इतिहासअमेरिका की क्रांतिविश्व का इतिहास

अमेरिका की क्रांति में किसकी विजय हुई

अमेरिका स्वतंत्रता संघर्ष के शुरू होने के समय उपनिवेशियों की स्थिति अधिक अच्छी न थी और अंग्रेजों की तुलना में वे बहुत तुच्छ लगते थे। उस समय में कोई यह सोच भी नहीं सकता था, कि इस संघर्ष में तत्कालीन यूरोप की सर्वोच्च शक्ति इंग्लैण्ड को परास्त करना, क्योंकि इंग्लैण्ड एक विशाल साम्राज्य का स्वामी था। उसकी जल सेना अजेय थी। उसके पास आधुनिक अस्त्र, शस्त्र, प्रशिक्षित सेना तथा अनुभवी सेनानायक थे। उपनिवेशों में भी बहुत से लोग इंग्लैण्ड के प्रति सहानुभूति रखते थे। उपनिवेशों के पास जलसेना का अभाव था। उनके पास स्थायी सेना भी नहीं थी। उपनिवेशी अस्थायी तौर पर सेना में उपस्थित हो जाते थे और संकट के समय सेना को छोङ जाते थे। एक उपनिवेशी सेनानायक दूसरे उपनिवेशी सेनानायक के नेतृत्व में लङना नहीं चाहता था। अमेरिकी कांग्रेस की स्थिति अच्छी नहीं थी। उसके आय के स्त्रोत सीमित थे और सदस्यों में एकता का अभाव था। इन सभी बातों के उपरांत भी अमेरिका की विजय हुई और अंग्रेजों को पराजय का सामना करना पङा। इसके लिये कई कारण जिम्मेदार थे, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-

इंग्लैण्ड और अमेरिका की दूरी

इंग्लैण्ड को अपने घर से लगभग 3,000मील की दूरी पर अमेरिका से लङना पङा। इतनी दूरी से युद्ध को चारू रखना बङा कठिन काम था। यातायात के उन्नत साधनों के अभाव में इतनी दूरी से समय पर सैनिक सहायता पहुंचना बहुत मुश्किल काम था। फ्रांस, स्पेन, हालैण्ड आदि के अमेरिका के साथ मिल जाने के बाद इंग्लैण्ड के लिये अपने सैनिकों को अत्यावश्यक सामान पहुँचाना भी कठिन हो गया। इसके अलावा, युद्ध के केन्द्र भी लगभग एक हजार मील के घेरे में फैले हुए थे। लङते-लङते अंग्रेज सैनिक जंगलों में भटक जाते थे और उन्हें स्थानीय लोगों के हाथों भारी हानि उठानी पङती थी, इसके विपरीत, अमेरिकी लोग जंगलों के चप्पे-चप्पे से परिचित थे।

जातीय समानता

यह संघर्ष अंग्रेजों के बीच ही हुआ था। अमेरिका के लगभग नब्बे प्रतिशत लोग अंग्रेज ही थे। एक प्रकार से यह युद्ध वृद्ध माँ और उसकी जवान पुत्रियों के बीच लङा गया था। चूँकि माँ से पहले पुत्रियों को राजनैतिक, आर्थिक एवं अन्य मामलों में काफी सुविधाएँ दे रखी थी, अतः अब उनकी स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाना सरल काम न था। यदि अमेरिकन लोग अंग्रेज न होते तो शायद उनके लिये स्वतंत्रता प्राप्त करना इतना आसान नहीं होता, क्योंकि इंग्लैण्ड में भी बहुत से लोग ऐसे थे, जिनको अपने भाइयों से सहानुभूति थी और वे उनका कठोरता के साथ दमन किए जाने के विरुद्ध थे। बहुत से सैनिकों और सेनानायकों की सहानुभूति भी उनके साथ थी, अतः इंग्लैण्ड की अंग्रेज सेना अमेरिका की सेना के विरुद्ध एक कट्टर शत्रु सेना की भाँति युद्ध लङ ही नहीं पाई।

उपनिवेशियों का सहयोग

उपनिवेशी लोग अपने घर बार और जीवन की सुरक्षा के लिये लङ रहे थे। वे अपनी स्वतंत्रता के लिये सब कुछ बलिदान करने के दृढ संकल्प के साथ लङ रहे थे। इंग्लैण्ड की सरकार ने विभिन्न करों को लगाकर पहले ही उनमें असंतोष पैदा कर दिया था। इसके अलावा वे अपने ही घर में लङ रहे थे, अतः उनके लिये अपने सैनिकों को रसद तथा अन्य सामान पहुँचाना बहुत आसान था। अंग्रेजी सेना के पहुँचते ही उपनिवेशी उसके आगे झुक जाते थे, परंतु सेना के आगे बढते ही विद्रोह कर देते थे। वे अपने सैनिकों को हर समय हर प्रकार की संभव सहायता देने को तैयार रहते थे। अंग्रेजी सेना को इस प्रकार का सहयोग कभी नहीं मिल पाया।

उपनिवेशों की शक्ति का गलत मूल्यांकन

अंग्रेजों की पराजय का एक मुख्य कारण यह था, कि उन्होंने शुरू से ही उपनिवेशों की शक्ति का सही मूल्यांकन नहीं किया। उन्हें स्वयं अपनी शक्ति पर बहुत अधिक विश्वास था। उनका मानना था, कि यदि उपनिवेशों ने शस्त्र उठाए तो वे सरलता के साथ उन्हें दबा देंगे। जनरल गेज ने तो कहा भी था, कि अमेरिकी उपनिवेशों को जीतने के लिये केवल चार रेजिमेण्ट ही पार्याप्त होंगी। परिणाम यह निकला कि जब संघर्ष शुरू हुआ तो इंग्लैण्ड की सरकार ने अधिक मात्रा में सैनिक सामान नहीं भेजा और जब उसे सही स्थिति का ज्ञान हुआ तब तक काफी देर हो चुकी थी और सैनिक तथा सामान पहुँचाना संभव न हो पाया। इसके अलावा अमेरिका में इंग्लैण्ड की जो सेनाएँ लङ रही थी, उनमें बहुत से सैनिक जर्मन थे, जिन्हें भाङे पर लाया गया था। इन जर्मन सैनिकों की इंग्लैण्ड की विजय में विशेष रुचि नहीं थी। इसके विपरीत अमेरिकी सैनिकों में राष्ट्रीयता का अपार जोश था।

जार्ज तृतीय और उसके मंत्री

इंग्लैण्ड का शासक जार्ज तृतीय अपने आपको वास्तविक राजा मानता था और वह सरकारी काम में बहुत अधिक हस्तक्षेप करता था। संयोगवश उसके अधिकांश मंत्रियों में उसकी नीतियों का विरोध करने की सामर्थ्य नहीं रहा। जार्ज तृतीय का प्रधान उद्देश्य इंग्लैण्ड के हित के लिये उपनिवेशों का शोषण करना था, जबकि शासक का उद्देश्य होना चाहिये, शासितों के कल्याण की चिन्ता करना। जार्ज का प्रधानमंत्री लार्ड नार्थ भी एक अयोग्य व्यक्ति था। उसमें स्थिति की गंभीरता और दूसरों की योग्यता परखने की शक्ति नहीं थी। जार्ज के विशेष आग्रह पर ही चाय कर कायम रखा गया था और यही चाय-कर संघर्ष का मूल कारण बना। यदि जार्ज और उसकी सरकार उस समय उपनिवेशियों को कुछ सुविधाएं और दे देती तो स्थिति सामान्य हो जाती, परंतु उसने तो चुनौती देते हुये कहा था, अब पासा फेंका जा चुका है। उपनिवेश या तो आत्म समर्पण करें अथवा जीत जाएँ। इंग्लैण्ड के बहुत से बुद्धिजीवी जार्ज तृतीय के व्यक्तिगत शासन से रुष्ट थे। वे चाहते थे, कि अमेरिका जीत जाये ताकि इंग्लैण्ड में जार्ज की शक्तियों पर नियंत्रण लगाना संभव हो जाएगा।

सेनानायक

उपनिवेशियों की सफलता का एक मुख्य कारण जार्ज वाशिंगटन का सुयोग्य नेतृत्व था। जार्ज वाशिंगटन एक कुशल, धैर्यशील एवं साहसी सेनानायक था। उसने किसानों तथा मजदूरों को प्रशिक्षित करके एक अच्छी सेना खङी करके अपनी संगठन शक्ति का अच्छा परिचय दिया। युद्ध के बुरे दिनों में भी उसने अपने में और सैनिकों में आत्म विश्वास की कमी नहीं आने दी। इसके विपरीत अंग्रेज सेनानायकों में बहुत सी कमियाँ थी। इंग्लैण्ड का युद्ध मंत्री लार्ड जर्मेन एक अयोग्य व्यक्ति था। उसने बस्तियों तथा युद्ध के मैदान से आने वाले पत्रों को शायद ही कभी पढा हो और बिना पढे ही अपनी इच्छानुसार नए-नए आदेश भेजवाता रहता था। परिणामस्वरूप घटनास्थल पर काम करने वाले सैन्य अधिकारी कभी भी ठीक से काम नहीं कर पाए, अन्यथा अमेरिका में अंग्रेजी सेना की यह दुर्गति कभी नहीं होती। सर विलियम जैसे सुस्त सेनानायकों के कारण अंग्रेजी सेना को कई बार सुअवसरों को खोना पङा। उपनिवेशों के किसी भी अंग्रेज गवर्नर ने भी इस अवसर पर योग्यता का परिचय नहीं दिया।

अन्य राष्ट्रों का सहयोग

सप्तवर्षीय युद्ध में जो फ्रांस को झटके लगे थे, उनकी टीस अब भी शेष रह गयी थी। वह इंग्लैण्ड से अपने अपमान का बदला लेना चाहता था। फ्रांस का मानना था, कि यदि उपनिवेशों को अन्य राष्ट्रों का सहयोग मिल जाये तो यह संघर्ष काफी लंबा चलेगा और इससे इंग्लैण्ड को भयंकर आर्थिक हानि का सामना करना पङेगा और संभव है, कि उसके हाथ से अमेरिका के उपनिवेश निकल जायँ। अतः फ्रांस ने उपनिवेशों को सैनिक सहायता देने का निश्चय कर लिया, परंतु संघर्ष के प्रारंभिक वर्षों में वह खुल्लमखुल्ला सैनिक सहायता न देकर गुप्त रूप से धन और सामान भेजता रहा। फ्रेंकलिन बैंजामिन ने फ्रांस जाकर खुला सहयोग प्राप्त करने में सफलता का निश्चय किया। इन राष्ट्रों की जलसेना ने इंग्लैण्ड की जलसेना को काफी परेशान किया और इंग्लैण्ड के लिये अमेरिका स्थित अपनी सेनाओं को सामान पहुँचाना कठिन बना दिया। फ्रांसीसियों के सहयोग से ही वाशिंगटन ने यार्क टाउन में लार्ड कार्न वालिस को आत्म समर्पण के लिये विवश किया था, अन्यथा उपनिवेशियों के अंग्रेजी जहाजों की घेराबंदी करना अथवा उन्हें रोकना कभी संभव नहीं हो पाता।

1. पुस्तक- आधुनिक विश्व का इतिहास (1500-1945ई.), लेखक - कालूराम शर्मा

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