इतिहासरूसी क्रांतियाँविश्व का इतिहास

1917 की क्रांति का प्रारंभ

1917 की क्रांति का प्रारंभ

1917 ई. में दो क्रांतियाँ हुई थी

प्रथम क्रांति मार्च, 1917 ई. की क्रांति । इसे मार्च की क्राति कहा गया। इस क्रांति के परिणामस्वरूप निरंकुश जार को सिंहासन छोङना पङा।

द्वितीय क्रांति नवम्बर, 1917 ई. की क्रांति। इस क्रांति को नवम्बर की क्रांति कहा गया तथा बोल्शेविक क्रांति भी कहा गया। इस क्रांति के फलस्वरूप रूस में जनतंत्र का उदय हुआ।

1917 की क्रांति का प्रारंभ

अगस्त 1914 में रूस ने विश्व युद्ध में प्रवेश किया। प्रारंभ में रूस की सेनाओं को सफलता मिली, किन्तु कुछ ही समय बाद जर्मनी के विरुद्ध रूस की सेनाएँ पराजित होने लगी।

सेना को पर्याप्त युद्ध सामग्री नहीं मिल पा रही थी, क्योंकि रूस के कारखाने पर्याप्त युद्ध सामग्री का उत्पादन नहीं कर सकते थे, क्योंकि रूस के कारखाने पर्याप्त युद्ध सामग्री का उत्पादन नहीं कर सकते थे, अतः युद्ध सामग्री के लिये विदेशों पर निर्भर रहना पङता था। विदेशों से आए हुए हथियार भी बंदरगाहों पर पङे रहते थे और उन्हें मोर्चे पर नहीं भेजा जा रहा था। यातायात का समुचित विकास न होने के कारण भी समय पर रसद पहुँचाने में कठिनाई हो रहा थी।

रूसी सरकार ने प्रारंभिक तीन वर्षों में लगभग 15 लाख सैनिक मोर्चे पर भेज दिए, जिससे खेतों में काम करने वालों की कमी हो गई और कृषि उत्पादन कम हो गया, अतः सेना एवं नागरिकों के लिये खाद्य सामग्री की कमी हो गई और कृषि उत्पादन कम हो गया, अतः सेना एवं नागरिकों के लिये खाद्य सामग्री की कमी हो गयी।

दैनिक जीवन के लिये आवश्यक के भावों में इतनी अधिक वृद्धि हो गयी कि लोगों का निर्वाह होना भी कठिन हो गया। इससे किसानों और मजदूरों में उत्तेजना बढने लगी। युद्ध क्षेत्र से वापस भेजे गए निराश और क्रुद्ध सैनिकों ने भी उनका साथ दिया। जार पर उसकी पत्नी का प्रभाव था और वह जर्मन थी, अतः रूस के प्रति उसकी कोई सहानुभूति नहीं थी।

फलस्वरूप उस समय यह अफवाह फैली कि जार अपनी पत्नी के प्रभाव में आकर जर्मनी से संधि करना चाहता है। इससे सर्वत्र उत्तेजना फैल गई। शासन में अनुचित हस्तक्षेप करने वाले पवित्र साधु रासपुटिन की दिसंबर, 1916 में हत्या कर दी गई। इस हत्या से स्पष्ट हो गया कि राजदरबार में भी एकता का अभाव है। इसके बाद भी जार निकोलस द्वितीय की नीति में कोई परिवर्तन नहीं हुआ और उसका अयोग्य शासन पूर्ववत् गलतियाँ करता रहा।

1917 की क्रांति का प्रारंभ

एक ओर तो सेनाओं की निरंतर हार से जनता क्रुद्ध थी, दूसरी ओर अनाज, ईंधन, कपङे आदि की कमी होने लगी, जिससे इन वस्तुओं के भाव अत्यधिक बढ गए। जनता का यह विश्वास था कि देश में इन वस्तुओं की कमी नहीं है वरन् पूँजीपतियों ने इन वस्तुओं का भारी स्टॉक कर रखा है।

जनता ने शासन की अयोग्यता और भ्रष्टाचार को इस स्थिति के लिये उत्तरदायी ठहराया। ऐसी स्थिति में रूस में अचानक क्रांति हो हई, जिसकी कल्पना नहीं की गयी थी और जिसके लिये क्रांतिकारी दल भी तैयार नहीं था। क्रांति का तात्कालिक कारण रोटी की कमी थी। 8 मार्च, 1917 को मजदूरों ने भूख से व्याकुल होकर पेट्रोग्राड में हङताल कर दी। मजदूरों की भीङ ने सङकों पर रोटी के नारे लगाना आरंभ कर दिया तथा लूटमार आरंभ कर दी।

दूसरे दिन भी उग्र प्रदर्शन होते रहे। वे रोटी दो के साथ-साथ अत्याचारी शासन का नाश हो के नारे लगाने लगे। 1 मार्च को पेट्रोग्राड के सभी कारखानों में हङताल हो गई। मजदूरों ने पुलिस के हथियार छीन लिए। सम्राट ने उनका दमन करने के लिये सेना भेजी, किन्तु सेना ने भी आंदोलनकारियों का साथ दिया। सर्वत्र क्रांति के चिह्न दृष्टिगोचर होने लगे। सम्राट ने क्रोधित होकर 12 मार्च को ड्यूमा को भंग कर दिया तथा सैनिक टुकङियों को आदेश दिया कि उपद्रवकारियों से जा मिले।

हङताली मजदूरों और सैनिकों ने मिलकर सैनिक एवं मजदूरों के प्रतिनिधियों की क्रांतिकारी सोवियत बना ली तथा शासन की वास्तविक शक्ति अपने हाथ में ले ली। 14 मार्च, को क्रांतिकारी परिषद एवं ड्यूमा के सदस्यों की एक समिति ने मिलकर एक अस्थायी सरकार का निर्माण कर लिया, जिसका अध्यक्ष प्रिन्स ल्वॉव था।

अस्थायी सरकार के मंत्री बङे योग्य थे। क्रांतिकारी समाजवादी दल का नेता केरेन्स्की न्याय मंत्री था, अक्टूबरिस्ट दल के नेता गुचकाव युद्ध मंत्री था और संवैधानिक लोकतंत्रीय दल का नेता मिल्यूकॉव विदेश मंत्री था। 15 मार्च को निकोलस द्वितीय ने अपने भाई माइकेल के पक्ष में सिंहासन त्याग दिया, किन्तु अस्थायी सरकार के सदस्य राजतंत्र बनाए रखने अथवा गणतंत्र की स्थापना के बारे में एकमत न हो सके, अतः माइकेल ने भी सिंहासन अस्वीकार कर दिया।

इस प्रकार मार्च, 1917 की क्रांति के फलस्वरूप रूस के निरंकुश सम्राटों के शासन का अंत हो गया। पेट्रोग्राड की क्रांति को संपूर्ण देश ने स्वीकार कर लिया।

अस्थायी सरकार के कार्य

  • अस्ठायी सरकार संवैधानिक तरीकों में विश्वास करती थी, अतः उसने निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण कार्य किए-
  • भाषा और प्रेस की स्वतंत्रता घोषित कर दी । जनता अपनी इच्छानुसार विभिन्न संघों का निर्माण कर सकती थी, भाषण दे सकती थी तथा समाचार-पत्रों का प्रकाशन कर सकती थी।
  • राजनैतिक बंदियों को मुक्त कर दिया। जिन राजनैतिक बंदियों को निर्वासित कर दिया था, उन्हें पुनः देश में आने की अनुमति प्रदान कर दी गई।
  • यहूदियों के विरुद्ध जितने कानून बनाए गए थे, उन्हें रद्द कर दिया गया।
  • पोलैण्ड को स्वायत्त-शासन का वचन दिया गया तथा फिनलैण्ड के वैध अधिकारियों को मान्यता दे दी गयी।
  • देश का नया संविधान बनाने के लिये एक नवीन संविधान सभा की स्थापना की घोषणा की गयी।

इस प्रकार अस्थायी सरकार ने लोकतंत्रवादी सिद्धांतों के आधार पर अपना कार्य आरंभ किया, किन्तु अस्थायी सरकार को अनेक जटिल परिस्थितियों का सामना करना पङा-

  • अस्थायी सरकार को एक ओर तो असफल युद्ध को संचालित करना था और दूसरी ओर आंतरिक व्यवस्था स्थापित करनी थी। अस्थायी सरकार मित्र राष्ट्रों के सहयोग से युद्ध जारी रखना चाहती थी, किन्तु मजदूरों और सैनिकों की सोवियत चाहती थी कि युद्ध बंद कर दिया जाय, भूमिपतियों की भूमि बिना मुआवजा के ग्रहण करके किसानों में वितरित कर दी जाय और सभी महत्त्वपूर्ण उद्योगों का राष्ट्रीयकरण कर दिया जाय।
  • जब विदेश मंत्री मिल्यूकॉव ने मित्र राष्ट्रों को सूचित किया कि रूस की सरकार युद्ध को जोरी रखेगी तब पेट्रोग्राड की सोवियत ने इसका विरोध किया। फलतः विदेश मंत्री को त्याग-पत्र देना पङा और इसके साथ ही गुचकाव ने त्याग-पत्र दे दिया। ल्वॉव की पुनर्गठित सरकार में केरेन्सी को युद्ध मंत्री बनाया गया।
  • पेट्रोग्राड की सोवियत तथा उसके नेता अस्थायी सरकार में विश्वास नहीं रखते थे। अतः उन्होंने गाँव-गाँव में स्वतंत्र सोवियतों का निर्माण कर लिया था। अस्थायी सरकार और सोवियतों में तीव्र मतभेद था।

जून 1917 में पेट्रोग्राड की सोवियत ने अखिल रूसी सोवियत कांग्रेस का सम्मेलन आयोजित किया, जिसमें बोल्शेविक दल के प्रतिनिधि सम्मिलित हुए। यहाँ पर 300 सदस्यों की अखिल रूसी सोवियत कार्यकारिणी समिति गठित की गयी तथा वास्तविक कार्यकारिणी शक्ति 20 सदस्यों की एक प्रेसीडियम को दी गयी।

इस समय लेनिन ने बोल्शेविक एवं मेन्शेविक दल को सलाह दी कि वे ल्वॉव की सरकार को समाप्त करके अपना खुद का मंत्रिमंडल गठित करें। 1 जुलाई को इसके लिये मजदूरों का प्रदर्शन आयोजित किया गया, मजदूरों ने युद्ध बंद करो, पूँजीवादी मंत्रियों को हटाओ, सभी अधिकार सोवियत को दो के नारे लगाए। 3 जुलाई को एक बङा विद्रोह हुआ, किन्तु उसे दबा दिया गया। सरकार को ऐसा लगा कि विद्रोह को भङकाने में बोस्लशेविकों का हाथ था, अतः बोल्शेविकों को कैद करने की आज्ञा दे दी। लेनिन को रूस छोङकर भागना पङा।

केरेन्स्की का सत्ता प्राप्त करना

सोवियत और सरकार के बीच मतभेद बढते गए। राजनीतिक सुधारों से किसी को कोई संतोष नहीं मिला। अस्थायी ल्वॉव की सरकार रोटी की समस्या हल नहीं कर सकी। युद्ध बंद करके स्थायी शांति स्थापित करने में भी इसे सफलता नहीं मिली। फलस्वरूप ल्वॉव ,सरकार का पतन हो गया। केडेट दल के पतन के बाद मेन्शेविक दल के हाथ में सत्ता आ गई। इस दल का नेता केरेन्स्की था। वह क्रांति तथा रक्तपात का विरोधी था।

वह युद्ध को यथाशीघ्र सम्मानपूर्वक स्थिति में समाप्त करना चाहता था, किन्तु बोल्शेविक दल उसका निरंतर विरोध करता रहा। इधर समाजवादियों में पारस्परिक मतभेद बढने लगे। इसी समय केरेन्स्की और प्रधान सेनापति कार्नीलाव के बीच भी मतभेद बढने लगे। उधर जर्मनी निरंतर आगे बढता जा रहा था।

3 सितंबर को जर्मनी ने रीगा पर अधिकार कर लिया। इस स्थिति का लाभ उठाकर कार्नीलाव ने सेना की सहायता से सत्ता हथियाने का प्रयत्न किया, किन्तु केरेन्स्की ने बोल्शेविकों की सहायता से कार्नीलाव के प्रयत्न को विफल कर दिया। इससे बोल्शेविकों को अपना प्रभाव बढाने का अच्छा अवसर मिल गया।

लेनिन

ब्लादिमीर इलिच उल्यानोव जो लेनिन के नाम से विश्व प्रसिद्ध हुआ, बोल्शेविक दल का प्रमुख संस्थापक था। लेनिन का जन्म 1870 ई. में सिम्बिर्स्क नामक स्थान पर एक साधारण राजकर्मचारी के घर में हुआ था। लेनिन के बङे भाई को जार अलेक्जेण्डर द्वितीय की हत्या का प्रयत्न करने के आरोप में मृत्यु दंड दिया गया था।

इस प्रकार बचपन से ही उस पर क्रांतिकारी विचारों का प्रभाव था। कजान विश्वविद्यालय में शिक्षा ग्रहण करते हुये वह मार्क्सवादी विचारों का कट्टर समर्थक बन गया था। अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण उसे विश्वविद्यालय से निष्कासित कर दिया गया।

1892 – 93 ई. में सेण्ट पीटर्सबर्ग में वकालत आरंभ की तथा साथ ही मार्क्सवादी विचारों का गहन अध्ययन और उनका प्रचार भी करता रहा। इस काल में वह प्लेखानोव के विचारों से भी अधिक प्रभावित हुआ…अधिक जानकारी

1. पुस्तक- आधुनिक विश्व का इतिहास (1500-1945ई.), लेखक - कालूराम शर्मा

Online References
wikipedia : 1917 की रूसी क्रांति का प्रारंभ

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