पल्लव राजवंश की उत्पत्ति एवं मूल निवास स्थल
दक्षिण भारत के इतिहास में पल्लव राजवंश का राजनैतिक तथा सांस्कृतिक दोनों ही दृष्टियों से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है। परंतु दुर्भाग्यवश इस वंश की उत्पत्ति के विषय में विद्वानों के बीच अत्यधिक मतभेद रहा है।विद्वान जैसे कि बी.एल.राइस तथा वी.वेंकैया नामक विद्वानों का मानना है, कि पल्लव पह्लवों अथवा पार्थियनों से संबंधित थे, जो सिन्धु घाटी तथा पश्चिमी भारत में निवास करने के बाद सातवाहनों के पतन के दिनों में कृष्णा तथा गोदावरी नदियों के बीच स्थित आंध्रप्रदेश में घुस गये। उन्होंने तोण्डमण्डलम् पर अधिकार कर लिया।यहीं से कालांतर में उनका कांची पर अधिकार हो गया।
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विदेशी मतों के विपरीत के.पी.जायसवाल, आर.गोपालन, डी.सी.सावरकर,नीलकंठ शास्त्री, टी.वी.महालिंगम् आदि विद्वान पल्लवों को भारतीय मूल का ही मानते हुये उन्हें प्राचीन भारत के भिन्न-भिन्न राजवंशों के साथ संबंधित करते हैं। पल्लव अभिलेखों में उन्हें भारद्वाजगोत्रीय तथा अश्वत्थामा का वंशज बताया गया है। पाँचवीं शता. का तालगुण्ड अभिलेख उन्हें क्षत्रिय कहता है। ऐसा लगता है, कि पल्लवों में उत्तर भारत के भारद्वाजगोत्रीय ब्राह्मणों तथा कांची के आसपास के राजवंशों के रक्त का सम्मिश्रण था।
यद्यपि पल्लवों के राजनैतिक तथा सांस्कृतिक उत्कर्ष का केन्द्र कांची था। परंतु वे मूलतः वहाँ के निवासी नहीं थे। उनका मूल स्थान तोण्डमण्लम् में था। पल्लवों के पहले कांची पर नागवंशी शासकों का अधिकार था। नागों को परास्त कर उन्होंने कांची के ऊपर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। कालांतर में उनका साम्राज्य उत्तर में पेन्नार नदी से लेकर दक्षिण में कावेरी नदी की घाटी तक विस्तृत हो गया तथा कांची उनकी राजधानी बनी।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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