई. में रूस में दो क्रातियाँ हुई। प्रथम मार्च की क्रांति थी, जिसने जार के निरंकुश शासन के स्थान पर प्रजातंत्र की स्थापना की, जो उदारवादी सिद्धांतों पर आधारित थी किन्तु यह प्रजातंत्र सफल नहीं हो सका और नवम्बर में बोल्शेविक क्रांति हुई जिसने रूस में सर्वहारा वर्ग का अधिनायक तंत्र स्तापित किया।

बोल्शेविक क्रांति संपूर्ण मानव जाति के इतिहास में एक युगान्तकारी घटना मानी जाती है। इस क्रांति के फलस्वरूप विश्व में पहली बार मार्क्सवादी सिद्धांतों पर आधारित सरकार बनी, जिसने रूस की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन किए।

जमींदारों एवं पूँजीपतियों को समाप्त कर दिया गया, उद्योगों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया और किसानों को उनकी आवश्यकतानुसार भूमि प्रदान की गयी। बोल्शेविक शासन ने निजी लाभ की भावना को समाप्त कर दिया तथा उच्च वर्ग द्वारा निम्न वर्ग के लोगों के शोषण का अंत कर दिया। इससे रूस की प्रगति का मार्ग प्रशस्त हुआ और आगे चलकर रूस एक विश्व शक्तिके रूप में सामने आया।

लेनिन के नेतृत्व में बोल्शेविक दल का जो निरंकुश शासन अर्थात् सर्वहारा वर्ग का अधिनायकत्व स्थापित हुआ, उसके प्रभाव से कई देशों में निरंकुश सरकारों की स्थापना हुई। विश्व के कई देशों में साम्यवादी दलों की स्थापना हुई, जिन्हें रूस से निर्देशन प्राप्त होता रहता था।

हालाँकि यह आश्चर्य की बात है कि लेनिन के सभी प्रमुख अनुयायी साम्यवादी आंदोलन के विरोधी थे। रूस की बोल्शेविक क्रांति से पराधीन राष्ट्रों में साम्राज्य विरोधी भावनाएँ तीव्र हो गयी और उन राष्ट्रों की जनता ने अपने अधिकारों एवं स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए अपना राष्ट्रीय आंदोलन तेज कर दिया।

1917 की रूसी क्रांति के परिणाम

अन्त में इस क्रांति ने ऐसे समाज और सरकार की घोषणा की, जिसका आधार और स्वरूप बिल्कुल नया था। विश्व के अनेक देशों में ऐसे नए समाज की स्थापना के प्रयास आरंभ हुए और समाजवाद 20 वीं सदी के लोकतंत्र का मुख्य आधार बन गया।

किन्तु इस क्रांति से रूस के नेताओं की सभी आकांक्षाएँ पूर्ण नहीं हो सकी। लेनिन को आशा थी कि रूस की क्रांति के बाद पश्चिमी यूरोप में भी क्रांति भङक उठेगी। तथा संपूर्ण यूरोप में सर्वहारा वर्ग का अधिनायकत्व स्थापित हो जाएगा।

इसके लिए बोल्शेविकों ने 1919 ई. में कम्युनिस्ट इण्टरनेशनल की स्थापना की, किन्तु पश्चिम के पूँजीवादी देशों ने अन्तर्राष्ट्रीय साम्यवाद के विरुद्ध ऊँची-ऊँची दीवारें खङी कर दी, ताकि उनके देश में साम्यवाद के रोगाणुओं का प्रवेश न हो सके। स्वयं बोल्शेविकों द्वारा शुद्ध साम्यवादी सिद्धांतों के आधार पर राजनैतिक एवं आर्थिक ढाँचा तैयार करने का प्रयोग भी सफल नहीं हुआ। फलतः परिस्थितियों के अनुसार उन्हें अपने सिद्धांतों में परिवर्तन करना पङा।

महत्त्वपूर्ण प्रश्न एवं उत्तर

प्रश्न : रूस में क्रांतियों के समय वहाँ के शासक का क्या नाम था

उत्तर : निकोलस द्वितीय

प्रश्न : जार की पत्नी पर किस व्यक्ति का अत्यधिक प्रभाव बढ गया था

उत्तर : रासपुटिन

प्रश्न : मार्च, 1917 की क्रांति की शुरुआत किस नगर से हुई थी

उत्तर : सेन्ट पीटर्सबर्ग

प्रश्न : क्रांति के बाद अस्थायी सरकार का नेतृत्व किसने किया था

उत्तर : ल्वॉव

प्रश्न : 7 नवंबर, 1917 की क्रांति को किस नाम से पुकारा जाता है

उत्तर : बोल्शेविक क्रांति

1. पुस्तक- आधुनिक विश्व का इतिहास (1500-1945ई.), लेखक - कालूराम शर्मा

Online References
wikipedia : रूस में 1917 की क्रांति के परिणाम

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