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प्राचीन इतिहास तथा संस्कृति के प्रमुख स्थल बोधगया

बिहार प्रान्त में स्थित गया अथवा बोधगया अत्यन्त प्राचीन समय से ही हिन्दूओं तथा बौद्धों का तीर्थस्थल रहा। पुराणों में इसे गयासुर नामक दैत्य का निवास बताया गया है जिसे विष्णु ने यहाँ से निकाला था। चूँकि महात्मा बुद्ध को यहाँ पीपल के वृक्ष के नीचे संबोधि प्राप्त हुई, अतः यह स्थान ‘बोधगया’ के नाम से विख्यात हो गया।

बुद्ध के समय यहाँ कोई प्रसिद्ध नगर नहीं था तथा ‘उरूवेला’ नामक गाँव बसा हुआ था। उसी के पास पीपल का वृक्ष था जहाँ बुद्ध ने तपस्या की थी। महाभारत तथा अश्वघोषकृत बुद्धचरित से प्रकट होता है कि यहाँ महर्षि ‘गय’ का आश्रम था। संभव है उसी के नाम पर इस स्थान का नाम ‘गया’ पड़ गया हो। बुद्ध के पश्चात् इसे ‘बोधगया’ के नाम से प्रसिद्धि मिली।

मौर्य शासक अशोक ने इस स्थान की यात्रा कर यहाँ स्तूप का निर्माण करवाया था।

फाहियान तथा हुएनसांग यहाँ की यात्रा पर गये तथा उन्होंने अशोक द्वारा बनवाये गये स्तूप को देखा था। हुएनसांग बोधिवृक्ष का भी वर्णन करता है जिसके चारों ओर ईंटों की सुदृढ़ आयताकार दीवार बनी हुई थी। यहाँ सिंहल के राजा मेघवर्ण ने एक सड्डाराम का निर्माण करवाया था। इत्सिंग भी इस सड्डाराम का उल्लेख करता है। गया से कई महत्वपूर्ण लेख भी मिलते हैं।

गया आज भी हिन्दूओं तथा बौद्धों दोनों का पवित्र तीर्थस्थल है। हिन्दू यहाँ पिंडदान करने के लिए जाते है। गरूड़पुराण में उल्लेखनीय है कि ‘गया में श्राद्ध करने से पापी व्यक्ति ब्रह्महत्या, सुरापान, स्तेय आदि कठोर पापों से मुक्त हो जाता है।’

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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