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बंगाल में अंग्रेजी शक्ति का उदय : प्लासी एवं बक्सर का युद्ध

बंगाल में अंग्रेजी शक्ति का उदय

बंगाल में अंग्रेजी शक्ति का उदय (Rise of British power in Bengal)

बंगाल में अंग्रेजी शक्ति का उदय (Rise of English power in Bengal)- 18 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भारत की राजनीतिक स्थिति अत्यंत शोचनीय थी। मुगल सम्राटों की दुर्बलता और अयोग्यता के कारण बंगाल, अवध तथा दक्षिण के प्रान्त स्वतंत्र हो गए। 1740 ई. में अलीवर्दी खाँ बंगाल, बिहार और उङीसा का शासक बन बैठा।

वह नाममात्र के लिए मुगल सम्राट के अधीन था। व्यावहारिक रूप से वह एक स्वतंत्र शासक था। उसने 1740 ई. से 1756 ई. तक शासन किया। व्यापारिक सुविधाओं के प्रश्न को लेकर अलीवर्दी खाँ तथा ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच तनावपूर्ण संबंध रहे। 10 अप्रैल, 1756 को अलीवर्दी खाँ की मृत्यु हो गयी और उसके बाद उसका दोहिता सिराजुद्दौला बंगाल का नवाब बना। शीघ्र ही अंग्रेजों और सिराजुद्दौला के बीच तीव्र मतभेद उत्पन्न हो गए जिसके फलस्वरूप 23 जून, 1757 को दोनों पक्षों के बीच युद्ध छिङ गया, जिसे प्लासी का युद्ध कहते हैं।

बंगाल में अंग्रेजी शक्ति का उदय

बंगाल में अंग्रेजी शक्ति का उदय – प्लासी का युद्ध के कारण

सिराजुद्दौला के नवाब बनाये जाने का विरोध

1756 ई. में सिराजुद्दौला बंगाल की गद्दी पर तो बैठ गया, परंतु उसके विरोधी उसे गद्दी से हटाने के लिए षङयंत्र रचने लगे। सिराजुद्दौला की मौसी घसीटी बेगम और उसका दीवान राजवल्लभ, शौकत जंग आदि सिराजुद्दौला को नवाब के पद से हटाने के लिए षङयंत्र रच रहे थे। अंग्रेज भी षङयंत्रकारियों को प्रोत्साहन दे रहे थे क्योंकि वे बंगाल की गद्दी पर ऐसे व्यक्ति को बिठाना चाहते थे, जो उनके हाथों में कठपुतली बन कर रहे। इस कारण सिराजुद्दौला का अंग्रेजों से क्रुद्ध होना स्वाभाविक था।

सिराजुद्दौला का आरंभ से ही अंग्रेजों पर संदेह करना

नवाब अलीवर्दी खाँ दक्षिण में अंग्रेजों और फ्रांसीसियों की प्रगति के कारण उनके प्रति शंकालु हो गया था। उनका ख्याल था कि यूरोपीय वही कार्य बंगाल में करेंगे जो वे दक्षिण में कर रहे हैं। अतः नवाब बनने के बाद सिराजुद्दौला भी अंग्रेजों को सन्देह की दृष्टि से देखने लगा तथा उसने उनकी गतिविधियों पर अंकुश लगाने का प्रयत्न किया जिससे अंग्रेज उसके शत्रु बन गए।
बंगाल की धन-संपन्नता

बंगाल अपनी धन सम्पन्नता के लिए प्रसिद्ध था। अतः अंग्रेज बंगाल जैसे उपजाऊ और धन सम्पन्न प्रदेश पर अधिकार करके अपनी आर्थिक स्थिति को सुदृढ करना चाहते थे।

नवाब के प्रति अंग्रेजों का दुर्व्यवहार

फ्रांसीसियों की भांति अंग्रेजों ने कभी भी नवाब के प्रति सम्मान प्रदर्शित नहीं किया था। अंग्रेजों ने नवाब के राज्याभिषेक के अवसर पर उसे बहुमूल्य भेंट नहीं दी थी। एक बार तो उन्होंने नवाब को अपनी कासिम बाजार की फैक्ट्री दिखाने तक से इनकार कर दिया था। यह सभी काम नवाब के सम्मान को ठेस पहुँचाने वाले काम थे।

व्यापारिक झगङा

अंग्रेज मुगल बादशाह फर्रुखसियर के 1717 के आदेश पत्र के अनुसार बिना कर दिये व्यापार करते थे। उससे भारतीय व्यापारियों को हानि होती थी और नवाब की आय में भी कमी होती थी। इसके अलावा अंग्रेज अपने दस्तकों का प्रयोग भारतीयों को करने देते थे, जिससे अंग्रेजों के नाम से भारतीय व्यापारी भी अपने व्यापारिक सामान को करमुक्त करा लिया करते थे। इससे नवाब को हानि होती थी। साथ ही ईमानदार भारतीयों को भी इससे हानि उठानी पङती थी।

अंग्रेजों का कृष्णवल्लभ को नवाब के हाथों में देने से इनकार

कृष्णवल्लभ घसीटी बेगम के दीवान राजवल्लभ का लङका था। राजवल्लभ ने घसीटी बेगम के धन को छुपाने का प्रयत्न किया। इस कारण नवाब ने उसे उसके पद से हटा दिया, परंतु इसके पहले ही राजवल्लभ ने अपनी संपूर्ण संपत्ति अपने पुत्र कृष्णवल्लभ को देकर उसको अंग्रेजों के संरक्षण में भेज दिया। नवाब के अंग्रेजों से माँग करने पर उन्होने कृष्णवल्लभ को लौटाने से इनकार कर दिया। इस कारण सिराजुद्दौला अंग्रेजों से नाराज था।

अंग्रेजों का कलकत्ता के किले की किलाबंदी करना और नवाब की आज्ञा का पालन न करना

उस समय अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के युद्ध की आशंका थी। इस कारण, उन्होंने कलकत्ता के किले की मरम्मत करनी आरंभ की और उसके चारों तरफ एक खाई खोदनी आरंभ की। नवाब को यह कार्य पसंद नहीं आया और उसने आदेश दिये कि किले की मरम्मत करना तुरंत बंद कर दिया जाए और खाई को भर दिया जाए। परंतु अंग्रेजों ने इस आदेश का पालन करने से इन्कार कर दिया। इस प्रकार दोनों में तनाव बढ गया जो कि प्लासी के युद्ध में शांत हुआ।

कासिम बाजार तथा कलकत्ता पर सिराजुद्दौला का अधिकार

4 जून, 1756 को सिराजुद्दौला ने अंग्रेजों की कासिम बाजार की कोठी पर अधिकार कर लिया। इसके बाद 20 जून, 1756 को नवाब ने कलकत्ता पर भी अधिकार कर लिया। अंग्रेजों का यह आरोप है कि सिराजुद्दौला ने 146 अंग्रेज बंदियों को एक कमरे में बंद कर दिया तथा दम घुटने से 123 अंग्रेज मर गये तथा 23 व्यक्ति ही बच पाये । इसे ब्लैक होल की दुर्घटना कहते हैं।

अंग्रेजों द्वारा कलकत्ता पर पुनः अधिकार

28 दिसंबर, 1756 को क्लाइव ने कलकत्ता पर आक्रमण किया। मानिक चंद्र पर कलकत्ता की रक्षा की जिम्मेदारी थी, परंतु उसके विश्वासघात के कारण 2 जनवरी, 1757 को अंग्रेजों ने पुनः कलकत्ता पर अधिकार कर लिया। यद्यपि सिराजुद्दौला ने कलकत्ता को फिर से लेने का प्रयास किया, परंतु उसे परास्त होना पङा और 9 फरवरी, 1757 को अंग्रेजों से अली नगर की संधि करनी पङी। इस संधि के अनुसार अंग्रेजों को बंगाल में बिना चुँगी दिये व्यापार करने, कलकत्ता की किलाबंदी करने तथा सिक्के ढालने की अनुमति दी गयी। इसके बाद 23 मार्च, 1757 को अंग्रेजों ने चंद्रनगर की फ्रांसीसी बस्ती पर भी अधिकार कर लिया।

अंग्रेजों का सिराजुद्दौला के विरुद्ध षङयंत्र

क्लाइव ने सिराजुद्दौला को अपदस्थ करने का निश्चय कर लिया। उसने सिराजुद्दौला के मुख्य सेनापति मीर जाफर को लालच देकर अपनी ओर मिला लिया। षङयंत्र में अमीचंद, जगत सेठ, यारलुत्फ, रायदुर्लभ आदि भी शामिल थे। 10 जून, 1757 को अंग्रेजों और मीर जाफर के बीच एक गुप्त संधि हुई जिसके द्वारा यह निश्चय किया गया कि सिराजुद्दौला के स्थान पर अंग्रेजी कंपनी मीर जाफर को बंगाल का नवाब बना देगी।

इसके बदले में मीर जाफर ने अंग्रेजी कंपनी को एक करोङ रुपये देना तथा कलकत्ता एवं कासिम बाजार की किलाबंदी करने की अनुमति देना स्वीकार कर लिया। इसके बाद क्लाइव ने सिराजुद्दौला पर अलीनगर की संधि का उल्लंघन करने का आरोप लगाया। यद्यपि नवाब ने इस आरोप का खंडन किया, परंतु क्लाइव ने उसके विरुद्ध सैनिक कार्यवाही करने का निश्चय कर लिया।

प्लासी का युद्ध(23 जून, 1757ई.) –

23 जून, 1757 को अंग्रेजों और सिराजुद्दौला की सेना के बीच युद्ध आरंभ हुआ। अपने विश्वासघाती सेनापति मीर जाफर के कारण सिराजुद्दौला को पराजय का मुँह देखना पङा। सिराजुद्दौला अपने प्राण बचाने के लिए युद्ध क्षेत्र से भाग निकला, परंतु शीघ्र ही बंदी बना लिया गया और मार डाला गया।

प्लासी का युद्ध के परिणाम

राजनीतिक परिणाम

बंगाल पर अंग्रेजों का प्रभुत्व स्थापित हो गया। यद्यपि मीर जाफर को बंगाल का नवाब बनाया गया, परंतु वह नाममात्र का शासक था। इस विजय से अंग्रेजी कंपनी की शक्ति तथा प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई। अब अंग्रेजी कंपनी केवल एक व्यापारिक कंपनी न रह कर राजनीतिक सत्ता हो गयी।

इस युद्ध ने अंग्रेज व्यापारियों को शासक बना दिया और उनकी शक्ति बंगाल में इतनी बढ गयी कि वे नवाब-निर्माता बन गए। अंग्रेज बंगाल के वास्तविक शासक बन गये और नवाब लोग उनके इशारे पर काम करने लगे। प्लासी के युद्ध ने अंग्रेजों को यह स्पष्ट कर दिया कि वे षङयंत्र और कुचक्रों द्वारा भारतीयों को आसानी से पराजित कर सकते हैं।

बंगाल की स्थिति ऐसी महत्त्वपूर्ण थी कि वहाँ से अग्रेजों को अपने राज्य का विस्तार करने में बङी सुविधा हुई। बंगाल समुद्री तट पर स्थित था इसलिए अंग्रेज समुद्र के मार्ग से अपनी सेनायें ला सकते थे, और अपनी सामुद्रिक शक्ति से पूरा लाभ उठा सकते थे। उत्तरी भारत पर विजय करना भी बंगाल विजय से सुगम हो गया। प्लासी की विजय से अंग्रेजों का मनोबल बढ गया। उसके साधनों में वृद्धि हुई और वे कर्नाटक के युद्धों में फ्रांसीसियों को पराजित करने में सफल हुए। इस युद्ध ने मुगल सम्राट की दुर्बलता प्रकट कर दी।
आर्थिक परिणाम

आर्थिक दृष्टि से बंगाल एक सम्पन्न प्रांत था। इस पर कंपनी का प्रभुत्व स्थापित हो जाने से कंपनी की आय भी बढ गयी। कंपनी धीरे-धीरे संपूर्ण बंगाल की दीवान बन गयी। अंग्रेजी कंपनी को मीरजाफर से अतुल धनराशि प्राप्त हुई। अंग्रेज अधिकारियों को मीरजाफर ने 12.50 लाख पौंड दिए। कुछ विद्वानों के अनुसार 1757 से 1760 के मध्य मीर जाफर ने लगभग तीन करोङ रूपये रिश्वत के रूप में कंपनी को दिये। अंग्रेजी कंपनी को 24 परगने की जमींदारी प्राप्त हुई, जिसकी वार्षिक आय लगभग 15 लाख रुपये थी। अंग्रेजी कंपनी को कलकत्ता में सिक्के ढालने की तथा बंगाल में कर मुक्त व्यापार करने की स्वतंत्रता मिल गई। कंपनी के व्यापार का विकास हुआ।

सैनिक परिणाम

प्लासी के युद्ध ने भारतीय सैन्य संगठन की दुर्बलता प्रकट कर दी। बंगाल पर अंग्रेजों का प्रभुत्व स्थापित हो गया, जो सैनिक दृष्टि से उनके लिए बङे महत्त्व का था। अब अंग्रेज दिल्ली पर दस्तक दे सकते थे। बंगाल में बारूद की खानों पर अंग्रेजों का एकाधिकार स्थापित हो गया। इससे अंग्रेजों का तोपखाना शक्तिशाली हो गया।

नैतिक परिणाम

प्लासी के युद्ध में कंपनी की विजय होने से अंग्रेजों का नैतिक पतन हो गया क्योंकि अब उनका एक लक्ष्य धन एकत्र करना रह गया था। वे नैतिक तथा अनैतिक सभी साधनों से धन बटोरने लग गये। इससे भ्रष्टाचार का प्रकोप बढ गया। चूँकि मीरजापर ने कुचक्र से सफलता प्राप्त की थी, अतएव अन्य कुचक्रियों को भी कुचक्र चलाने का प्रोत्साहन मिल गया। अंग्रेजों ने अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए फूट डालो और शासन करो की नीति अपनाना शुरू कर दिया। प्लासी के युद्ध से भारतीयों का नैतिक पतन प्रकट हो गया। अंग्रेजों को अपना उद्देश्य प्राप्त करने के लिए षङयंत्र एवं कुचक्र रचने के लिए प्रोत्साहन मिला।

प्लासी के युद्ध का मूल्यांकन

इस प्रकार अंग्रेज व्यापारी अब शासक-निर्माता और शासक बन गए। अंग्रेजों को भारतीयों की सैनिक, राजनीतिक और नैतिक दुर्बलताओं का पता चल गया, जिससे उनकी भविष्य की विजयें सरल हो गयी। बंगाल पर अंग्रेजों का प्रभुत्व स्थापित हो जाने से उन्हें कई आर्थिक लाभ हुए। उनके पश्चिम तथा दक्षिण में भारत विजय का द्वार खुल गया।

ईस्ट इंडिया कंपनी अब भारत की एक प्रमुख शक्ति बन गयी। भारत में अंग्रेजी शासन की स्थापना कुचक्रों व षङयंत्रों द्वारा हुई थी और अंग्रेजों के कार्य अनैतिक थे, किन्तु क्लाइव तथा अन्य अंग्रेजों ने अपने देश की महान सेवा की। भारतीयों की पराजय का कारण उनकी स्वयं की दुर्बलतायें व अदूरदर्शिता थी। अतः सैनिक सफलता की दृष्टि से प्लासी की लङाई महान नहीं थी। परंतु परिणामों की दृष्टि से इसका अत्यधिक महत्त्व था।

प्लासी की लङाई ने ही भारत में अंग्रेजी शासन की नींव रखी। इस विजय से अंग्रेजों का मनोबल बढ गया और अब उन्हें शेष भारत पर भी आधिपत्य स्थापित करने की प्रेरणा मिली। प्लासी की विजय के फलस्वरूप अंग्रेज बंगाल में शासक निर्माता हो गए और इस तरह अब उनका भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना का कारण प्रारंभ हो गया।

अल्फ्रेड लायल का कथन है कि प्लासी में क्लाइव की सफलता ने बंगाल में युद्ध तथा राजनीति का एक अत्यंत विस्तृत क्षेत्र अंग्रेजों के लिए खोल दिया।

बक्सर का युद्ध

मीर कासिम और अंग्रेज – 1757 ई. में अंग्रेजों ने मीरजाफर को बंगाल का नवाब बनाया। उसने कंपनी के अधिकारियों एवं कर्मचारियों को प्रसन्न करने के लिए अतुल धन दिया। कहा जाता है कि अंग्रेजों को संतुष्ट करने के लिए मीर जाफर को अपने महल के सोने-चांदी के बर्तन, जवाहरात तथा अन्य सामान बेचना पङा था। कंपनी के अधिकारियों और कर्मचारियों को निरंतर रिश्वत एवं उपहार देते रहने के कारण मीर जाफर का राजकोष खाली हो चुका था। फिर भी अंग्रेजों की धन-लोलुपता बढती गयी और वे नवाब से निरंतर धन की माँग करते रहते थे।

जब मीर जाफर से उन्हें धन मिलना बंद हो गया, तो वे उससे नाराज हो गए और ऐसे व्यक्ति को नवाब बनाने की सोचने लगे, जो उन्हें अधिक से अधिक धन, भेंट, उपहार आदि दे सके। इस समय कंपनी को धन की अत्यधिक आवश्यकता थी। मीर कासिम एक अत्यंत धनी व्यक्ति था। अतः वह अंग्रेजी कंपनी को इस आर्थिक संकट से उबार सकता था क्योंकि उसके पास धन था और वह नवाब बनने के लिए भी लालायित था। अतः अंग्रेजों ने मीर जाफर के स्थान पर उसके दामाद मीर कासिम को बंगाल का नवाब बनाने का निश्चय कर लिया।

27 सितंबर, 1760 को मीर कासिम और अंग्रेजों के बीच एक संधि हुई जिसकी प्रमुख शर्तें निम्नलिखित थी-

  • मीर कासिम को बंगाल का नवाब बना दिया जायेगा।
  • वह अंग्रेजों का मित्र बना रहेगा।
  • आवश्यकता पङने पर वह अंग्रेजी सेना की सहायता ले सकेगा, परंतु इस सेना का खर्चा उसे वहन करना पङेगा।
  • मीर कासिम अंग्रेजों को बर्दवान, मिदनापुर और चिटगांव के प्रदेश देगा।
  • मीर कासिम ने दक्षिण में अंग्रेजों द्वारा लङे जा रहे युद्धों में कंपनी को 5 लाख रुपये देना स्वीकार कर लिया।
  • मीर कासिम ने कंपनी के उच्च पदाधिकारियों को 25 लाख रुपये देना भी स्वीकार कर लिया।

मीर जाफर को 15,000 रुपये मासिक की पेन्शन दे दी गयी तथा 20 अक्टूबर, 1760 को मीर कासिम बंगाल का नवाब बन गया। मीर कासिम एक योग्य एवं दूरदर्शी व्यक्ति था। उसने गद्दी पर बैठते ही राज्य की आर्थिक स्थिति में सुधार करने के लिए अनेक कदम उठाये। उसने अपनी सैन्य शक्ति में भी वृद्धि की और प्रशासनिक क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण सुधार किये।

उसने अंग्रेजों के हाथों में कठपुतली बनने से इन्कार कर दिया। परिणामस्वरूप दोनों पक्षों के बीच कटुता बढ गयी तथा 1764 में दोनों के बीच युद्ध छिङ गया जिसे बक्सर का युद्ध कहते हैं।

बक्सर का युद्ध के कारण

मीर कासिम के आर्थिक एवं प्रशासनिक सुधार

मीर कासिम एक योग्य प्रशासक था। उसने बंगाल की गद्दी पर बैठते ही आर्थिक एवं प्रशासनिक क्षेत्र में अनेक सुधआर किये। उसने अनेक जमींदारों से पिछला बकाया धन वसूल किया एवं विद्रोही जमींदारों का दमन किया। उसने भ्रष्ट अधिकारियों को दंडित किया और थोङे समय में ही कंपनी का बहुत सा ऋण चुका दिया। उसने राजस्व विभाग का पुनर्गठन किया तथा ईमानदार एवं योग्य व्यक्तियों को नियुक्त किया।

सरकारी खर्चे में भी कमी करने के लिए बहुत से कर्मचारियों को नौकरी से हटा दिया गया। इस प्रकार मीर कासिम ने इन सुधारों द्वारा अपनी स्वतंत्र प्रवृत्ति तथा प्रशासनिक योग्यता का परिचय दिया। परंतु अंग्रेज मीर कासिम के स्वतंत्र आचरण को सहन नहीं कर सके और उसे संदेह की दृष्टि से देखने लगे। इस कारण मीर कासिम और अंग्रेजों के बीच मनमुटाव बढता गया।

1760 ई. की संधि

मीर कासिम एवं अंग्रेजों के बीच 1760 ई. में जो संधि हुई थी, उसकी शर्तें अस्पष्ट थी। मीर कासिम की मान्यता थी कि धन एवं उपहार देकर उसे स्वतंत्रतापूर्वक आचरण करना शुरू कर दिया। दूसरी ओर अंग्रेजों की यह मान्यता थी कि मीर कासिम अंग्रेजों की इच्छानुसार उन्हें धन, उपहार, आदि देता रहेगा तथा वह उनके हाथों में कठपुतली बन कर रहेगा।

परंतु जब अंग्रेजों ने महसूस किया कि मीर कासिम अंग्रेजों के इशारों पर नाचने के लिए तैयार नहीं हैं और अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति में लगा हुआ है, तो अंग्रेजों ने भी मीर कासिम का विरोध करना शुरू कर दिया।

सैन्य संगठन को दृढ करना

मीर कासिम ने अंग्रेजों के चंगुल से स्वतंत्र होने एवं राज्य में शांति एवं व्यवस्था बनाये रखने के लिए सैन्य-संगठन को सुदृढ करने का निश्चय कर लिया। उसने अपने सैनिकों की संख्या में वृद्धि की और उन्हें यूरोपीय पद्धति पर प्रशिक्षित किया गया। सैनिकों को आधुनिक अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित किया गया। मीर कासिम की सैनिक तैयारियाँ देखकर अंग्रेज बङे चिन्तित हुए और उन्होंने भी मीर कासिम की शक्ति का दमन करने का निश्चय कर लिया।

राजधानी परिवर्तन

मीर कासिम के समय बंगाल की राजधानी मुर्शिदाबाद थी, जहाँ अंग्रेजों का प्रभाव बहुत बढ गया था। अतः अंग्रेजों के कुचक्रों एवं षङयंत्रों से बचने के लिए भी कासिम ने मुर्शिदाबाद की बजाय मुंगेर को अपनी राजधानी बनाया। उसने मुंगेर की सुदृढ किलेबंदी की तथा वहाँ 40 हजार सैनिकों की एक शक्तिशाली सेना की नियुक्ति की। उसने मुंगेर में बारूद बनाने का एक कारखाना भी स्थापित किया। इससे अंग्रेजों का संदेह और बढ गया और वे मीर कासिम की स्वतंत्र प्रवृत्ति को नियंत्रित करने का प्रयत्न करने लगे।

प्लासी की पराजय का बदला लेना

मीर कासिम एक महत्त्वाकांक्षी एवं स्वाभिमानी व्यक्ति था। वह प्लासी की पराजय से बङा दुःखी था तथा अंग्रेजों को पराजित करके प्लासी की पराजय का बदला लेना चाहता था।

अंग्रेजों द्वारा मुगल सम्राट को प्रोत्साहन देना

1761 ई. में मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय ने अंग्रेजों से मांग की कि वे उसे दिल्ली के सिंहासन पर बिठाने में सहायता करें। अंग्रेजों ने उसे पटना आमंत्रित किया और उसका भव्य स्वागत किया। अंग्रेजों ने मीर कासिम पर दबाव डाला कि वह शाहआलम को मुगल सम्राट स्वीकार करे तथा उसे 12 लाख रुपये नजराने के रूप में दे। विवश होकर मीर कासिम को अंग्रेजों की ये बातें स्वीकार करनी पङी।

अंग्रेजों की इस नीति से मीर कासिम को यह भय हुआ कि कहीं उससे बंगाल, बिहार तथा उङीसा की सूबेदारी न छीन ली जाये। अतः इस घटना से भी अंग्रेजों और मीर कासिम के बीच मनमुटाव बढ गया।

हिन्दू जमींदारों का दमन

फूट डालो और राज करो की नीति का अनुसरण कर रहे थे। वे हिन्दू जमींदारों को मीर कासिम के विरुद्ध भङका रहे थे। बिहार का डिप्टी गवर्नर रामनारायण अंग्रेजों का प्रबल समर्थक था। मीर कासिम ने उसे गबन के आरोप में बंदी बना लिया तथा उसे मृत्यु दंड दिया। इस घटना से अंग्रेजों और मीर कासिम के बीच शत्रुता और बढ गयी।

व्यापारिक सुविधाओं का दुरुपयोग

1717 ई. में मुगल सम्राट फर्रुखसियर ने 3000 रुपये वार्षिक कर के बदले में अंग्रेजी कंपनी को बंगाल में बिना चुंगी दिए व्यापार करने का अधिकार दे दिया था। परंतु कंपनी के अधिकारी इस अधिकार का दुरुपयोग कर रहे थे। वे एक विशेष कमीशन लेकर अपने दस्तक (अनुमति-पत्र) भारतीय व्यापारियों को बेच देते थे जिससे बंगाल के राजकोष को हानि होती थी। इसके अलावा कंपनी के अधिकारी एवं कर्मचारी अपने निजी व्यापार में भी दस्तकों का प्रयोग करते थे। इस प्रकार दस्तकों के दुरुपयोग के कारण राज्य को बहुत हानि हो रही थी।

इस पर मीर कासिम ने कंपनी से आग्रह किया कि इस अनियमित व्यापार को बंद किया जाए। अंत में 1762 में गवर्नर वेन्सीटार्ट ने मुंगेर पहुँच कर मीर कासिम से भेंट की और उसके साथ एक समझौता किया। इस समझौते के अनुसार यह तय किया गया कि अंग्रेजी कंपनी अपने सामान पर 9 प्रतिशत शुल्क देगी तथा भारतीय व्यापारी अपने सामान पर 25 प्रतिशत से 30 प्रतिशत शुल्क देंगे। परंतु अंग्रेजी कंपनी ने इस समझौते का पालन नहीं किया। इस कारण अंग्रेजों तथा मीर कासिम के बीच कटुता और बढ गयी।

भारतीय व्यापारियों को निःशुल्क व्यापार करने की सुविधा देना

जब अंग्रेजी कंपनी ने व्यापारिक सुविधाओं का दुरुपयोग करना जारी रखा, तो मार्च 1763 में मीर कासिम ने भारतीय व्यापारियों को भी अंग्रेजों के समान निःशुल्क व्यापार करने की अनुमति दे दी। मीर कासिम की इस कार्यवाही से अंग्रेज बङे नाराज हुए क्योंकि इससे उनका विशेषाधिकार समाप्त हो गया। अतः कलकत्ता कौंसिल ने मीर कासिम पर दबाव डाला कि वह अपना आदेश वापिस ले ले, परंतु मीर कासिम ने अंग्रेजों के अनुरोध को ठुकरा दिया। इस कारण अंग्रेजों तथा मीर कासिम के बीच शत्रुता बढ गयी।

मीर कासिम तथा अंग्रेजों के बीच संघर्ष

1763 में अंग्रेजों के एजेन्ट एलिस ने पटना पर अधिकार कर लिया। परंतु मीर कासिम ने अपनी सेना भेजकर पटना पर पुनः अधिकार कर लिया। एलिस एडम्स के नेतृत्व में एक सेना भेजी। 19 जुलाई, 1763 को कटवा के निकट मीर कासिम और अंग्रेजों के बीच युद्ध हुआ, जिसमें मीर कासिम को पराजय का मुंह देखना पङा।

इसके बाद मुर्शिदाबाद, मुंगेर, उदयनाला आदि स्थानों पर भी मीर कासिम को पराजित होना पङा और उसे पटना की ओर भागना पङा। उसने पटना पहुँच कर 148 अंग्रेज बंदियों का वध करवा दिया। यह घटना पटना हत्याकांड के नाम से प्रसिद्ध है। जुलाई, 1763 में कंपनी ने मीर जाफर को पुनः बंगाल का नवाब बना दिया।

अपनी पराजयों से निराश होकर मीर कासिम अवध के नवाब शुजाउद्दौला के पास चला गया। शुजाउद्दौला उन दिनों मुगल-सम्राट शाहआलम के साथ इलाहाबाद में ठहरा हुआ था। मीर कासिम के अनुरोध पर शुजाउद्दौला तथा शाहआलम ने उसे सहायता देना स्वीकार कर लिया।

बक्सर के युद्ध की घटनाएँ

1764 में मीर कासिम, अवध के नवाब शुजाउद्दौला तथा मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय की सम्मिलित सेनाओं ने पटना की ओर प्रस्थान किया और बक्सर के निकट पहुँच गई । इस सम्मिलित सेना में 40 हजार से 60 हजार के लगभग सैनिक थे। दूसरी ओर अंग्रेज सेनापति मेजर मुनरो लगभग 8000 सैनिकों को लेकर बक्सर पहुँच गया। 23 अक्टूबर, 1764 को दोनों पक्षों में बक्सर नामक स्थान पर भीषण युद्ध हुआ।

अंत में अंग्रेजों की विजय हुई और सम्मिलित सेना की पराजय हुई। इस युद्ध में अंग्रेजों के 825 सैनिक मारे गए, जबकि अवध के नवाब शुजाउद्दौला की सेना के लगभग 2000 सैनिक मारे गए। मीर कासिम युद्ध क्षेत्र से भाग निकला और एक लंबे समय तक इधर-उधर भटकता रहा। अंत में 1777 ई. में उसकी मृत्यु हो गयी।

शुजाउद्दौला भी भागकर रुहेलखंड चला गया, परंतु अंग्रेजों ने उसका पीछा करना जारी रखा। अंत में अप्रैल, 1765 में अंग्रेजों ने कङा के युद्ध में शुजाउद्दौला को बुरी तरह से पराजित कर दिया। विवश होकर शुजाउद्दौला ने अंग्रेजों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।

बक्सर के युद्ध का महत्त्व और परिणाम

बंगाल पर अंग्रेजों का प्रभुत्व स्थापित

आधुनिक भारत के इतिहास में बक्सर के युद्ध का अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस युद्ध में अँग्रेजों की निर्णायक विजय हुई। अतः कई दृष्टियों से बक्सर का युद्ध प्लासी के युद्ध से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है। यह युद्ध भारत के निर्णायक युद्धों में गिना जाता है। बक्सर के युद्ध के परिणामस्वरूप बंगाल पर अंग्रेजों का प्रभुत्व स्थापित हो गया।

अब अंग्रेज बंगाल के वास्तविक शासक बन गए। अब बंगाल कानूनी तौर पर अंग्रेजों के अधिकार में आ गया। बंगाल का नवाब केवल अंग्रेजों के हाथों की कठपुतली मात्र था तथा बंगाल के शासन की वास्तविक सत्ता अंग्रेजों के हाथों में थी। रेम्जेम्यूर का कथन है कि, बक्सर के युद्ध ने अंत में अंग्रेजी कंपनी के शासन की बेङियों को बंगाल पर जकङ दिया।

अवध के नवाब पर अंग्रेजों का प्रभाव स्थापित हो

बक्सर के युद्ध के परिणामस्वरूप अवध के नवाब एवं मुगल सम्राट पर भी अंग्रेजी कंपनी का प्रभाव स्थापित हो गया। 1765 की इलाहाबाद की संधि के अनुसार अवध के प्रांत पर कंपनी का नियंत्रण हो गया।

इस संधि के परिणामस्वरूप अवध के नवाब शुजाउद्दौला को निम्नलिखित शर्तें स्वीकार करनी पङी-

  • अवध के नवाब शुजाउद्दौला से कङा और इलाहाबाद के जिले छीन लिए गए तथा ये दोनों जिले मुगल सम्राट को दे दिये गए। अवध का प्रांत शुजाउद्दौला को लौटा दिया गया।
  • शुजाउद्दौला ने अंग्रेजों को युद्ध की क्षतिपूर्ति के लिए 50 लाख रुपये देना स्वीकार कर लिया।
  • नवाब ने कंपनी को अवध में कर-मुक्त व्यापार करने की सुविधा प्रदान की।
  • अंग्रेजों ने नवाब को सैनिक सहायता देना स्वीकार कर लिया परंतु उसे ही अंग्रेज सेना का खर्चा वहन करना पङेगा।
  • डॉ. जगन्नाथ मिश्र का कथन है कि, अवध के साथ संघर्ष हमेशा के लिए समाप्त हो गया क्योंकि इसके बाद अवध के किसी भी नवाब ने अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध करने की हिम्मत नहीं की। बक्सर के युद्ध से अवध पर अंग्रेजों का प्रभाव बढता ही गया।
  • मुगल सम्राट पर कंपनी का प्रभुत्व स्थापित होना

बक्सर के युद्ध के परिणामस्वरूप मुगल सम्राट पर भी कंपनी का प्रभुत्व स्थापित हो गया। अब वह कंपनी का पेन्शनर बन गया।

1765 की इलाहाबाद की संधि के अनुसार मुगल सम्राट शाहआलम को निम्नलिखित शर्तें स्वीकार करनी पङी-

  • अवध के नवाब शुजाउद्दौला से कङा और इलाहाबाद के जिलों को लेकर मुगल सम्राट को दे दिए गए।
  • अंग्रेजों ने मुगल सम्राटों को 26 लाख रुपये वार्षिक पेन्शन देना स्वीकार कर लिया।
  • मुगल सम्राट ने अंग्रेजों को बंगाल, बिहार तथा उङीसा की दीवानी सौंप दी।

अंग्रेजी कंपनी की प्रतिष्ठा में वृद्धि

बक्सर के युद्ध के परिणामस्वरूप अंग्रेजी कंपनी की शक्ति तथा प्रतिष्ठा में अत्यधिक वृद्धि हुई। बक्सर की विजय से अंग्रेजों के लिए उत्तरी भारत में साम्राज्य स्थापित करना सरल हो गया।

इस युद्ध के फलस्वरूप केवल बंगाल पर ही नहीं बल्कि अवध के नवाब तथा मुगल सम्राट पर भी कंपनी का प्रभुत्व स्थापित हो गया। अब ईस्ट इंडिया कंपनी एक अखिल भारतीय शक्ति बन गयी। अब अंग्रेजों के प्रभाव क्षेत्र का विस्तार बंगाल से दिल्ली तक हो गया। अब भारत में ब्रिटिश शासन की नींव मजबूत हो गयी। पी.ई.राबर्ट्स का कथन है कि, प्लासी की अपेक्षा बक्सर से भारत में अंग्रेजी प्रभुता की जन्म-भूमि मानना कहीं अधिक उपयुक्त है।

अंग्रेजों की सैनिक श्रेष्ठता सिद्ध होना

सैनिक दृष्टि से भी बक्सर का युद्ध बङा महत्त्वपूर्ण था। प्लासी के युद्ध में अंग्रेजों ने छल-कपट के बल पर विजय प्राप्त की थी, परंतु बक्सर का युद्ध एक पूर्ण सैनिक युद्ध था। इस युद्ध में अंग्रेजों ने मीर कासिम, अवध के नवाब शुजाउद्दौला तथा मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय की सम्मिलित सेनाओं को बुरी तरह से पराजित कर अपने युद्ध-कौशल एवं उत्कृष्ट सैन्य-शक्ति का प्रदर्शन किया।

संपूर्ण भारत पर प्रभाव

बक्सर के युद्ध का संपूर्ण भारत पर प्रभाव पङा। उत्तर भारत की शक्तिशाली सेनाओं पर विजय से अंग्रेजों को राजनीतिक और सैनिक प्रभाव बढाने में मदद मिली। भारत में शक्ति संघर्ष की दिशा में एक नया परिवर्तन हुआ और अंग्रेजों की महत्वाकांक्षाओं में वृद्धि हुई।

प्लासी के कार्य को पूरा करना

बक्सर के युद्ध ने प्लासी के कार्य को पूरा किया। अंग्रेज बंगाल में ब्रिटिश शासन की स्थापना करना चाहते थे। बंगाल में ब्रिटिश शासन स्थापित करने की प्रक्रिया प्लासी के युद्ध ने शुरू की थी जिसे परिणति पर पहुँचाने का श्रेय बक्सर के युद्ध को है। प्लासी के युद्ध के द्वारा अंग्रेजों ने केवल बंगाल में अपने पांव जमाये थे, परंतु बक्सर के युद्ध ने अँग्रेजों को बंगाल का वास्तविक शासक बना दिया। मुगल सम्राट ने कंपनी को बंगाल, बिहार, उङीसा की दीवानी सौंप दी। परिणामस्वरूप बंगाल पर वैधानिक रूप से अंग्रेजों का अधिकार स्थापित हो गया। अतः अंग्रेजों ने जिस उद्देश्य से प्लासी का युद्ध लङा था, उसकी पूर्ति वास्तव में बक्सर के युद्ध से ही हुई ।

डॉ.वी.ए.स्मिथ का कथन है कि, बक्सर की विजय ने जो पूर्णतया निर्णयात्मक थी, प्लासी के कार्य को पूरा कर दिया।

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